Monthly Archives: December 2018

Government changing names of three island of Andaman

भारतीय मूल्यों की पुनर्स्थापना: अंग्रेजों के नाम वाले तीन द्वीपों के नाम बदलेगी सरकार

किसी भी सभ्यता और संस्कृति को आप तभी हमेशा के लिए संजो कर रख सकते हैं जब आप उसका इतिहास अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताएं, आने वाली पीढ़ियाँ अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताए और यह चेन ऐसे ही निरंतर चलती रहे। दुनिया की बाकी सभ्यताओं की तुलना में हम भारतीय हीं हैं जिसने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाकर रखा हुआ है। हमें अपनी सभ्यता को ऐसे ही आगे भी सम्हाल कर रखना है इस हेतु जहाँ हम भारतीय प्रतिबद्ध तो वहीं अब केंद्र की मोदी सरकार भी इस तरफ बहुत ध्यान दे रही है।

जहाँ पुरानी सरकारों ने देश की सभ्यता और संस्कृति को चोट पहुंचाने की कोशिश की और भारत को विश्व पटल पर सपेरों और अंधविश्वासियों का देश साबित किया वहीं अब मोदी जी की सरकार ने भारत की प्राचीन महानताओं को उभारने के साथ साथ बेहतर भविष्य के लिए आधुकनिकता को भी साथ साथ आगे बढ़ाया है।

आज जहाँ एक तरफ भारत चाँद और मंगल पर कदम रख रहा है तो वहीं अपनी योग, आयुर्वेद, आध्यात्म जैसी प्राचीन शक्तियों को भी महत्व दे रहा है। इसी कड़ी में देश के अलग अलग शहरों और प्रमुख स्थलों के नामों को विदेशी आक्रांताओं के नाम से बदल कर प्राचीन नामों या भारतीय विभूतियों के नाम पर रखना भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

पिछले दिनों इलाहाबाद शहर का नाम उसके प्राचीन नाम प्रयाग पर ‘प्रयागराज’ रखा गया। हालांकि कुछ लोगों ने इसकी आलोचना भी की, पर भारतीय संस्कृति को चाहने वाले लोगों के लिए यह निर्णय एक मील का पत्थर माना जा रहा है। इस शहर का नाम मुग़ल बादशाह अकबर ने इलाहाबाद कर दिया था जिसे तक़रीबन 500 साल बाद पुनः प्रयागराज कर दिया गया है। अब इसी कड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित तीन द्वीपों के नाम जो वर्तमान में अँग्रेज़ शासकों के नाम पर हैं को बदला जा रहा है।

केंद्र सरकार अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के तीन द्वीपों (रॉस, नील और हैवलॉक द्वीप) के नाम बदल रही है। रॉस द्वीप का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप, नील का बदलकर शहीद द्वीप और हैवलॉक का नाम बदलकर स्वराज द्वीप करने का निर्णय लिया गया है। बता दें कि हैवलॉक द्वीप का नाम ब्रिटिश जनरल सर हेनरी हैवलॉक के नाम पर रखा गया है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कार्यरत थे। 1857 की क्रांति को दबाने में हैवलॉक ने अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए भी ऐसे व्यक्ति के नाम पर देश के एक द्वीप का नाम गलत संदेश देता है। बहरहाल यह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ही था, जहां साल 1943 में महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद की अस्थायी सरकार की स्थापना की थी। अब नेताजी के नाम पर एक द्वीप का नामाकरण उनके अदम्य साहस को एक छोटी श्रद्धांजलि होगी।

Modi jees vision will lead india further from job seeker to job giver

मोदी जी की दूरदर्शिता: नौकरी पाने के बजाय नौकरी देने वाला देश बनकर उभरेगा भारत

‘भारत सोने की चिड़िया थी’ ये शब्द हमने कई बार किताबों, फिल्मों और बड़े बड़े नेताओं के भाषणों में सुना हैं। कई नेता ऐसा भी कहते मिल जाते हैं कि वे भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाएंगे। पर जब बात आती है प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की तो वे इस बाबत कुछ बोलते तो नहीं हैं, पर इस दिशा में वे सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। पिछले साढ़े चार सालों के दौरान केंद्र में और उसके पहले गुजरात में कार्य करते हुए श्री नरेंद्र मोदी जी ने हमेशा देश को आत्मनिर्भर बनाने हेतु कार्य किये। आम लोगों को नौकरी मांगने के बजाय नौकरी देने वाला बनाने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि आज गुजरात भारत के सफल राज्यों में शुमार होता है और जल्द ही पीएम मोदी जी के नेतृत्व में भारत भी विश्व के तमाम देशों में सबसे अगली पंक्ति में खड़ा नज़र आएगा।

हमारा देश भारत प्राचीन समय में सोने की चिड़िया इसलिए था क्योंकि यहाँ छोटे छोटे उद्योग धंधों की भरमार थी। भारत प्राचीन समय में दुनिया के सबसे बड़े निर्माता देशों में से एक था। यहाँ के कुटीर उद्योगों के समान इंग्लैंड तक में बेचे जाते थे। हर तरफ खुशहाली थी, हर कोई सेल्फ एम्प्लॉयड था। पर आज हमारा देश उस स्थिति में नहीं है, इसका कारण जहाँ एक तरफ सदियों की गुलामी है तो दूसरी तरफ पिछली सरकारों द्वारा स्व-रोजगार को बढ़ावा ना दे पाना भी है। आज़ादी के बाद से भारत में ये मानसिकता बढ़ी है कि नौकरी का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी से है पर ये सब को पता है कि सरकारी नौकरी एक सीमित संख्या में ही सृजित हो सकती है। जबकि हमारी जनसंख्या की गति सरकारी नौकरियों के सृजन से कहीं ज्यादा तेज है। ऐसे में हर किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती है।

बहरहाल वर्तमान सरकार में स्थितियाँ धीरे धीरे बेहतर हो रही हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश में स्व-रोजगार के लिए युवाओं को बहुत ज्यादा बढ़ावा दिया है। उनका मानना है कि भारत को नौकरी की चाह रखने वाले देश के बजाय नौकरी का सृजन करने वाला देश बनना चाहिए। इसी उद्देश्य को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं का शुभारम्भ किया है। इस योजना के तहत कई युवा सामने आकर अपना स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं और दूसरों को जॉब दे रहे हैं।

नए रोजगारों के सृजन के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी ने, ना सिर्फ देश के लोगों को बढ़ावा दिया है बल्कि देश के बाहर की कंपनियों को भी भारत में आकर निवेश करने हेतु ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम की शुरुआत की है। आज कई विदेशी कंपनियां भारत में निवेश कर रही है जिससे नए नए रोजगारों का सृजन हो रहा है। विदेशी कम्पनी भारत में आकर अपना व्यापार बढाए इस हेतु सरकार ने बहुत सारे कार्य किये हैं। इसके लिए इंफ्रास्ट्रचर बेहतर किया और व्यापार के लिए माकूल माहौल दिया। इसी कारण से आज भारत ने ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस’ के मामले में लंबी छलांग लगाई है। आज भारत में व्यापार करना आज़ादी के बाद के वर्षों में सबसे बेहतर है।

पिछले चार-साढ़े चार साल के कार्यों का अच्छा प्रतिफल अगर देश को प्राप्त करना है तो पुनः एक बार श्री नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाना होगा। मोदी जी की छवी आज पूरे विश्व में एक वैश्विक नेता की है जो भारत को तीव्र गति से आगे बढ़ाने के लिए बहुत ज्यादा आवश्यक है। मुझे पूरा विश्वास है की आने वाले सालों में मोदी जी के नेतृत्व में भारत न सिर्फ वैश्विक शक्ति बनेगा बल्कि दुनिया का नेतृत्व भी करेगा।

Pm modi ne atal ji ke samman me jaari kiya 100 rupye ka Sikka

पीएम मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में जारी किया 100 रुपये का स्मारक सिक्का

