किसी भी सभ्यता और संस्कृति को आप तभी हमेशा के लिए संजो कर रख सकते हैं जब आप उसका इतिहास अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताएं, आने वाली पीढ़ियाँ अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताए और यह चेन ऐसे ही निरंतर चलती रहे। दुनिया की बाकी सभ्यताओं की तुलना में हम भारतीय हीं हैं जिसने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाकर रखा हुआ है। हमें अपनी सभ्यता को ऐसे ही आगे भी सम्हाल कर रखना है इस हेतु जहाँ हम भारतीय प्रतिबद्ध तो वहीं अब केंद्र की मोदी सरकार भी इस तरफ बहुत ध्यान दे रही है।
जहाँ पुरानी सरकारों ने देश की सभ्यता और संस्कृति को चोट पहुंचाने की कोशिश की और भारत को विश्व पटल पर सपेरों और अंधविश्वासियों का देश साबित किया वहीं अब मोदी जी की सरकार ने भारत की प्राचीन महानताओं को उभारने के साथ साथ बेहतर भविष्य के लिए आधुकनिकता को भी साथ साथ आगे बढ़ाया है।
आज जहाँ एक तरफ भारत चाँद और मंगल पर कदम रख रहा है तो वहीं अपनी योग, आयुर्वेद, आध्यात्म जैसी प्राचीन शक्तियों को भी महत्व दे रहा है। इसी कड़ी में देश के अलग अलग शहरों और प्रमुख स्थलों के नामों को विदेशी आक्रांताओं के नाम से बदल कर प्राचीन नामों या भारतीय विभूतियों के नाम पर रखना भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
पिछले दिनों इलाहाबाद शहर का नाम उसके प्राचीन नाम प्रयाग पर ‘प्रयागराज’ रखा गया। हालांकि कुछ लोगों ने इसकी आलोचना भी की, पर भारतीय संस्कृति को चाहने वाले लोगों के लिए यह निर्णय एक मील का पत्थर माना जा रहा है। इस शहर का नाम मुग़ल बादशाह अकबर ने इलाहाबाद कर दिया था जिसे तक़रीबन 500 साल बाद पुनः प्रयागराज कर दिया गया है। अब इसी कड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित तीन द्वीपों के नाम जो वर्तमान में अँग्रेज़ शासकों के नाम पर हैं को बदला जा रहा है।
केंद्र सरकार अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के तीन द्वीपों (रॉस, नील और हैवलॉक द्वीप) के नाम बदल रही है। रॉस द्वीप का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप, नील का बदलकर शहीद द्वीप और हैवलॉक का नाम बदलकर स्वराज द्वीप करने का निर्णय लिया गया है। बता दें कि हैवलॉक द्वीप का नाम ब्रिटिश जनरल सर हेनरी हैवलॉक के नाम पर रखा गया है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कार्यरत थे। 1857 की क्रांति को दबाने में हैवलॉक ने अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए भी ऐसे व्यक्ति के नाम पर देश के एक द्वीप का नाम गलत संदेश देता है। बहरहाल यह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ही था, जहां साल 1943 में महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद की अस्थायी सरकार की स्थापना की थी। अब नेताजी के नाम पर एक द्वीप का नामाकरण उनके अदम्य साहस को एक छोटी श्रद्धांजलि होगी।