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modi sarkara ke is faisale se ud jayegi china ki neend

मोदी सरकार के इस फैसले से उड़ जाएगी चीन की नींद

मोदी सरकार जल्द ही एक एक फैसला लेने जा रही है। जिसे सुनकर चीन की नींद उड़ा जाएगी। यह बदलाव जल्द ही सरकार करने जा रही है। चीन की चुनौती से निपटने के लिए भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में बदलाव हो सकता है। इसके संकेत और समीकरण दोनों मिल रहे हैं। राज्य सरकार को उम्मीद है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जल्द ही भागीरथी इको सेंसिटिव जोन के नोटिफिकेशन में कुछ संशोधन कर सकता है। यदि ऐसा हुआ तो क्षेत्र में विकास का रास्ता साफ हो सकेगा।

उत्तरकाशी का 98% क्षेत्र आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्र में आता है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जल विद्युत परियोजना, आबादी और पशुओं के दबाव से क्षेत्र के पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए गोमुख से उत्तरकाशी में गंगा के पूरे कैचमेंट एरिया को 2012 में इको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया था।

इसमें उत्तरकाशी के 89 गांव भी आते हैं। स्थिति यह है कि अगर इन गांवों में लोगों को एक कमरा भी बनाना होता है तो उन्हें इसकी मंजूरी मुख्य सचिव के माध्यम से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से लेनी होती है।

सेना का मूवमेंट बढ़ाने की हो रही कवायद

Bhagirathi River

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ऐसे प्रतिबंध का विरोध राज्य सरकार भी लगातार करती आ रही है। भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में लैंड यूज चेंज करना, पहाड़ियों की ढलान अगर 20 डिग्री से अधिक है तो वहां भी निर्माण पर प्रतिबंध है।

इससे पूरे क्षेत्र में सड़क निर्माण योजना सेे लेकर चारधाम प्रोजेक्ट फंसे हुए हैं। उत्तरकाशी सीमांत और सामरिक महत्व का जिला है। ऐसे में सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर और चौड़ी सड़क की जरूरत को महसूस किया जा रहा है, ताकि सेना का मूवमेंट तेज हो सके।

इन्हीं सब बातों को लेकर मुख्यमंत्री और राज्य के उच्चाधिकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री और अफसरों से मिले हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार केंद्र ने नियमों में राहत देने का संकेत दिया है।

राज्य सरकार की तरफ से फरवरी में फाइनल भागीरथी इको सेंसिटिव मास्टर जोनल प्लान भेजने की तैयारी है। इस प्लान के आधार पर केंद्र कुछ गतिविधियों को क्षेत्र में करने की अनुमति प्रदान कर सकता है।

क्या चाहती है राज्य सरकार

  • सड़क, अस्पताल, स्कूल, आवास निर्माण करने की अनुमति
  • छोटी 10 लघु जल विद्युत परियोजना को हरी झंडी
  • निश्चित गहराई तक नदियों से खनन करने की अनुमति
  • स्टीप (पहाड़) के 20 डिग्री के नियम में बदलाव

भागीरथी इको सेंसिटिव जोन के चलते जरूरी विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। प्रयास है कि इसमें कुछ बदलाव किया जाए। मास्टर जोनल प्लान को फाइनल कर जल्द भेज दिया जाएगा। उम्मीद है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्य के पक्ष और जरूरत को समझने के बाद आवश्यक बदलाव करने पर सहमत हो जाएगा।

मोदी सरकार की नई योजना, महिलाएं घर बैठे पैसे कमा सकती

भारत सरकार महिलाओं को घर से पैसा कमाने का मौका देने जा रही है। सरकार जल्द ही एक योजना लाने जा रही है। जिससे घर बैठी महिलाएं अपने घर से काम करके अच्छा पैसा कमा सकेंगी। मोदी सरकार इस योजना में बीपीओ के जरिए लोगों को रोजगार का अवसर देगी। हालांकि अभी योजना को लेकर आधिकारिक शुरुआत नहीं हुई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक इस योजना के तहत करीब 100 महिलाओं को रोजगार का अवसर दिया जाएगा। हाल ही में केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी विभाग से ऐसी स्कीम तैयार करने को कहा था। जिसमें महिलाएं घर से काम कर सकें.बीपीओ प्रमोशन स्कीम के तहत लोगों को रोजगार दिया जाएगा।

