आमतौर पर सियासत में देखा जाता है कि किसी ‘लहर’ के दम पर चुनाव जीतने के बाद समय गुजरने के साथ उसका असर कम होता जाता है लेकिन ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सियासी दस्तूर को बदल दिया है. सरकार के तीन साल होने के बावजूद ‘मोदी लहर’ बदस्तूर जारी है. तमाम सर्वे बता रहे हैं कि यदि आज चुनाव हो जाए तो बीजेपी आराम से फिर से सत्ता में वापसी कर लेगी. इसकी बानगी इस बात से भी समझी जा सकती है कि इन तीन वर्षों में 13 राज्यों में चुनाव हुए हैं और बीजेपी ने उनमें से नौ में जीत हासिल की है. सिर्फ इतना ही नहीं, बहुमत की परिभाषा भी बदल दी गई है. यूपी और उत्तराखंड चुनाव में तीन चौथाई बहुमत हासिल कर बीजेपी ने एक सियासी लकीर खींच दी है. कभी महज दो सीटों का प्रतिनिधित्व करने वाली बीजेपी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के नेतृत्व का ही नतीजा है कि इस वक्त बीजेपी के पूरे देश में करीब 1300 विधायक और सवा तीन सौ सांसद हैं. राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे कई ऐसे कारण बता रहे हैं जिनके दम पर नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने ऐतिहासिक सियासी कामयाबी हासिल की है :
संगठन और सरकार
भारतीय राजनीति में अक्सर ऐसा देखा गया है कि सत्ता में आने के बाद सरकार और पार्टी के बीच एक दूरी उत्पन्न हो जाती है. पार्टी पीछे छूट सी जाती है लेकिन पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इस मामले में नई परिभाषा रची है. इन दोनों नेताओं के नेतृत्व ने सरकार और संगठन के बीच जबर्दस्त कदमताल मिलाने में कामयाबी हासिल की है. सरकार के फैसलों को संगठन जमीन के स्तर तक प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता और पार्टी के मंसूबों और संकल्प पत्र को सरकार अमलीजामा पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती. इसके अलावा कहीं भी चुनाव होने की स्थिति में अमित शाह जहां एक कार्यकर्ता की तरह बूथ स्तर तक उतर जाते हैं वहीं पीएम मोदी संगठन के सिपाही की तरह अपनी व्यस्तताओं के बावजूद पार्टी प्रचार में उतरने से गुरेज नहीं करते.
स्वर्ण काल कहने से परहेज
इतनी जबर्दस्त कामयाबी के बावजूद अमित शाह अभी इस दौर को बीजेपी का स्वर्ण काल कहने से परहेज करते हैं. उन्होंने नए सियासी लक्ष्यों को रखते हुए पंचायत से लेकर संसद तक जीत का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए बीजेपी ने ऐसे माइक्रो मैनेजमेंट का तानाबाना तैयार किया है जिसमें बीजेपी के लिए हर सीट एक जैसी ही है- यानी उसके लिए अब कोई सीट मजबूत या कमजोर नहीं है. हर सीट पर जीतना ही पार्टी का अब लक्ष्य है.
भविष्य की राह…
अगले एक साल के भीतर गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक और त्रिपुरा में चुनाव होने जा रहे हैं. गुजरात में पिछले 15 वर्षों में पहली बार पार्टी पीएम मोदी के बिना चुनाव में उतरेगी. लेकिन पार्टी के आत्मविश्वास का ही नतीजा है कि पार्टी ने जीत के लिए 150 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है. त्रिपुरा जैसे राज्य में बीजेपी की स्थिति परंपरागत रूप से कमजोर रही है लेकिन पार्टी इस बार पूरे दमखम से वहां चुनाव लड़ने के मूड में दिखती है. इससे बीजेपी के आत्मविश्वास की झलक दिखती है.