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती से एक दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके सम्मान में 100 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया। 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी को 95वां जन्मदिवस है, ऐसे में केंद्र सरकार इस दिन को सुशासन दिवस के रूप में मना रही है। सिक्का जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारा मन आज भी नहीं मानता है कि अटलजी हमारे बीच में नहीं हैं, राजनीतिक मंच से करीब एक दशक दूर रहने के बावजूद भी देश ने इतने शानदार तरीके से उन्हें विदाई दी वह काफी खास है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सिद्धांतों और कार्यकर्ता के बल पर अटलजी ने इतना बड़ा राजनीतिक संगठन खड़ा किया और काफी कम समय में देशभर में उसका विस्तार भी किया। उन्होंने कहा कि अटलजी के बोलने का मतलब देश का बोलना और सुनने का मतलब देश को सुनना था। उन्होंने कहा कि अटलजी ने लोभ और स्वार्थ की बजाय देश और लोकतंत्र को सर्वोपरि रखा और उसे ही चुना।


कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी बोले कि अटलजी का सिक्का हमारे दिलों पर 50 साल चला और आगे भी चलेगा। उन्होंने कहा कि अटलजी ने जो चाहा है उसे हर हाल में पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि वाजपेयी जी हमेशा लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते थे, यही कारण रहा कि जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज कुछ लोगों के लिए सत्ता ऑक्सीजन की तरह है, वो सत्ता के बिना नहीं रह सकते हैं। लेकिन अटलजी के राजनीतिक कार्यकाल का अधिकतर समय विपक्ष में बीता और उन्होंने कभी भी अपनी विचारधारा से समझौता नहीं किया।

आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। वहीं, इसी साल 16 अगस्त को 94 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया था। अटल बिहारी वाजपेयी 2009 से ही लंबी बीमारी से जूझ रहे थे और पिछले करीब 8-9 साल से राजनीति से दूर थे।

pm modis Ayushman Bharat Yojana is providing better health services to the poor and disadvantaged

गरीबों और वंचितों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवा रही है पीएम श्री नरेंद्र मोदी जी की ‘आयुष्मान भारत योजना’

जब 1 फरवरी 2018 के दिन संसद के पटल पर वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली जी केंद्र सरकार का बजट पेश कर रहे थे तभी पहली बार ‘आयुष्मान भारत योजना’ की चर्चा की गई थी। इस घोषणा के महज एक महीने बाद इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरे भारत में लांच भी कर दिया गया था। बता दें कि यह योजना स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के क्षेत्र में विश्व की अबतक की सबसे बड़ी योजना है।

आयुष्‍मान भारत योजना जिसे ‘मोदी केयर’ के नाम से भी मीडिया में पुकारा जाता है का लक्ष्य साल 2025 तक पूरे भारत को रोग मुक्‍त करके व‍िकास के पथ पर तीव्रता से आगे बढ़ाना है। इस योजना के अंतर्गत हर साल 50 करोड़ गरीब पर‍िवारों तक स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएँ पहुंचाने तथा उन्हें 5 लाख रुपये तक का चिकित्सकीय बीमा कवर दिलवाने का प्रावधान है।

बहरहाल यह योजना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक हैं इसीलिए पुरानी सरकारों द्वारा बनाई जाने वाली हेल्थ केयर की योजनाओं की तरह यह योजना महज फाइलों में ना रहकर वास्तव में कार्यान्वित भी हो रही है। केंद्र सरकार ने इस बाबत लोकसभा में बताया भी है कि आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत अब तक महज 6-7 महीनों में तकरीबन छह लाख मरीज़ों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा जी ने पिछले कुछ महीनों में आयुष्मान भारत के अंतर्गत हुए कार्यों को एक और मील का पत्थर बताते हुए कहा है कि 90 दिनों से कम समय में आयुष्मान भारत के तहत 6,00,000 से अधिक रोगी लाभान्वित हुए हैं। यह उन गरीब और वंचित परिवारों के लिए एक सहायक स्तंभ बन गया है जो गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा से अबतक दूर थे। श्री जगत प्रकाश नड्डा जी ने इस योजना के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को आभार व्यक्त करते हुए ट्वीट भी किया है।


इस ट्वीट के साथ स्वास्थ्य मंत्री श्री नड्डा जी ने एक वीडियो भी साझा किया। जिसमें राहुल गांधी के विधानसभा क्षेत्र अमेठी के एक परिवार की कहानी दिखाई गई है। अमेठी के रहने वाले परशुराम आयुष्मान भारत के तहत अब तक तीन बार मुफ्त में इलाज करवा चुके हैं और सरकार की इस योजना की खूब तारीफ कर रहे हैं। इस वीडियो में मौजूद मरीज़ परशुराम की पत्नी भी सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं से खुश नजर आ रही थीं।

बहरहाल अगर इस महत्वाकांक्षी जनहितकारी योजना की शुरुआत इतनी अच्छी है तो ऐसी आस जगती है कि इस योजना का जो साल 2025 तक भारत को रोग मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है उसे भी प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं आएगी। हालांकि इस जनहितकारी योजना को लेकर भी विपक्षी राजनीतिक दल राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं और इसी कारण अभी तक ओडिशा, तेलंगाना और दिल्ली की सरकारों ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए एमओयू पर दस्तखत नहीं किए हैं। परन्तु हमें ऐसा विश्वास रखना चाहिए की आने वाले समय में इस योजना की खूबियों को देखकर ये राज्य भी इस योजना को अपनाएंगे और पूरे देश को रोग मुक्त बनाने में अपना योगदान देंगे।

karj maafi chunaav jeetne ka sarvottam tareeka

कर्ज माफी चुनाव जीतने का सर्वोत्तम तरीका, लेकिन देश के विकास के लिए अभिशाप

कोई भी वस्तु अगर आपको मुफ्त में मिल जाती है तो आपको उसकी महत्ता समझ नहीं आती और आप उसके प्रति हमेशा लापरवाह बने रहते हैं। ये लापरवाही एक आदत की तरह है जो हमारे देश में पहले भी लोगों को लगाई गई है और अब फिर से लगाई जा रही है। वर्तमान में तीन राज्यों में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की सरकारों ने आनन फानन में किसानों के कर्ज माफ़ी की घोषणाएँ कर दी हैं। इनमें से दो राज्यों में कांग्रेस को 15 साल बाद सत्ता हासिल हुई है। ऐसे में हम यह मान सकते हैं कि प्रदेश की वित्तीय हालात से वे भलीभांति परिचित नहीं होंगे। इसलिए सत्ता सम्हालने के बाद बजाय प्रदेश की वित्तीय हालात को समझने के आनन फानन में हजारों करोड़ के कर्ज माफ़ कर देने का निर्णय आश्चर्यचकित करता है।

हालांकि कर्ज माफी के निर्णयों पर अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है। कर्ज माफ़ी के दायरे में कौन आएंगे कौन नहीं आएंगे इसके तकनीकी पहलू पर न जाते हुए बस इस बात पर चर्चा करें कि क्या इतने बड़े कर्ज की रकम को माफ़ कर पाना प्रदेश की सरकारों के बस की बात है भी या नहीं तो हमें जवाब मिलेगा की नहीं ऐसा अकेले राज्य के बस की बात नहीं है। ऐसा करने पर प्रदेश का विकास कार्य ठप्प पड़ सकता है पर इसके बावजूद भी चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए कई नेता और पार्टियां इस तरह की घोषणाओं का लाभ चुनावों में उठाते हैं और सफल भी होते हैं। इसका ताजा उदाहरण हमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में देखने को भी मिला है।

अगर कर्ज माफ़ी के इतिहास पर नजर डालें तो देश में सबसे पहले किसानों की कर्ज माफी पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के समय किया गया था। वो दिन था और आज का दिन है हर चुनावों में ऐसी घोषणाएँ होती हैं और ज्यादातर इस प्रकार की घोषणा करने वाले दलों की जीत भी होती है। आज विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा लिए गए उस पहले निर्णय के 28 साल बीत गए हैं और हाल ही में इसी कर्ज माफ़ी के वादे ने कांग्रेस को तीन राज्यों में जीत दिलाने में सबसे ज्यादा मदद की है।