भारत इस स्कीम के तहत प्रोद्योगिकी की विस्तार छोटे शहरों तक भी करना चाहती है। फिलहाल देश के बड़े-मेट्रो शहरों में अधिकतर आईटी कंपनियां हैं, लेकिन अब सरकार इसका देश के अन्य हिस्सों में भी विस्तार करना चाहती है।

बीपीओ को लेकर चल रही इस स्कीम में लोगों को निवेश के लिए पैसे भी दिए जाते हैं। बताया जा रहा है कि स्कीम के तहत करीब एक लाख रुपये दिए जाते हैं और सरकार ने कई जगहों पर अपनी इकाइयां स्थापित भी की है।

छत्तीसगढ़ के चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी का ही चेहरा क्यों होगा, जानें

धान वाले बाबा या चावल वाले बाबा यह सब नाम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के उपनाम है।चावल के कटोरे के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ में लोग सामान्य तौर पर कहते हैं कि रमन सिंह ने जितना संभव हो पाता है। वो जरूरतमंद लोगों के लिए करते हैं। इस साल छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होना हैं, भाजपा अपने विजय रथ को बिना किसी बाधा के दौड़ाने की तैयारी में जुट चुकी है। भाजपा संगठन राज्य स्तरीय नेताओं को पुचकार और डांट के साथ नसीहते भी दे रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि 15 वर्षों की सत्ता विरोधी लहर की काट के लिए बहुत ही पुख्ता तौर पर विश्वसनीय रणनीति पर काम करना होगा। लेकिन इन सबके बीच सवाल ये है कि क्या पार्टी को लगता है कि रमन सिंह उतने कारगर नहीं होंगे लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भी भरोसा कर चुनावी मैदान में उतरा जाए।

पीएम मोदी के चेहरे पर भरोसा

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल की रविवार को दस घंटे चली मैराथन बैठक में पार्टी नेताओं को दो नारा दिया गया और इस नारे को आधार बनाकर चुनाव मैदान में उतरने का निर्देश दिया गया। रामलाल ने दो नारे, ‘अपनी सरकार अच्छी सरकार’, ‘गरीबों का कल्याण-मोदी सरकार की पहचान’ दिए। पांचों बैठकों में उन्होंने पदाधिकारियों, सांसदों और मंत्रियों को बताया कि किस तरह देश विदेश में मोदी सरकार के आने के बाद भारत का मान बढ़ा। उन्होंने डोकलाम से लेकर पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र किया।

रामलाल ने पदाधिकारियों से कहा कि अपने चुनावी कैंपेन में यह बताना है कि मोदी के आने से देश का सम्मान बढ़ा है। आम आदमी सुरक्षित हुआ है। हर घर का सपना पूरा हुआ और देश स्वच्छता की ओर बढ़ा रहा है। विधानसभा चुनाव में मोदी सरकार की उपलब्धियों को लेकर ही मुख्य कैंपेन किया जाएगा। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को अंत्योदय के सिद्घांत के अनुसार पालन करने का निर्देश भी दिया है।

निशाने पर रहे राहुल और कांग्रेस

बैठक में रामलाल के निशाने पर कांग्रेस और राहुल गांधी रहे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं, वंशवाद है। सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं, लेकिन भाजपा में किसी को पता नहीं है कि अमित शाह के बाद कौन राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा।

