नए साल की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को न सिर्फ नोटबंदी से पैदा हुए नकदी संकट के दौरान धैर्य बनाए रखने के लिए देश की जनता को धन्यवाद दिया, बल्कि उन्होंने किसानों, गरीबों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए कई योजनाओं की भी घोषणा की. आइए, पढ़ते हैं उनका पूरा भाषण…
मेरे प्यारे देशवासियों,
कुछ ही घंटों के बाद हम सब 2017 के नववर्ष का स्वागत करेंगे. भारत के सवा सौ करोड़ नागरिक नया संकल्प, नई उमंग, नया जोश, नए सपने लेकर स्वागत करेंगे.
दीवाली के तुरंत बाद हमारा देश ऐतिहासिक शुद्धि यज्ञ का गवाह बना है. सवा सौ करोड़ देशवासियों के धैर्य और संकल्पशक्ति से चला यह शुद्धि यज्ञ आने वाले अनेक वर्षों तक देश की दिशा निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाएगा.
ईश्वर दत्त मानव स्वभाव अच्छाइयों से भरा रहता है. लेकिन समय के साथ आई विकृतियों, बुराइयों के जंजाल में वह घुटन महसूस करने लगता है. भीतर की अच्छाई के कारण, विकृतियों और बुराइयों की घुटन से बाहर निकलने के लिए वह छटपटाता रहता है. हमारे राष्ट्र जीवन और समाज जीवन में भ्रष्टाचार, काला धन, जाली नोटों के जाल ने ईमानदार को भी घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था. उसका मन स्वीकार नहीं करता था, लेकिन उसे परिस्थितियों को सहना पड़ता था, स्वीकार करना पड़ता था.
हमारे देशवासियों की अंतर ऊर्जा को हमने कई बार अनुभव किया है. चाहे सन 62 का बाहरी आक्रमण हो, 65 का हो, 71 का हो, या कारगिल का युद्ध हो, भारत के कोटि-कोटि नागरिकों की संगठित शक्तियों और अप्रतिम देशभक्ति के हमने दर्शन किए हैं. कभी न कभी बुद्धिजीवी वर्ग इस बात की चर्चा ज़रूर करेगा कि बाह्य शक्तियों के सामने तो देशवासियों का संकल्प सहज बात है, लेकिन जब देश के कोटि-कोटि नागरिक अपने ही भीतर घर कर गई बीमारियों के खिलाफ, बुराइयों के खिलाफ, विकृतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरते हैं, तो वह घटना हर किसी को नए सिरे से सोचने के लिए प्रेरित करती है.
दीवाली के बाद लगातार देशवासी दृढ़संकल्प के साथ, अप्रतिम धैर्य के साथ, त्याग की पराकाष्ठा करते हुए, कष्ट झेलते हुए, बुराइयों को पराजित करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. जब हम कहते हैं कि “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी”, इस बात को देशवासियों ने जीकर दिखाया है.
कभी लगता था सामाजिक जीवन की बुराइयां-विकृतियां जाने-अनजाने में, इच्छा-अनिच्छा से हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए हैं, लेकिन 8 नवंबर के बाद की घटनाएं हमें पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती हैं.
सवा सौ करोड़ देशवासियों ने तकलीफें झेलकर, कष्ट उठाकर सिद्ध कर दिया है कि हर हिन्दुस्तानी के लिए सच्चाई और अच्छाई कितनी अहमियत रखती है.
काल के कपाल पर यह अंकित हो चुका है कि जनशक्ति का सामर्थ्य क्या होता है, उत्तम अनुशासन किसे कहते हैं, अप-प्रचार की आंधी में सत्य को पहचानने की विवेक बुद्धि किसे कहते हैं. सामर्थ्यवान, बेबाक-बेईमानी के सामने ईमानदारी का संकल्प कैसे विजय पाता है.
गरीबी से बाहर निकलने को आतुर ज़िन्दगी, भव्य भारत के निर्माण के लिए क्या कुछ नहीं कर सकती. देशवासियों ने जो कष्ट झेला है, वह भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए नागरिकों के त्याग की मिसाल है. सवा सौ करोड़ देशवासियों ने संकल्पबद्ध होकर, अपने पुरुषार्थ से, अपने परिश्रम से, अपने पसीने से उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला रखी है.
आमतौर पर जब अच्छाई के लिए आंदोलन होते हैं, तो सरकार और जनता आमने-सामने होती है. यह इतिहास की ऐसी मिसाल है, जिसमें सच्चाई और अच्छाई के लिए सरकार और जनता, दोनों कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ रहे थे.