एक मशहूर फिल्म का डायलॉग है की ‘आदतें अगर वक़्त पर ना बदली जाए तो जरूरतें बन जाती हैं’ पिछले 28 साल से चुनावी राजनीति के कारण कर्जमाफी बहुतों के लिए एक आदत की तरह बन गई है। कृषि कर्जमाफी जहाँ बैंकों के लिए बुरा है वहीं इसकी वजह से नए लोन देते समय बैंक किसानों को मना करने लग जाती है। इसके अलावा ज्यादातर किसान जो कर्ज चुकाने में सक्षम होते हैं वे भी अपना कर्ज चुकाना बंद कर देते हैं। कई लोग तो बस इसी आस में कृषि लोन ले लेते हैं कि आगे चलकर सरकार इसे माफ़ कर ही देगी। इन सबका असर बैंकों की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है। इसके बाद बैंक नए कर्ज देने में तब तक सुस्त से हो जाते हैं, जब तक सरकार खुद उन्हें उनका पैसा ना लौटा दे, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कई वर्षों का समय लग जाता है। जब बैंक किसानों को कर्ज नहीं देती तब वे नॉन बैंकिंग स्रोत से कर्ज लेते हैं जो उनके लिए ज्यादा खतरनाक होता है।

Chart 1

Chart 2

Chart 3

BJP repeating the same mistake which Congress did in 2014

क्या राहुल गांधी का अत्यधिक मज़ाक बनाकर भाजपा समर्थक वही ग़लती नहीं कर रहे हैं जो कांग्रेस ने 2014 में की थी?

एक बड़ी पुरानी कहावत है ‘बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ’। ये कहावत भारतीय राजनीति के अलग अलग कालखंडों में कई बार बिलकुल सच साबित हुई है और आज यही कहावत प्रमुख विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए सच होती प्रतीत हो रही है। जो दल साढ़े चार साल पहले पूरे देश भर में महज 44 सीटों पर सिमट कर लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल होने का हक़ भी खो चुकी थी आज वही दल हिंदी पट्टी के तीन बड़े और प्रमुख राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हो गई है। यह गहन विचार करने वाली बात है कि कैसे एक व्यक्ति जो हर मंच पर दिए अपने भाषणों के लिए मज़ाक बनता रहता है उसने कांग्रेस पार्टी को हालिया विधानसभा चुनावों में सफलता दिला दी है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं राहुल गांधी की जो हर तरफ मज़ाक का पात्र बने हुए है। पर मज़ाक बनने के बाद भी इस बार वो अच्छी सफलता पा गए। अगर हम नहीं सम्हले तो शायद वो आगे भी सफल हो सकते है। आप सोच रहे होंगे कि राहुल कैसे सफल हो सकता है? तो आप सही हैं, चूंकि राहुल वर्तमान में सरकार का हिस्सा नहीं है तो वे अपने किये गए कार्यों से अपनी काबिलियत नहीं दिखा सकते पर उनके भाषणों में होने वाली चूक का प्रचार पूरे देशभर में होता है।

इस प्रचार में राहुल गांधी का सबसे ज्यादा साथ देते हैं खुद भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक। भाजपा समर्थक राहुल गांधी की हर छोटी मोटी बात पर तंज कसते और विरोध करते हुए नजर आते हैं। इस तरह से भाजपा समर्थक खुद ही प्रमुख विपक्षी दल के अध्यक्ष की निगेटिव पब्लिसिटी करते है। इस प्रकार की पब्लिसिटी से भी राहुल का जनता के साथ कनेक्शन बढ़ता है और वे राहुल के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उनको पढ़ते हैं, उनको सुनते हैं और उनके बारे में जानते हैं। इस तरह से नकारात्मकता फैलने के बावज़ूद भी राहुल अपनी पहुँच आम लोगों तक बना जाते हैं।

हम पिछले दो दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा कई बार हुआ है कि नकारात्मक पब्लिसिटी के बल पर कई लोगों ने अपनी राह सुगम बना ली और सत्ता के शिखर तक पहुँच गए। अगर 21वीं सदी के शुरूआती सालों की बात करें तो पूर्व कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने अपने शासन काल में बेहतरीन कार्य किये थे और देश विकास के पथ पर था परन्तु 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा समर्थकों ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने का मुद्दा जोर शोर से उठाया और उनके खिलाफ बहुत सारी नकारात्मक बातें की गई जिसका फायदा सोनिया और कांग्रेस को मिला। जो भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी वो बुरी तरह से हारी और अटल जी जैसा प्रधानमंत्री भारत ने खो दिया।

कुछ ऐसा ही नकारात्मक प्रचार साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कई सारी अनरगल बातें कांग्रेस के नेताओं द्वारा कही गई। मोदी जी को इस दौरान ‘मौत का सौदागर’ जैसे नकारात्मक विशेषणों के साथ पुकारा गया जिसने पहले से प्रसिद्ध नरेंद्र मोदी को और ज्यादा प्रचारित किया जिसकी वजह से भाजपा को चुनावों में अप्रत्याशित सफलता हासिल हुई और इंदिरा गांधी के बाद मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्हे इतनी ज्यादा सीटें हासिल हुई थी।

प्रधानमंत्री मोदी के अलावा नकारात्मक प्रचार का फायदा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भी साल 2015 में मिला जो भाजपा समर्थकों द्वारा उनपर किये जाते थे। आखिर में इन निगेटिव पब्लिसिटी ने भी अपना कमाल कर दिखाया और 70 सीटों की विधानसभा में केजरीवाल को कुछ 67 सीटों की प्रचंड जीत हासिल हुई थी।

ऊपर बताये गए सारे उदाहरण ज्यादा पुराने नहीं हैं इसलिए हमें इन्हे समझने की जरुरत है और राहुल गांधी का नकारात्मक प्रचार करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों का सकारात्मक प्रचार करने की जरुरत है। पिछले साढ़े चार साल और आने वाले छह महीनों में किये गए और किये जाने वाले सारे विकास कार्यों को देश के कोने कोने में प्रचारित कर के ही हम नरेंद्र मोदी जी को पुनः देश का प्रधानमंत्री बना पाएंगे।

isro ne launch kiya GSAT-7A

GSAT-7A: इसरो लहरा रहा है अंतरिक्ष में भारतीय सफलता के परचम, मोदी सरकार दे रही है बढ़ावा

पिछले कुछ सालों से भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अनंत अंतरिक्ष में अपनी कामयाबी के परचम लहरा रहा है। इस दौरान किये गए ज़बरदस्त कार्यों से इसरो ने विश्व के अग्रणी देशों के अंतरिक्ष एजेंसियों को पीछे छोड़ दिया है। चंद्रयान हो या मंगलयान या फिर पिछले साल एक ही प्रक्षेपण में एक साथ 103 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने का कारनामा करना हो, इसरो ने हर बार अपनी महत्ता विश्व पटल पर साबित की है और भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी देश बना दिया है। इसी कड़ी में इसरो ने बुधवार को एक और सफलता हासिल करते हुए GSAT-7A के प्रक्षेपण में सफलता प्राप्त की है।

बुधवार की शाम को जब घड़ी में 4 बजकर 10 मिनट हुए तब आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से GSAT-7A को सफलता पूर्वक लॉन्च कर दिया गया। बता दें की यह इसरो द्वारा किया गया इस साल का 17वां मिशन है जिसे भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सफल बनाया है। GSAT-7A नाम के इस 2250 किलोग्राम वजनी सेटेलाइट को जीएसएलवी-एफ11 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया है। इस सैटलाइट की लागत 500-800 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसमें 4 सोलर पैनल लगाए गए हैं, जिनके जरिए यह अपने लिए करीब 3.3 किलोवॉट बिजली पैदा कर पायेगा और अगले आठ साल तक चलेगा।


इस सेटेलाइट को पूरी तरह से इसरो के वैज्ञानिकों ने बनाया है और यह अपनी सेवायें लगातार आठ सालों तक देता रहेगा। यह सैटेलाइट भारतीय क्षेत्र में केयू-बैंड के उपभोक्ताओं को संचार संबंधित क्षमताएं मुहैया कराने का कार्य करेगा। इसके माध्यम से खास कर के वायुसेना को अपना संपर्क और बेहतर बनाने में सहायता मिलेगी। यह सैटेलाइट वायुसेना के विमान, हवा में मौजूद अर्ली वार्निंग कंट्रोल प्लेटफॉर्म, ड्रोन तथा ग्राउंड स्टेशनों को आपस में जोड़ने में मदद करेगा। इस सेटेलाइट के माध्यम से एक सेंट्रलाइज्ड नेटवर्क तैयार हो जाएगा जो कनेक्शन स्थापित करने में मदद करेगा।