जानकार की राय

दैनिक जागरण से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने कहा कि राजनीति में उस शख्स पर ही दांव लगाया जाता है जिसकी लोकप्रियता बरकरार हो। अगर आप पीएम नरेंद्र मोदी की बात करें तो ये बात साफ है कि चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष आज की तारीख में उतना लोकप्रिय नेता और कोई दूसरा नहीं है। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है तो यह बात साफ है कि भाजपा एक बार फिर चुनाव जीतकर इतिहास रचना चाहेगी, वहीं कांग्रेस किसी भी तरह सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करेगी ताकि उनमें जान आ सके। हाल ही में संपन्न गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से कड़ी टक्कर के बाद भी पीएम मोदी का करिश्मा काम आया और भाजपा अपने विजय रथ को आगे बढ़ाने में कामयाब हो सकी। भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि कठिन हालात में भी पीएम मोदी हवा के रुख को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब रहते हैं, लिहाजा उन्हें छत्तीसगढ़ में प्रमुख चेहरे के तौर पर उतारना चाहिए।

2013 और 2008 में भाजपा का प्रदर्शन

2013 में छत्तीसगढ़ में भाजपा को 53.4 लाख वोट मिले, जो कुल वैध मतों का 41.4 प्रतिशत था। कांग्रेस को 40.29 प्रतिशत यानि 52.44 लाख वोट मिले। यानी दोनों पार्टियों के बीच का अंतर एक प्रतिशत से भी कम रहा।साल 2008 के चुनावी आंकड़ों को देखें तो भाजपा उस समय 43.33 लाख वोट पाकर 40.33 प्रतिशत पर थी और कांग्रेस को जनता ने 41.50 लाख वोट यानी 38.63 प्रतिशत के आंकड़े पर रोक दिया था।

भाजपा को 2008 में 50 सीटों की जगह एक सीट कम यानि 49 सीट मिली थी। जबकि कांग्रेस एक सीट पर बढ़त बनाते हुए 38 से 39 सीट पर जा पहुंची। 2008 में बस्तर की 12 में 11 सीटें पिछली बार भाजपा के पास थी। 2013 में इनमें से आठ सीटें कांग्रेस को मिली।

रमन सिंह की सरकार में 2007 से राज्य में अंत्योदय और गरीब परिवारों को हर महीने एक और दो रुपए किलो के हिसाब से 35 किलो चावल मिलता है। इसके अलावा गरीबी रेखा से ऊपर लोगों को भी राज्य सरकार सस्ते में राशन उपलब्ध करा रही है और इस सब पर एक हजार करोड़ का खर्च आ रहा है। छत्तीसगढ़ के सीएम कहते हैं कि राज्य में 3 लाख परिवार बीपीएल हैं और हम दोगुने परिवार को चावल दे रहे हैं। यानि जो लोग गरीबी रेखा के ऊपर हैं उन्हें भी चावल उपलब्ध कराया जा रहा है। वो बताते हैं कि चावल, बीपीएल या एपीएल को ही नहीं मिल रहा है बल्कि सभी गरीबों को चावल दिया जा रहा है।

पीएम नरेंद्र मोदी राज्यों के डीजीपी और आईजी के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ग्वालियर पहुंचे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के टेकनपुर स्थित सीमा सुरक्षा बल अकादमी में आयोजित राज्यों के पुलिस महानिदेशकों एवं पुलिस महानिरीक्षकों के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंच थे। उन्हें 7:50 पर ग्वालियर पहुंचना था। लेकिन दिल्ली में घने कोहरे के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एक घंटे की देरी से 8:50 पर एयरफोर्स बेस सेंटर से विशेष विमान से पहुंचे।

वहां एयरस्ट्रिप पर मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र तोमर, महापौर विवेक नारायण शेजवलकर, सांसद अनूप मिश्रा, डॉ भगीरथ प्रसाद, विधायक भारत सिंह, साडा अध्यक्ष राकेश जादौन, जीडीए अध्यक्ष अभय चौधरी, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती मनीषा भुजबल सिंह, भाजपा के शहर और ग्रामीण जिला अध्यक्ष, कमिश्नर बीएम शर्मा के अलावा आला अफसरों ने उनकी अगवानी की थी।

