प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगली बार जब भी मिलेंगे तब शायद वह एक-दूसरे से यही पूछेंगे कि हम जब भी मिलते हैं तब इतने कयास और राजैनतिक अटकलें क्यों लगाई जाती हैं. इसका एक बड़ा कारण है दोनों नेता फिलहाल एक-दूसरे के कट्टर विरोधी भले हों, लेकिन दोनों के समर्थकों में शायद यह जानने की कोशिश होती है कि क्या दोनों राजैनतिक दोस्त बन सकते हैं और जैसा कि राजनीति में कहा जाता है कि यहां न कोई स्थायी दोस्त होता है और न दुश्मन!
लेकिन हम आपको बताते हैं कि आखिर इन राजनीतिक अटकलों की जड़ में क्या है, जो इन दोनों के बीच हर फोटो का विश्लेषण शुरू हो जाता है. सब मानते हैं कि फिलहाल न नीतीश फिलहाल बीजेपी के साथ गठबंधन बनाने की पहल करने वाले हैं और न ही बीजेपी को फ़िलहाल उनकी कोई जरूरत है, लेकिन धीरे-धीरे राजनैतिक कड़वाहट अब कम हो रही है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले गैर-बीजेपी दल के नेता थे, लेकिन जब नोटबंदी की घोषणा हुई तब 9 नवम्बर की सुबह नीतीश ने पीएम मोदी के फैसले का समर्थन किया और आज तक वह इसके समर्थन में हैं हालांकि उन्होंने गुरु पर्व जो 14 जनवरी को खत्म होगा उसके बाद अपने निर्णय के बारे में पार्टी की बैठक बुलाने की घोषणा की है हालांकि नीतीश ने यह कहा था कि नोटबंदी बिना तैयारी के शुरू की गई है.
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के उन शीर्ष के नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने सार्वजनिक मंच से नीतीश कुमार की शराबबंदी का समर्थन किया. भले बिहार बीजेपी के नेता अब यह दावा करें कि नीतीश ने गुजरात में लागू शराबबंदी से प्रभावित होकर यह लागू किया, लेकिन जानकर मानते हैं कि नीतीश के कानूनों की चर्चा गुजरात में भी होती है और वहां के दलित आंदोलन से जुड़े नेतओं ने राज्य सरकार से मांग की है कि बिहार की तर्ज पर शराबबंदी का कानून सख्त किया जाए और उसके बाद गुजरात के अधिकारियों ने बिहार के कानून का अध्ययन भी किया और जमीनी फीडबैक भी लिया.
पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर नीतीश का अभिनन्दन कर जो नसीहत दी कि यह काम केवल नीतीश कुमार का नहीं बल्कि जन जन का काम है, यह रिश्तों में एक नए आयाम को जोड़ता है.
इसके अलावा सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया जो उनकी सहयोगी कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल से अलग लाइन थी हालांकि नीतीश ने जीएसटी के मुद्दे पर भी केंद्र सरकार का समर्थन किया था, लेकिन वह इस मुद्दे पर मनमोहन सिंह के समय से जीएसटी को लागू करने की मांग कर रहे हैं.
विदेशनीति के मुद्दे पर भी नीतीश मोदी सरकार की आलोचना करने से बचते हैं और विदेशनीति खासकर पाकिस्तान के प्रति उठाये जाने वाले कदम को नीतीश समर्थन देते रहे हैं, जिससे भी अटकलों का बाजार गर्म रहता है.
बिहार बीजेपी के नेता मानते हैं कि गुरु पर्व के आयोजन के लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे नीतीश कुमार की पीठ थपथपाई उससे उनकी आलोचना या श्रेय लेने के किसी तर्क की कोई गुंजाइश नहीं बचती, लेकिन बीजेपी नेताओं की मानें तो लोकसभा चुनाव में जीत के बाद पीएम मोदी को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में भी नीतीश को धूल चटाने में कामयाब होंगे, लेकिन जब नीतीश जीतकर आ गए तब उसके बाद शायद दोनों नेताओं को यह आभास हुआ है कि एक-एक दांव जीत हार के बाद हाथ मिला लेने में कोई नुकसान नहीं हालांकि जनता दल यूनाइटेड के नेता मानते हैं कि नीतीश के पीएम मोदी से उनकी राजनीतिक धारा को लेकर मतभेद रहे हैं, जो अभी भी कायम हैं, लेकिन राजैनतिक शिष्टाचार को लेकर राजैनतिक अटकलें लगाने से लोगों को बचना चाहिए.