इसी महीने 14 दिन पहले 5 दिसंबर को इसरो का बनाया गया सबसे भारी (5854 किलोग्राम) उपग्रह जीसैट-11 फ्रेंच गुयाना से लॉन्च किया गया था। यह 16 गीगाबाइट प्रति सेकंड की रफ्तार से डेटा भेजने में मददगार है। इसके अलावा अगले महीने बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग प्रस्तावित है। चंद्रयान-2 को 31 जनवरी 2019 को लॉन्च किया जाना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के द्वारा किये जा रहे कार्यों को हमेशा प्रोत्साहित किया है और बढ़ावा दिया है। ये सही है की इसरो की सफलता के पीछे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत है पर 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से जिस प्रकार से इसरो को प्रोत्साहन मिला है उससे इसरो विश्व पटल पर लगातार सफलता के झंडे लहरा रहा है। ये पीएम मोदी का सपना है की भारत 2022 तक अंतरिक्ष में इंसान भेजे और मोदी जी के इस सपने को पूरा करने में इसरो के सभी वैज्ञानिक लगे हुए हैं।

बहरहाल आज लांच किये गए सेटेलाइट के प्रक्षेपण के बाद इसरो के चेयरमैन डॉक्टर सिवन ने सभी वैज्ञानिकों को बधाइयाँ देते हुए बताया की यह ख़ुशी की बात है की इस साल इसरो ने 17 सफल प्रक्षेपण किये हैं और अगले साल हम इससे भी दो कदम आगे बढ़ेंगे और 32 प्रक्षेपण करेंगे। इसरो के चेयरमैन डॉक्टर सीवन की ये बातें बताती हैं की इसरो आत्मविश्वास से लबरेज है और आने वाले सालों में अपनी सफलता को और बढ़ाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है।

India is a country that never stops PM Modi at Republic Summit

पीएम मोदी ने रिपब्लिक समिट में कहा, भारत एक ऐसा देश है जो कभी नहीं रुकता

सबसे पहले मैं यहां मुंबई के अस्पताल में हुए हादसे पर अपना दुःख व्यक्त करता हूं। मेरी मुख्यमंत्री जी से इस बारे में बात हुई है। राज्य सरकार, पीड़ित परिवारों की हर संभव मदद कर रही है। इस हादसे में जिन परिवारों ने अपनों को खोया है, उनके प्रति मेरी पूरी संवेदना है।

साथियों,

पत्रकार द्वारा प्रेरित, पत्रकार द्वारा संचालित, शुद्ध पत्रकारिता के प्रति प्रतिबद्ध, रिपल्बिक टीवी, एक-सशक्त प्रयोग है। बहुत कम समय में आपके चैनल ने अपनी पहचान बनाई है। आप सभी देश के जन-जन तक सही सूचनाएं पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। मैं Republic TV के पूरे मैनेजमेंट को, यहां काम करने वाले प्रत्येक जर्नलिस्ट को, देश के अलग-अलग हिस्सों में कार्य कर रहे रिपोर्टर्स और स्ट्रिंगर्स को बधाई देता हूं। देश की दशा और दिशा पर विचार करने के लिए, इस प्रकार के आयोजन कर आप नए Ideas, नए Solutions के लिए भी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए भी आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।

साथियों,

आजादी के पहले, आजादी के दीवाने ही पत्रकारिता करते थे। पत्र-पत्रिकाएं, आजादी का बिगुल बजाती थीं। आजाद भारत में, सुखी-समृद्ध देश के लिए सकारात्मक खबरों की भी बहुत जरूरत है। देशवासियों में कुछ करने की इच्छा जगे, देश को आगे बढ़ाने की इच्छा जगे, ये बहुत आवश्यक है। जैसी स्वराज के आंदोलन की स्पिरिट थी, वैसी ही सुराज्य के आंदोलन की ऊर्जा होनी चाहिए। भारत, विश्व में एक ताकत के रूप में उभरे, इसके लिए कई क्षेत्रों में हमें वैश्विक ऊँचाई को प्राप्त करना होता है।

चाहे साइंस हो, टेक्नोलॉजी हो, इनोवेशन हो, स्पोर्ट्स हो, उसी प्रकार दुनिया में भारत की आवाज बुलंद करने के लिए हमारा मीडिया भी वैश्विक पहुंच बनाए, वैश्विक पहचान बनाए, ये समय की मांग है। आज भारत के मीडिया वर्ल्ड को, इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए।

साथियों,

Surging India, ये दो शब्द 130 करोड़ भारतीयों की भावनाओं का प्रकटीकरण हैं। ये वो फीलिंग्स हैं, वो वाइब्रेशंस हैं, जो आज पूरी दुनिया अनुभव कर रही है। समाज जीवन के हर पहलू में वो वैश्विक मंच पर अपनी सही जगह की तरफ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था हो, भारत की प्रतिभा हो, भारत की सामाजिक व्यवस्था हो, भारत के सांस्कृतिक मूल्य हों या फिर भारत की सामरिक ताकत, हर स्तर पर भारत की पहचान और मजबूत हो रही है।

साथियों,

आज मैं मीडिया के मंच पर हूं, सवाल आपको बहुत प्रिय होते हैं, इसलिए मैं भी कुछ सवालों के साथ अपनी बात की शुरुआत करूंगा। कहते हैं जैसा संग वैसा रंग, कुछ पल आपके साथ का संग है तो मुझे भी आदत लगती है। जैसे आपके सवालों में बहुत कुछ छिपा होता है, वैसे ही मेरे सवालों में भी आपको Surging India के बहुत से उत्तर अपने आप मिल जाएंगे ।

साथियों,

क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि भारत इतनी जल्दी फाइव ट्रिलियन डॉलर Economies के क्लब में शामिल होने की तरफ अपना कदम बढ़ा देगा ? क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था किEase of Doing Business की रैंकिंग में 142 से 77 पर आ जाएगा, भारत टॉप 50 में आने की ओर तेज़ गति से कदम रख रहा है । क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि भारत में एसी ट्रेन में चलने वाले लोगों से ज्यादा लोग हवाई सफर करने लगेंगे ? हवाई जहाज में बैठे होंगे? क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि रिक्शा चलाने वाला भी,

सब्जी वाला भी और चायवाला भी BHIM App का इस्तेमाल करने लगेगा, अपनी जेब में रूपे डेबिट कार्ड रखकर अपना आत्मविश्वास बढ़ाएगा ?

क्या चार पहले किसी ने सोचा था कि भारत का एविएशन सेक्टर इतना तेज आगे बढ़ेगा कि कंपनियों को एक हजार नए हवाई जहाज का ऑर्डर देना पड़ेगा ? और आपको जानकर के हैरानी होगी कि हमारा देश में आज़ादी से अबतक कुल 450 हवाई जहाज operational है, प्राइवेट हो, पब्लिक हो , सरकारी हो, कुछ भी हो । एक साल में एक हज़ार नए हवाई जहाज का order यह बताता है । क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि भारत में नेशनल वॉटरवेज एक सच्चाई बन जाएंगे, कोलकाता से एक जहाज गंगा नदी पर चलेगा और बनारस तक सामान लेकर आएगा ? क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि हम भारत में ही बनी, बिना इंजन वाली ऐसी ट्रेन का परीक्षण कर रहे होंगे, जो 180 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार पर दौड़ेगी ?

क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि भारत एक बार में सौ सैटेलाइट छोड़ने का रिकॉर्ड बनाएगा, और इतना ही नहीं गगनयान के लक्ष्य भी पर आज वह आगे बढ़ रहा है । क्या चार साल पहले किसी ने सोचा था कि Start Up की दुनिया से लेकर Sports की दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी ?