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हेलीकॉप्टर से टेकनपुर के लिए रवाना हो गए थे। वह इस कॉन्फ्रेंस में सात और आठ जनवरी को शिरकत करेंगे। पुलिस महानिदेशकों का यह सम्मेलन वार्षिक कार्यक्रम है और इसमें विभिन्न राज्यों के आला पुलिस अधिकारी देश की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हैं और आपस में साझा करते हैं।

इससे पहले केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए शनिवार को ही ग्वालियर पहुंच गए थे।

पीएम मोदी को बनारस में चाय पिलाने वाले शख्स का निधन, मोदी अपने दौरे पर जरूर पीते थे इनके हाथ की अदरक वाली चाय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी अपने संसदीय क्षेत्र उत्तरप्रदेश के वाराणसी जाते है। तो वह प्रदीप कुमार मल्होत्रा की हाथ की अदरक की वाली चाय का स्वाद जरूर लेते थे। पीएम नरेंद्र मोदी इस चाय के बहुत ही दीवाने हैं। अब पीएम नरेंद्र मोदी को बनारस में यह चाय कभी नहीं मिलेगी।क्योंकि डिरेका गेस्ट हाउस के केयर टेकर और अदरक वाली चाय बनाने वाले पीके मल्होत्रा की शुक्रवार की सुबह शांत हो गए है। उनकी मौत ब्रेन हेमरेज होने से हुई है। वह पिछले एक हफ्ते से बीमार चल रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा अपने वाराणसी प्रवास के दौरान डीरेका के अधिकारी गेस्ट हाउस में रुकते थे। वहां पीके मल्होत्रा पीएम नरेंद्र मोदी जी के लिए अदरक की चाय बनाते थे। प्रधानमंत्री वाराणसी प्रवास के दौरान डीरेका स्थित अधिकारी गेस्ट हाउस में ही विश्राम करते हैं।

रिटायर होने के बाद भी कर रहे थे काम

इस दौरान प्रधानमंत्री की समस्त सुविधाओं खानपान व अन्य छोटी बड़ी जरूरतों का ध्यान यहां पर मौजूद केयरटेकर पीके मल्होत्रा ही रखा करते थे। वैसे तो डीरेका से रिटायर्ड हो चुके थे लेकिन उनके अच्छे कार्यों की वजह से उनको डीरेका गेस्ट हाउस का केयर टेकर बनाकर सेवाएं ली जा रही थी।

वह डीरेका से रिटायर होने के बाद गेस्ट हाउस संचालित करते थे। पीके मल्होत्रा ने डी एल डब्ल्यू में एक अप्रेल 1990 में कार्यभार ग्रहण किया तथा मैनेजर के पद से 30 नवबंर 2005 में सेवानिवृत्त हुए।

पीएम नरेंद्र मोदी फरवरी में काशी जाएंगे, दस हजार करोड़ की परियोजनाओं की सौगात देंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अपने संसदीय क्षेत्र काशी के दौरे पर जाएंगे। उनके हाथों से तकरीबन 10 हजार करोड़ की परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास कराने की तैयारी प्रदेश सरकार कर रही है। गुरुवार को सर्किट हाउस पर पहुंचे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने पार्टी के विधायकों के साथ इस पर लंबी मंत्रणा के साथ ही, पार्टी के युवा उद्घोष कार्यक्रम में इसी माह 16 से 22 जनवरी के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आगमन की तैयारियों पर भी विमर्श हुआ।

पार्टी की जानकारी की मानें तो मुख्यमंत्री के इस दो दिवसीय दौरे का मुख्य उद्देश्य विकास कार्यों और कानून व्यवस्था की समीक्षा के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन की तैयारियों की रूपरेखा को अंतिम रूप देना है। पार्टी विधायकों से चर्चा में खासकर उन योजनाओं का जिक्र हुआ, जिनका लोकार्पण और शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों से कराया जाना है।