साथियों,

चार साल पहले ये भी किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन हेलीकॉप्टर घोटाले का इतना बड़ा राजदार, क्रिश्चियन मिशेल भारत में होगा, सारी कड़ियां जोड़ रहा होगा। चार साल पहले ये भी किसी ने नहीं सोचा था कि 1984 के सिख नरसंहार के दोषी कांग्रेस नेताओं को सज़ा मिलने लगेगी, लोगों को इंसाफ मिलने लगेगा। आखिर ये परिवर्तन क्यों आया ? देश वही है, लोग वहीं है, ब्यूरोक्रेसी वही है, हमारे साधन वही हैं, संसाधन वही हैं, फिर इस परिवर्तन की वजह क्या है ?

साथियों,

हमारे यहां एक साइकोलॉजी रही है कि जब सरकार के खिलाफ आरोप लगाते हुए कोई अदालत में जाता है, तो माना जाता है कि सरकार गलत होगी और आरोप लगाने वाला सही होगा । यह आमतौर पे हमारी मान्यता है, घोटाले हों, भ्रष्टाचार के आरोप हों, यही एक मानसिकता हमारे मन में घर कर गयी है, क्यूंकि हमने वही देखा है पहले । लेकिन ये भी पहली बार हुआ है जब कुछ, सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत गए और अदालत ने उन्हें दो टूक जवाब मिला कि जो काम हुआ है, वो पूरी पारदर्शिता से हुआ है, ईमानदारी से हुआ है। हमारे देश में ऐसा भी होगा, चार साल पहले ये भी किसी ने नहीं सोचा था।

भाइयों और बहनों, मैं अकसर देखता हूं कि आप लोग ब्रॉडकास्ट के दौरान पहले और अब की Two Window, यानि दो स्थितियों का फर्क बहुत दिलचस्पी से दिखाते हैं। मेरे पास भी पहले और अब की बहुत दिलचस्प तस्वीर है जो Surging India को और प्रभावी बनाती है।

साथियों,

आज देश के सामने 2014 से पहले की एक तस्वीर है जब स्वच्छता का दायरा 40 प्रतिशत से भी कम था। अब 2018 के अंत में वही दायरा बढ़कर 97 प्रतिशत पहुंच चुका है। आज देश के सामने 2014के पहले की तस्वीर है, जब देश के 50 प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाते नहीं थे। अब 2018 के अंत में, देश के हर परिवार बैकिंग सिस्टम से जुड़ चुका है। आज देश के सामने 2014 के पहले की एक और तस्वीर है जहां टैक्स देने वालों की संख्या 3 करोड़ 80 लाख थी। अब इस साल ये संख्या बढ़कर लगभग 7 करोड़ हो चुकी है।

आज देश के सामने 2014 के पहले की एक तस्वीर है जहां सिर्फ 65 लाख उद्यमी टैक्स देने के लिए रजिस्टर्ड थे। अब आज स्थिति ये भी है कि सिर्फ डेढ़ साल में 55 लाख नए उद्यमी रजिस्ट्रेशन के लिए आगे आए हैं। आज देश के सामने 2014 के पहले की एक तस्वीर है जहां मोबाइल बनाने वाली सिर्फ 2 कंपनियां थीं। आज उन्हीं मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों की संख्या बढ़कर 120 के पार हो गई है। 2 से 120 ।

साथियों,

पहले और अब का ये बदलाव, Surging India की बहुत मजबूत तस्वीर को सामने रखता है। ये सब इसलिए हो रहा है कि आज देश में Policy Driven Governance और Predictable Transparent Policies को आधार बनाकर हमारी सरकार आगे बढ़ रही है। इसी का नतीजा है कि आज भारत में दोगुनी रफ्तार से हाईवे बन रहे हैं, दोगुनी रफ्तार से रेल लाइनों का दोहरीकरण हो रहा है, बिजलीकरण हो रहा है, 100 से ज्यादा नए एयरपोर्ट और हेलीपोर्ट पर काम हो रहा है, 30-30, 40-40 साल से अटकी हुई योजनाओं को पूरा किया जा रहा है।

आज आप भारत में कहीं भी जाएं, एक साइनबोर्ड जरूर देखने को मिलेगा- ‘Work in Progress’.

साथियों,

ये साइनबोर्ड सही मायने में ये दिखाता है कि ‘India in Progress’. सिर्फ सड़कें, फ्लाईओवर, मेट्रो नहीं, यहाँ नया भारत बनाने का काम हो रहा है ! मैं आज उस शहर में हूं, जिसके लिए कहते हैं ‘The city that never stops’. मैं यहां खड़ा होकर आपको ये कहना चाहता हूं कि Today, ‘India is a country that never stops’. न रुकेंगे, न धीमा पड़ेंगे, न थमेंगे : ये इंडिया ने ठान लिया है !

साथियों,

यहां मुंबई में भी 22 किलोमीटर लंबे मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक का निर्माण, मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन का काम, डबल लाइन सब-अर्बन कॉरिडोर का काम, सैकड़ों किलोमीटर के मेट्रो कॉरिडोर का काम, सब2014 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद ही शुरू हुआ है। मुझे बताया गया है कि अंधेरी-विरार के व्यस्त section में नई ट्रेनें भी दी जा रही हैं, जिससे इस रेल लाइन की क्षमता 33 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।

साथियों,

देश की ये आवश्यकताएं पहले भी थीं, मुंबई की ये आवश्यकताएं, ये जरूरतें, पहले भी तो थीं, कई दशकों से थीं। लेकिन काम अब हो रहा है। सोचिए क्यों ? इसका भी जवाब मैं आपको देना चाहता हूं और कोशिश करूंगा कि आप टीवी वालों के तौर-तरीकों से ही जवाब दूं।

मैं जब कभी समय मिलता है, तो अरनब को देखता हूं, देखने से ज्यादा सुनता हूं कि कैसे वो बहुत सारे Guests को लेकर बैठ जाते हैं, और सवाल-जवाब करते हैं। Two Window और Multiple Window का पूरा ताम-झाम होता है।

साथियों,

ऐसी ही एक Multiple Window हर महीने दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में भी बनती है। ये बैठक होती है प्रगति की और इसमें लेखा-जोखा लिया जाता है, दशकों से अटके हुए प्रोजेक्ट का। पिछले चार साल में खोज-खोजकर मैंने वो प्रोजेक्ट निकाले हैं, जो जाने कब से फाइलों में दबे हुए थे। मैं आपको जानकारी देना चाहता हूं कि अब तक 12 लाख करोड़ रुपए से भी ज़्यादा के पुराने प्रोजेक्ट्स की समीक्षा, इस बैठक में की जा चुकी है। एक – एक प्रोजेक्ट की क्या अहमियत होती है, कैसे मेहनत होती है, ये भी मैं आपको मुंबई का ही उदाहरण लेकर बताता हूं।

साथियों,

मुझे याद है करीब तीन साल पहले ‘प्रगति’ की बैठक में नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट का विषय आया था, तो मैं हैरान रह गया था। मुंबई में दूसरे एयरपोर्ट को लेकर नवंबर 1997 में पहली बार कमेटी बनी थी। तब से लेकर करीब-करीब 20 साल तक सिर्फ फाइलें ही इधर से उधर दौड़ती रहीं, मैं कहूंगा उड़ती रहीं । इस बीच कितनी सरकारें आईं, कितनी चली गईं, फाइलें उड़ती रहीं, जहाज कभी नहीं उड़ा। लेकिन नवी मुंबई एयरपोर्ट की फाइल आगे नहीं बढ़ पाई।

प्रगति की बैठक में Multiple Window बनाकर, सारे अफसरों, सारे विभागों को एक साथ, आमने-सामने लाकर, हमारी सरकार ने इस प्रोजेक्ट के सामने आ रहे सारे रोड़े दूर किए, और अब नवी मुंबई एयरपोर्ट पर तेजी से काम चल रहा है।

सोचिए, ये सिर्फ एक प्रोजेक्ट की कहानी है। और मैं फिर बता दूं, ऐसे ही 12 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स को हम तेज़ गति से आगे बढ़ा चुके हैं। Surging India के पीछे, जो कार्य-संस्कृति में बदलाव आया है, ये उसका जीता जागता उदाहरण है।