20 हजार से अधिक युवाओं को बुलाया जाएगा

विकास कार्यों और कानून व्यवस्था की स्थिति के बारे में मुख्यमंत्री ने विधायकों से जानकारी ली। वहीं दूसरी ओर  पार्टी के जानकर के मुताबिक अपनी कई परियोजनाएं ऐसी हैं, जिनका काम 90 प्रतिशत के लगभग पूरा हो चुका है। इनके शत प्रतिशत तैयार होने में अभी कम से कम महीने भर का समय लग सकता है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन कार्यक्रम की रूपरेखा जनवरी के बजाए फरवरी में बनाई जा रही है।

साथ ही, शासन प्रशासन का फोकस अब ऐसी योजनाओं को हर हाल में 31 जनवरी तक पूरा कराने पर है। इसके बाद फरवरी के दूसरे सप्ताह में प्रधानमंत्री मोदी जी के आगमन की अधिकृत सूचना जारी की जा सकती है। उधर, 16 से 22 जनवरी तक आयोजित होने वाले पार्टी के युवा उद्घोष कार्यक्रम में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के आगमन की तैयारियों की भी समीक्षा की गई। इस कार्यक्रम में 20 हजार से अधिक युवाओं को डीरेका बुलाया जाएगा। इसके लिए युवाओं का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पार्टी की ओर से कराया जा रहा है।

देश के सभी मदरसों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगेगी, मदरसा बोर्ड ने जारी किया आदेश

मदरसों में पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो न लगाने की चर्चाओं पर उत्तराखंड के मदरसा बोर्ड ने विराम लगा दिया है। मदरसा बोर्ड का कहना है कि सभी मदरसों में पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो लगाई जाएगी। इसका आदेश पहले भी जारी किया जा चुका है। इस संबंध में उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने अगस्त, 2017 में आदेश जारी कर दिया है। साढ़े पांच महीने के बाद अब जिलों से इस आदेश के अनुपालन के संबंध में जानकारी ली जा रही है।

बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर अखलाक अहमद ने बताया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाने के संबंध में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के माध्यम से मदरसों को आदेश भेजा गया था। उत्तराखंड बोर्ड को प्रधानमंत्री नरेंद्र की फोटो लगाने के संबंध में शासनादेश आया था। इसके बाद ही बोर्ड की ओर से जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को यह आदेश जारी किया गया।

फीडबैक लेने में जुटे मदरसा बोर्ड के अधिकारी

बोर्ड दफ्तर में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगी हुई है। डिप्टी डायरेक्टर अहमद ने बताया कि राज्य में 297 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं। इन सभी मदरसों को सर्कुलर जारी किया गया है। इसके अलावा निजी मदरसे हैं। इन मदरसों पर बोर्ड का अधिकार नहीं है। निजी मदरसों का प्रबंधन अपनी व्यवस्था के संबंध में निर्णय लेता है।

कुछ मदरसों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोटो लगाने से इनकार करने का मुद्दा गर्म हो गया है। इस पर बोर्ड ने अपने आदेश के अनुपालन का फीड बैक लेना शुरू कर दिया है। उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के निदेशक कैप्टन आलोक शेखर तिवारी ने कहा कि यह मामला उनके संज्ञान में अभी आया है।

इस संबंध में जानकारी ली जा रही है। इस मुद्दे पर विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय का कहना है कि मदरसों को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाने में क्या हर्ज है? अगर आदेश हैं तो सबको फोटो लगाना चाहिए।

पीएम नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए बिजली सुधार पर दिए निर्देश

किसानों के लिए बिजली की अलग फीडर लाइन पर बातें तो पिछले डेढ़ दशक से हो रही है। लेकिन अब इस पर अमल की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस मामले में राज्यों के स्तर पर हो रही देरी और केंद्रीय बिजली मंत्रालय के भी ठंडे रवैये से नाराज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय सीमा तय कर दी है। बिजली मंत्रालय को कहा गया है कि वह जुलाई, 2018 तक पूरे देश में किसानों के लिए अलग फीडर लाइन बनाने का काम पूरा करे। पीएम नरेंद्र मोदी के इस निर्देश को अमल में लाने के लिए अब उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान समेत कई राज्यों को बहुत तेजी से काम करना पड़ेगा।

सरकारी जानकारों के मुताबिक, बिजली सुधार की दिशा में पिछले दो सालों में बेहद जबरदस्त कामयाबी के साथ अब यह सुनिश्चित करना है कि देश के निचले तबके तक इसका फायदा पहुंचे। इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी एक तरह की सहज बिजली योजना को हर घर योजना लांच की है। इसका फायदा ग्रामीण क्षेत्रों को खास तौर पर होगा। लेकिन किसानों को फायदा देने के लिए अब फीडर लाइन अलग किया जाएगा। कई राज्यों में ऐसा हो चुका है, लेकिन उत्तर व मध्य भारत के अधिकांश राज्यों में यह काम काफी पीछे चल रहा है। सरकार मानती है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में बिजली की आपूर्ति की जाए। इससे किसानों के खातों में सीधे बिजली सब्सिडी देने का काम भी आसान होगा।

सरकार ऐसा करने में कामयाब हो जाती है। तो यह उसके लिए अगले चुनाव में दिखाने के लिए एक बड़ा कदम होगा। केंद्र की पहले से ही पूरी तैयारी है कि मई, 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले हर घर को बिजली कनेक्शन देने की योजना को भी अमली जामा पहना दिया जाए। ऐसे में सरकार बिजली क्षेत्र में दो बड़ी उपलब्धियों के साथ चुनाव में उतरेगी। अभी तक महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में किसानों के लिए अलग बिजली की फीडर लाइन की व्यवस्था हो चुकी और इसके काफी बेहतर परिणाम देखने को मिले है। इससे किसानों को बिजली सब्सिडी सीधे बैंक खाते में देने की व्यवस्था भी शुरू हो चुकी है। साथ ही किसानों को समय पर पर्याप्त बिजली की आपूर्ति भी सुनिश्चित हो चुकी है।

सनद रहे कि बिजली सुधार पर मोदी सरकार का रिकॉर्ड दूसरे कई क्षेत्रों से बेहतर रहा है। वर्ष 2015 में दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और सितंबर, 2017 में लांच की गई पीएम सहज बिजली हर घर योजना से दिसंबर, 2018 तक हर घर को बिजली कनेक्शन मिलने के आसार है। इसके अलावा तीन वर्ष पहले राज्यों की खस्ताहाल बिजली वितरण कंपनियों की माली हालात सुधारने के लिए लांच की गई उदय योजना के भी सकारात्मक असर दिखाई देने लगे हैं। ताजे आंकड़े बताते हैं कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों की हानि अब कम होने लगी है। बिजली आपूर्ति की स्थिति भी काफी सुधरी है।

भारत यात्रा पर बेंजामिन नेतन्याहू पीएम नरेंद्र मोदी को ‘स्पेशल गिफ्ट’ देंगे

इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत के दौरे पर आने वाले हैं। 14 जनवरी से शुरू हो रही बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा काफी खास होने वाली है। अपनी इस यात्रा के दौरान इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपने दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खास तोहफा देंगे। सूत्रों के मुताबिक मिली जानकारी, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू खारे पानी को पीने के लायक शुद्ध बनाने वाला गल मोबाइल जीप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को देंगे।  

आप सभी को पता होगा कि पिछले साल जुलाई में अपनी इजरायल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतन्याहू के साथ इस ‘बुग्गी’ जीप में बैठकर भूमध्य सागर के तट की सैर की और खारे पानी को पीने का पानी  बनाने का नमूना देखा था। इस दौरान इन दोनों प्रधानमंत्री की तस्वीर भी सोशल मीडिया चैनल पर खूब वायरल हुई थी।  

जानकारी के मुताबिक नेतन्याहू अब यही जीप मोदी को तोहफे में देने जा रहे हैं। नेतन्याहू जहां अपने चार दिवसीय भारतीय दौरे की तैयारियों में जुटे हैं। वहीं सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि जीप ‘वास्तव में’ भारत के लिये रवाना भी हो चुकी है और इजरायली प्रधानमंत्री द्वारा मोदी को तोहफे में दिये जाने के लिये ‘समय पर पहुंच जायेगी’।