साथियों,

कुछ साल पहले एक मंच पर मैंने 2 मित्रों की एक कहानी सुनाई थी। एक बार ये दो दोस्त जंगल में टहलने के लिए चले गए । लेकिन बड़ा घना जंगल था भयानक पशु थे तो अपने साथ सुरक्षा का भी सामान रखे हुए थे, बढ़िया quality का pistol, बंदूक अपने साथ थी । और फिर उनको नज़र नहीं आ रहा होगा तो रुक करके गाडी से उतरके, सोचा की ज़रा टहल ले तो टहलने के लिए निकल पड़े और जब टहलने के लिए निकल पड़े तो अचानक एक शेर आ गया। और सामान तो गाड़ी में पड़ा था, बंदूक तो गाड़ी में पड़ी थी, वहीं छोड़ आये और ये टहल रहे थे शेर आ गया। लेकिन अब इस परिस्थिति का मुकाबला कैसे करें? भागे तो भागे जाएं कहाँ? लेकिन उसमें से एक जो था उसने अपनी जेब से revolver का लाइसेंस निकाल के शेर को दिखाया की देख मेरे पास है।

साथियों,

हमारे देश में यही होता रहा है । साथियों, यही हमारी पहले की सरकार की approach थी। कुछ भी हो Act दे दो Action का कोई ठिकाना नहीं होता था। जब मैंने ये कहानी सुनाई थी, तब तो मैं प्रधान मंत्री भी नहीं था। तब मैंने कहा था कि हमें Act से भी आगे बढ़कर मजबूती के साथ Action लेने की ज़रूरत है। सरकार में आने के बाद, ये हमने कैसे साकार किया मैं आपको बताता हूं।

साथियों,

पिछली सरकार Food Security Act लेकर आई, बहुत गाने बजाये, उनके जो गीत गाने वाले लोग हैं बहुत चिल्ला चिल्ला के गाते रहते थे। बहुत हल्ला किया गया, बहुत तालियां बटोरी गईं, लेकिन हम जब 2014 में सत्ता में आए तब तक सिर्फ 11 राज्यों ने ही इसका लाभ लिया था। सोचिए, इतनी तालियां बटोरने के बाद भी भारत की बहुत बड़ी जनसँख्या इसका लाभ नहीं ले पा रही थी ।

हमने आने के बाद सुनिश्चित किया कि सारे 36 राज्यों और union territories के लोगों को इसका लाभ पहुंचना चाहिए। इसी तरह 2013-14 में बड़ी चर्चा चल रही थी कि गैस के 10 सिलेंडर देंगे या 12सिलेंडर देंगे और इसके नाम पर चुनाव लड़े जा रहे थे। लेकिन 2014 तक भारत के सिर्फ 55 प्रतिशत घरों में ही गैस का कनेक्शन था।

आप सोचिए 10 सिलेंडर-12 सिलेंडर के नाम पर चुनाव लड़े गए और देश की आधी जनता के पास तो गैस का कनेक्शन ही नहीं था।

साथियों,

हमारी सरकार, समस्याओं के स्थाई समाधान के लिए काम कर रही है, देश के सामने जो चुनौतियां हैं, उनके Permanent Solutions की ओर बढ़ रही है। हम ऐसी व्यवस्थाओं को तोड़ रहे हैं, खत्म कर रहे हैं, जिन्होंने दशकों से देश के विकास को रोक रखा था। मैं आपको Insolvency and Bankruptcy Code यानि IBC का उदाहरण देना चाहता हूं।

साथियों,

हमारे देश में कर्ज को लेकर एक अजीब सी परंपरा थी कि कोई गरीब या निम्न मध्यम वर्ग का व्यक्ति एक लाख का कर्ज बैंक ले, और उसे लौटा न पाए तो उसका बचना मुश्किल हो जाता था । लेकिन इसके अलावा एक और तस्वीर से आप भली-भांति परिचित रहे हैं। देश में हजारों ऐसी बड़ी-बड़ी कंपनियां थीं, जो बैंक से 5-10 लाख नहीं, 5-10 करोड़ नहीं, बल्कि पांच सौ हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेती थीं।

लेकिन अलग-अलग वजहों से जब ये कंपनियां बीमार पड़ती थीं, घाटे में चली जाती थीं, बैंकों का पैसा नहीं लौटा पातीं थीं, तो इन कंपनियों को और इन कंपनियों के मालिकों को कुछ नहीं होता था।

साथियों,

आजादी के बाद से 70 साल से देश में यही व्यवस्था चली आ रही थी। जानते हैं, ऐसा क्यों था ? ऐसा इसलिए था क्योंकि इन कंपनियों को एक खास तरह का सुरक्षा कवच मिला हुआ था। ये एक ऐसा सुरक्षा कवच, जिसमें कुछ खास लोगों, कुछ खास परिवार के निर्देश चलते थे। ये ऐसा सुरक्षा कवच था जो बैंकों को कार्रवाई से रोकता था, जो कंपनियों को भी प्रोत्साहित करता था कि क्यों लौटाओ बैंकों का पैसा, कौन आपसे पैसे मांगने आ रहा है ?

भाइयों और बहनों, मुझे पता कि कितनी दिक्कतें आईं, किस तरह के दबाव का सामना करना पड़ा, लेकिन 2016 में Insolvency and Bankruptcy Code बनाकर मैंने इस सुरक्षा चक्र को तोड़ दिया। आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि बैंकों से कर्ज लेकर बैठ जाने वाले, बीमार कंपनी के बहाने देश का हजारों करोड़ रुपए लेकर बैठे ऐसे लोग, ऐसी कंपनियां खुद अपना पैसा लौटाने लगी हैं।

भाइयों और बहनों,

सिर्फ दो साल में अब तक सवा लाख करोड़ रुपए खुद चलकर ऐसी कंपनियों ने बैंकों को और अपने देनदारों को लौटाए हैं। इसमें से बहुत सारी राशि छोटे सप्लायर्स की थी, छोटे उद्यमियों की थी, MSMEसेक्टर की थी। जिन कंपनियों पर इस कानून का डंडा चला है, ऐसी कंपनियों से अब तक पौने दो लाख करोड़ रुपए का कर्ज वापस लिया जा चुका है। यानि एक तरह से देखें तो 2016 में जो नया कानून बनाया, उसके बाद करीब-करीब तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज इन करोड़पतियों ने, इनकी कंपनियों ने अपने बैंकों को, अपने देनदारों को चुकाने के लिए मज़बूर होना पड़ा है । और ये प्रक्रिया आज भी जारी है।

साथियों,

इसी तरह बैंकों को लूटकर जो भगोड़े हो जाते हैं, उनके लिए भी सख्त कानून अपना काम कर रहा है। अब देश में ही नहीं विदेशों में भी ऐसे अपराधियों की संपत्ति कुर्क हो रही है। ऐसे तमाम अपराधियों को दुनिया के किसी भी कोने में छुपने की जगह नहीं मिले, इसके लिए ये सरकार प्रतिबद्ध है।

साथियों,

भ्रष्टाचार को भारत में न्यू नॉर्मल मान लिया गया था। भारत में ये तो चलता ही है, इतना तो चलता ही है। अगर कोई सामने से आवाज़ उठाता था, नियम-कायदों की याद दिलाता था, तो सामने से तुरंत जवाब मिलता था कि, ये भारत है, यहां ऐसा ही चलता है। ऐसा ही क्यों चलना चाहिए ? कब तक चलना चाहिए ? स्थिति को वैसा ही क्यों रहना चाहिए ? ऐसी स्थिति को बदलना क्यों नहीं चाहिए ?

साथियों,

पिछले 4 साढ़े चार साल में, मैं इसी स्थिति को बदलने का प्रयास कर रहा हूं, देश को पीछे ले जाने वाली बंदिशों को तोड़ने का काम कर रहा हूं। कुछ लोग देश को भ्रमित करने में जुटे हुए हैं। लेकिन मुझे सत्य की शक्ति पर भरोसा है, और सत्यनिष्ठ देशवासियों पर मेरा भरपूर भरोसा है।

भाइयों और बहनों, आज भारत की विदेश नीति घरेलू मामलों, तुष्टिकरण के दबाव के तहत हम नहीं चल रहे हैं, बल्कि हमारी सारी नीतियां, सारी योजनाएँ सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय राष्ट्रहित से तय होती है। हमें कहां जाना है, किस देश के साथ संबंध रखने हैं, वो दोनों देशों के आपसी हितों से तय होते हैं।

यही कारण है कि भारत के पासपोर्ट की ताकत आज बढ़ी है। आज पूरी दुनिया में भारत की आवाज़ गंभीरता से सुनी जा रही है। दुनिया की ताकतवर संस्थाओं में भारत को प्रतिनिधित्व मिल रहा है। भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता के साथ विचार होता है और भारत के लिए विशेष प्रावधान किए जाते हैं। OPEC जैसी संस्थाओं में प्रतिनिधित्व ना होने के बावजूद भारत की बात सुनी जाती है।

साथियों,

ये दुनिया में भारत के प्रति बढ़े विश्वास और हमारे मजबूत संबंधों का ही परिणाम है, कि भारत को धोखा देने वाले, हमारी व्यवस्थाओं से खेलने वालों को कानून के कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। उनको भारत को सौंपा जा रहा है।

साथियों,

जब सार्वजनिक जीवन में सुचिता, पारदर्शिता हो और लोगों के लिए काम करने के प्रति, Conviction हो, कमिटमेंट हो तो बड़े और कड़े फैसले लेने का हौसला अपने आप आ जाता है । हमारे देश में दशकों से जीएसटी की मांग थी। आज हम संतोष के साथ कह सकते हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद बाजार की विसंगतियां दूर हो रही हैं और सिस्टम की कार्य क्षमता बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता की तरफ हम बढ़ रहे हैं।

समाज के मेहनती औऱ उद्यमी लोग, जो बाजार से जुड़े हैं, उन्हें एक साफ-सुथरी, सरल, इंस्पेक्टर राज से मुक्त व्यवस्था मिल रही है। पूरे भारत ने एक-मन होकर, इतने बड़े टैक्स रीफॉर्म को लागू करने के लिए प्रयास किया। हर किसी ने अपना योगदान दिया है। हमारे कारोबारियों और लोगों के इसी जज्बे का परिणाम है कि भारत इतना बड़ा बदलाव करने में सफल हो सका। विकसित देशों में भी छोटे-छोटे टैक्स रीफॉर्म लागू करना आसान नहीं होता है।

जैसा मैंने पहले कहा-जीएसटी लागू से पहले रजिस्टर्ड इंटरप्राइजेज की संख्या मात्र 66 लाख थी। जो अब बढ़कर 1 करोड़ 20 लाख हो गई है। शुरुआती दिनों में जीएसटी अलग-अलग राज्यों में वैट और एक्साइज की जो व्यवस्था थी, उसी की छाया में आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे विचार-विमर्श हुआ, stakeholders से बात हुई, राज्य सरकारों से बात हुई, economists से बात हुई, टैक्स practitioners से बात हुई, धीरे-धीरे इसमें भी बदलाव आते रहे।

साथियों,

आज जीएसटी का सिस्टम काफी हद तक स्थापित हो गया है। और हम अभी भी आवश्यकता के अनुसार जन सामान्य के अनुकूलता के हिसाब से उसको ढालने के लिए प्रतिबद्ध हैं । यह बहुत महत्वपूर्ण बात आपको बताना चाहता हूँ आज हम उस स्थिति की तरफ पहुंच रहे हैं, जहां 99 प्रतिशत चीजें, 18 प्रतिशत या उससे कम टैक्स के दायरे में लाई जा सकती हैं। और हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसके बाद जो एक आध-प्रतिशत लक्जरी आइटम्स होंगे, वे ही शायद 18 प्रतिशत के बहार रह जायेंगे, जिसमें कोई हवाई जहाज खरीद करके लाता है, कोई बहुत बड़ी मेहेंगी गाडी खरीद करके लाता है,शराब है, सिगरेट है ऐसी कुछ चीजे, मुश्किल से एक परसेंट भी नहीं । हमारा ये मत है कि GST को जितना सरल और सुविधा जनक किया जा सकता है, उसे किया जाना चाहिए। और यह स्पष्ट है, और मैं तो अभी जो GST council की मीटिंग होगी उसके लिए भी मैंने अपने सुझाव दे दियें हैं, क्यूंकि वह सभी राज्य मिल करके तय करते हैं, 99 परसेंट चीजें 18 परसेंट से नीचे हो जाएँगी आधा पौना या एक परसेंट, हवाई जाहज हो, बड़ी गाडी हो, शराब हो, सिगरेट हो, ऐसी चीजों को छोड़कर, सामान्य मानव से जुडी हुई सारी चीजे 99 परसेंट, 18 परसेंट से नीचे हो जाएँगी । और यह काम हम लगातार करते करते लक्ष्य को पार करने के दिशा में पहुंच रहे हैं।

साथियों,

मेरा और मेरी सरकार की सोच और विजन स्पष्ट है। दुनिया का सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश छोटे सपने नहीं देख सकता। सपने, आकांक्षाएं और लक्ष्य तो ऊंचे ही होने चाहिए। हम बड़े लक्ष्य की तरफ ईमानदारी से प्रयास करेंगे, तो उसे प्राप्त भी करेंगे। लेकिन लक्ष्य ही छोटा रखोगे तो सफलता भी छोटी ही नजर आएगी।

साथियों,

सरकार का पूरा सिस्टम, पूरी मशीनरी 70 वर्ष के सतत विकास से बनी है। 4 साढ़े 4 वर्ष पहले भी यही सिस्टम था, यही मशीनरी थी। लेकिन आज काम करने की स्पीड और स्केल दोनों कई गुणा बढ़ गए हैं। आज अनेक लक्ष्य ऐसे हैं जिनकी तरफ हम तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। सबके पास अपना घर हो, हर घर में 24 घंटे रोशनी हो, साफ पानी और साफ ईंधन सबको सुलभ हो, इन लक्ष्यों के बहुत नज़दीक आज भारत पहुंच रहा है। बच्चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुज़ुर्गों को दवाई, किसान को सिंचाई और जन-जन की सुनवाई, इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक-एक पल हमारा समर्पित है।

साथियों,

एक नया विश्वास लिए, न्यू इंडिया, विश्व पटल पर अपनी भूमिका तय कर रहा है। नए ग्लोबल ऑर्डर में अपने रोल को Redefine कर रहा है। आने वाले दो दिनों में इस रोल पर देश विदेश से जुटे मेहमान यहां गंभीर चर्चा करेंगे, इसके लिए मेरी तरफ से आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं हैं । नई ऊर्जा पर सवार New India के बारे में बताने का आपने अवसर दिया, इसके लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं । और मुझे विश्वास है की जिस सपने को लेकर के पत्रकारिता से जुड़े हुए कुछ नौजवानो ने रिपब्लिक टी.वी. का प्रयोग किया है और अब तो हिंदी में भी जा रहे हैं, देश की अन्य भाषाओं में भी जाने का सोचेंगे लेकिन विश्व में भी अपनी जगह बनाने का सपना लेकर के चलेंगे इसी शुभकामना के साथ बहुत बहुत धन्यवाद ।

bjp ko nota ne haraya congress ne nahi

भारतीय जनता पार्टी को नोटा ने हराया कांग्रेस में कहाँ दम था!