बताया जा रहा है कि जीप की कीमत करीब 3.9 लाख शेकेल यानी करीब 70 लाख रुपये है। इजरायल यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने इस जीप की तारीफ भी की थी।

assam me bangladeshi Intruders ki samasya par kya kar rahi hai sarakar

असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या पर क्या कर रही है सरकार

स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि भारत की धरती पर कश्मीर के बाद अगर कोई स्थल है तो वो है असम। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक के इतिहास को देखें तो इन दोनों स्थानों के साथ कुछ भी अच्छा नहीं घटा, एक तरफ कश्मीर में जहाँ आतंकवाद ने अपने पैर पसारे वहीं असम में बांग्लादेशी घुसपैठ ने प्रदेश की शांति को आघात पहुँचाया है।

आजादी से पहले जहाँ असम एक हिन्दुबहुल प्रदेश हुआ करता था वहीं आजादी के बाद बांग्लादेशी घुसपैठ से आज प्रदेश मुस्लिम बहुल हो गया है। हिंसा के माहौल के कारण वहां के हिन्दुओं को स्वनिर्वासन झेलना पड़ रहा है।

सरकार भी कई मर्तवा दबे स्वरों में यह स्वीकार कर चुकी है कि हमारे देश में करीब 20 से 30 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए बिना किसी क़ानूनी दस्ताबेज के अवैध तरीके से रह रहे हैं, जबकि सूत्रों के मुताबिक़ इस समय कम से कम 2 से 3 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए पूरे देश में अवैध तरीके से रह रहे हैं, असम और पश्चिम बंगाल राज्य जहाँ बांग्लादेश की सीमा से सटे होने के कारण इससे सबसे ज्यादा चपेट में आए हैं तो वहीं बिहार के भी कुछ सीमावर्ती जिलों में ये समस्या व्याप्त है । सन 1971 में बांग्लादेश के आजाद होने के बाद से सन 1991 तक असम में हिंदुओं की जनसंख्या में जहाँ 41.89% की वृद्धि हुई थी वहीं इसी कालखंड में मुस्लिम आबादी में 77.42% की बेलगाम वृद्धि हुई।

साल 1991 से साल 2001 के बीच जहाँ असम में हिन्दुओं की आबादी 14.95% बढ़ी वहीं मुस्लिमों की आबादी में 29.3% की वृद्धि देखी गई। वैसे तो मुस्लिमों की आवादी पूरे देश में हिन्दुओं के बनिस्पत बहुत तेज बढ़ी है और साल 2001 में की गई जनगणना में आँखें खोलने वाले आंकड़े दर्ज किये गए थे कि 1961-2001 के दरम्यान मुस्लिम आबादी में जहाँ 2.7% का इजाफा हुआ वही हिन्दुओं की आबादी में 3% की कमी आई है, असम के आंकड़े और तो और भी गंभीर हैं, जहाँ पुरे देश में 1971-91 के दौरान हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि में 19.79% का अंतर रहा पर ये आंकड़ा असम के सन्दर्भ 35.53% का था।1991 से 2001 के बीच ये अंतर 9.3% की अपेक्षा 14.35% हो गया।

ये सारे आंकड़े बताते हैं की बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या किस तरह असम के जनसांख्यिक समीकरण बिगाड़ रही है। बहरहाल इस दिशा में एक बेहतरीन प्रयास सरकार द्वारा जारी है। उच्चतम न्यायलय के ऑर्डर के बाद से हीं असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) को अपटूडेट करने का काम पिछले कई महीनों से जारी है। इससे वहां के मूल भारतियों और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों में अंतर का पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर बनाये जा रहे एनआरसी का पहला ड्राफ्ट 2018 के आरम्भ के साथ हीं भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के दफ्तर ने जारी कर दिया । इस सूची के अनुसार तीन करोड़ 29 लाख असं के नागरिकों में से एक करोड़ 90 लाख नागरिक के पास अपनी नागरिकता के वैध दस्तावेज हैं, वहीं बाकी बचे एक करोड़ 39 लाख नागरिकों के नागरिकता की जांच होना अभी बाकी है। यानी वास्तव में असम की जनसँख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों की कितनी संख्या है, इसकी सही सही जानकारी पता करने में अभी कुछ वक्त और लगेगा। ऐसा उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीनों में ये कार्य अपने पूर्ण निष्कर्ष पर पहुंच जाएगा।