27 सितंबर 2013 की तारीख भारत की चुनावी प्रक्रिया के इतिहास में एक नई क्रांति लेकर आया था जब सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को मतदान प्रक्रिया में नोटा अर्थात किसी भी उम्मीदवार को वोट ना करने का एक विकल्प देने को कहा था। धीरे धीरे इस नए विकल्प ने अपनी प्रासंगिकता दिखानी शुरू की। साल 2014 के आम चुनाव में, नोटा को कुल 1.1% वोट मिले, जो 6,000,000 से भी अधिक थे। अगर बात हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की करें तो इसमें कुछ राज्यों में तो नोटा ने जीत और हार तय करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के लिये हुई मतगणना में नोटा के विकल्प को भी मतदाताओं ने तमाम क्षेत्रीय दलों से भी ज्यादा तवज्जो दी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी चुनाव परिणाम के अनुसार इन पांचों राज्यों में नोटा को सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में वोट दिए गए। छत्तीसगढ़ में नोटा पर पड़े वोटों का प्रतिशत 2 फीसदी रहा, यहाँ 282744 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया।

अगर बात मध्य प्रदेश और राजस्थान की करें तो यहाँ भी नोटा पर पड़े वोटों की संख्या बहुत बड़ी रही। मध्यप्रदेश में जहाँ 1.5 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को अपनाया तो राजस्थान में ये आंकड़ा 1.3 प्रतिशत रहा। मध्यप्रदेश में कुल 542295 लोगों ने नोटा पर बटन दवाया तो राजस्थान में 467781 लोगों ने नोटा को चुना। ये संख्या बहुत बड़ी है और कई सीटों पर इस संख्या के कारण अंतिम परिणामों का मार्जिन बहुत कम रहा।

अगर अंतिम चुनाव परिणामों की बात करें तो छत्तीसगढ़ में जहाँ कांग्रेस ने भाजपा को बुरी तरह से हराया वहीं राजस्थान में विशेषज्ञों के अनुमानों के विपरीत भाजपा ने सरकार के खिलाफ बहुत ज्यादा एंटी इन्कमवेंसी होने के बावज़ूद अच्छी टक्कर दी। मध्यप्रदेश में तो कांटे की लड़ाई में बीजेपी को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली और दोनों के मध्य सीटों का फर्क महज 5 रहा। हालांकि भाजपा ने मध्य प्रदेश में हार स्वीकार कर ली है, लेकिन लगातार 3 बार सत्ता में रहने के बाद सिर्फ 5 सीटों से पीछे रह जाने का अर्थ है कि भाजपा को जनता ने एकदम से नहीं नकारा है।

चुनाव नतीजों में कांग्रेस और भाजपा के मध्य महज 5 सीटों के अंतर का व्यापक अध्ययन करने पर पता चलता है की यहाँ नोटा ने कई सीटों पर अंतिम नतीजे तय करने में अहम भूमिका निभाई है। बता दें की प्रदेश में कम से कम 11 विधानसभा सीटें ऐसी रही जहां नोटा ने भाजपा के प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ दिया। अगर पूरे प्रदेश के कुल मतों का प्रतिशत देखें तो जहाँ 114 सीटों पर जीतने वाली कांग्रेस को 40.90% मत मिले तो वहीं 109 सीटें लाने वाली भाजपा को 41.00% वोट मिले जो कांग्रेस से 0.1% ज्यादा हैं। आप खुद समझ सकते हैं की 1.5% मत जो नोटा को गए वो अगर भाजपा के पास होते तो परिणाम क्या होता!

इन आंकड़ों से साफ पता चल रहा है कि नोटा का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को सहना पड़ा है और इसका फायदा विपक्षी पार्टियों ने उठाया है। ये वही विपक्षी पार्टियां हैं जो 4 साल पहले तक हर कुछ महीने पर बड़े बड़े घोटालों में संलिप्त पाई जाती थी। 2जी, सीडब्लूजी, कोलगेट, आदर्श जैसे दर्जनों बड़े बड़े घोटालों ने देश को आर्थिक तौर पर खोखला कर दिया था। उन्हीं भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं को अगर नोटा का फायदा मिल रहा है तो ये एक विचारणीय बात है। लोगों को समझना चाहिए कि वो भाजपा से अपना गुस्सा जताने के लिए कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि आज नोटा पर वोट देना मतलब कांग्रेस को फायदा पहुंचाना हो गया है।

यह माना जा सकता है कि कुछ मुद्दों पर लोग केंद्र की मोदी सरकार से नाराज हों, पर इसका यह मतलब तो नहीं की इसके लिए भाजपा की सरकार को हटाकर उस पार्टी को सत्ता दे दी जाए जो घोटालों में लिप्त थी, जिसके सत्ता-काल में हर महीने दो महीने पर देशभर में कहीं ना कहीं आतंकी धमाके होते रहते थे, या जिसके शासन काल में देश को पड़ोसी देशों से डर कर रहना पड़ता था। इन सभी मुद्दों को जब आम आदमी समझ जाएगा तो भूलकर भी वो भाजपा के अलावा किसी को नहीं चुनेगा। नोटा को चुनना मतलब कांग्रेस को चुनना है ये हम जितनी जल्दी समझ लेंगे हमारे देश के लिए उतना ही अच्छा होगा।

SC Gives Clean Chit to Modi Govt Says No Probe Into Pricing or Decision-making

SC Gives Clean Chit to Modi Govt, Says No Probe Into Pricing or Decision-making

In a big relief to the Narendra Modi government, the Supreme Court today gave clean chit to the government by dismissing all pleas to probe the Rafale fighter jet deal, which was used as a major poll plank by the opposition parties in the recent Assembly polls. The judgement comes as a major vindication for Prime Minister Narendra Modi who was personally accused of corruption by the Opposition Congress.

The apex court said that detailed scrutiny is not required in the Rafale fighter jet deal. While reading the judgement Chief Justice of India Ranjan Gogoi said that the Court is satisfied with the decision-making process and there is no occasion to doubt the process of the deal.

A three judge bench led by CJ Ranjan Gogoi said that the court lacked the technical expertise to examine issues such as pricing and the choice of offset partners. The CJI also cited national security concerns to say that it could not step into issue such as defence contracts and procurements.

The court said nobody questioned the procurement of Rafale jets when deal was finalised in September 2016.

It added that questions were raised on the jet deal only after former French president Francois Hollande came out with the statement. This cannot be the basis of judicial review, it said.

The court said it cannot compel the government to procure 126 or 36 fighter jets. That depends on its decision.

The apex court bench of Chief Justice Ranjan Gogoi, Justice Sanjay Kishan Kaul and Justice KM Joseph had reserved the verdict on November 14. While reserving the verdict, the apex court had said that the pricing details of Rafale jets could only be discussed after it decides on whether to make it public.

The observation by an apex court bench had came after the government refused to publicly divulge pricing details of the deal, saying it would give advantage to India’s enemies. The deal is estimated to be about Rs 58,000 crore (about USD 8 billion).

The Centre had defended the deal to procure 36 Rafale fighter jets in a ready-to-fly condition while it admitted that there was “no sovereign guarantee from France (government), but there is a letter of comfort…”

While hearing a bunch of pleas alleging criminality in Rafale deal and seeking court-monitored probe into it, the apex court had asked wide-ranging questions from the government on issues including lack of sovereign guarantee from the French government, selection of Indian offset partner by the Dassault Aviation and need of entering into Inter-Governmental Agreement (IGA) with France.
The petitioner counsel Prashant Bhushan and former Union Minister Arun Shourie had questioned the circumventing of the procedure for aborting the earlier process for procuring 126 fighter jets in favour of procuring 36 aircraft in ready-to-fly condition and unloading HAL as an offset partner.

The four petitions seeking probe into the deal were filed by Prashant Bhushan, Arun Shourie, former Finance Minister Yashwant Sinha, advocates M.L.Sharma and Vineet Dhanda, and AAP lawmaker in Parliament Sanjay Singh.

The Centre had defended the deal on the grounds of “urgent requirement” of national security and had justified the scrapping of the earlier deal for 126 aircraft as it was taking long to reach conclusion.

Vehemently defending non-disclosure of price publicly, Attorney General K K Venugopal, appearing for Centre had said that the cost of a bare Rafale jet as per 2016 exchange rate was Rs 670 crore and the disclosure of price of a “fully loaded” aircraft would give an “advantage to the adversaries”.

The court during the hearing on the bunch of pleas had also interacted senior Indian Air Force (IAF) officers and enquired about the requirements of the force.

The IAF officers had emphasised in the apex court the need for induction of ‘four plus or fifth’ generation fighter aircraft like Rafale, which have niche stealth technology and enhanced electronic warfare capabilities.

The Rafale fighter is a twin-engine Medium Multi Role Combat Aircraft (MMRCA) manufactured by French aerospace company Dassault Aviation.