गौर करने बाली बात है कि साल 1951 के बाद हमारे देश में पहली बार कहीं भी एनआरसी बनाने का काम आरम्भ किया गया है। वर्तमान में असम राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों से जुड़े सवाल तीखे विवाद को जन्म दे देते हैं । इस मामले को लेकर एक बार 1980 के दशक में भी असम में एक व्यापक जन-आंदोलन हो चूका है । उसकी आंदोलन की समाप्ति तत्कालीन राजीव गांधी की कॉंग्रेस सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के मध्य 1985 के अगस्त महीने में हुए समझौते से हुई। इस समझौते में ये सहमति बनाई गई कि 25 मार्च 1971 तक जो भी लोग असम में रह रहे थे, उन्हें भारत का आम नागरिक माना जाएगा।

ऐसी सहमति के बाद भी उस तारीख के पश्चात आए बांग्लादेशियों के पहचान का कोई भी प्रयास नहीं हुआ, इसीलिए उस समझौते के बाबजूद भी ये मसला जारी रहा। आखिरकार जब ये मामला बढ़ने लगा तब साल 2013 में जा कर उच्चतम न्यायलय ने एनआरसी बनाये जाने का सरकार को निर्देश दिया। इस एनआरसी के लिए ये निर्देश भी जारी किया गया कि जिनके परिजनों के नाम साल 1951 की एनआरसी या फिर 25 मार्च 1971 से पहले की वोटर लिस्ट में थे, उन्हें भारत का आम नागरिक समझा जाएगा। यह एक बेहद संवेदनशील मामला है, इसलिए इसमें कड़ाम फूंक-फूंककर रखा जा रहा है और ऐसा करना जरुरी भी है । यह आवश्यक है कि नागरिकों को अपनी नागरिकता को साबित करने के पर्याप्त अवसर मिलें।

जब ये कार्य अपने मुकाम पर पहुंचेगा तब एक कुछ नई चुनौती भी सामने आ जाएंगी और जो नागरिक अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकेंगे, उनका क्या होगा? क्या उन्हें फिर से बांग्लादेश वापिस लेने को आसानी से राजी भी होगा? या फिर उन्हें तिबत्तियों की तरह शरणार्थी का दर्जा दे कर देश के दूसरे राज्यों में बसाया जाएगा? असम के लोग अक्सर ये प्रश्न उठाते आये हैं कि घुसपैठियों या फिर शरणार्थियों का सारा बोझ सिर्फ उनका हीं राज्य अकेले क्यों उठाता रहे ? इसलिए बेहतर तो ये होगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर राजनीतिक सहमति बना कर प्रभावी कार्ययोजना बनाए।

एनआरसी बन जाने का एक दूसरा लाभ यह भी होगा कि भविष्य में ऐसे घुसपैठियों की पहचान में हमें आसानी होगी। लेकिन ऐसा सिर्फ तब बेहतर हो सकेगा जब पुरे देश में एनआरसी बनाने की तरफ हम अग्रसर हों । पिछली सरकारों के समय भी ऐसा विचार उठाया गया था। उचित होगा कि एक बार फिर उस पर चर्चा शुरू की जाए और 2021 में निर्धारित जनगणना के साथ साथ एनआरसी बनाने का कार्य भी पूरे देश में शुरू कर दिया जाय। इस मसले पर असम बाकी देश के लिए एक बढ़िया मिसाल और मॉडल बन कर सामने आ सकता है ।