जब से केंद्र की सत्ता पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी आसीन हुए हैं तभी से वे सभी विपक्षी दलों की आँखों में खटकने लगे थे। यही वो मुख्य कारण है कि पिछले करीब साढ़े चार साल के कालखंड में अलग अलग मंचों पर एक दूसरे के धुर विरोधी दल भी महागठबंधन के नाम पर अपना गठजोड़ करते पाए गए। जहाँ एक तरफ पश्चिम बंगाल में एक दूसरे के खिलाफ जहर उगलने वाले वाम दल और तृणमूल कांग्रेस मोदी का मुकाबला करने के लिए एक मंच पर कांग्रेस के साथ नजर आये तो वही उत्तरप्रदेश में हमेशा एक दूसरे का विरोध करने वाली सपा और बसपा भी गठजोड़ करने को हामी भर चुकी है।
अब सवाल उठता है कि इन गठजोड़ों से वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को कितनी बड़ी चुनौती मिल सकती है और क्या ये सारे दल अपनी अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार कर किसी एक नेता के पीछे लामबंद हो सकते हैं! ये सब कुछ ऐसे ही हो जाना इतना भी आसान नहीं जान पड़ता है क्योंकि कोई भी क्षेत्रीय नेता अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं को कभी भी पूरी तरह से दरकिनार नहीं कर सकता हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और चारा घोटाले में जेल में बंद लालू यादव से जब एक बार संवाददाताओं ने पूछा था कि क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं? तब इस सवाल के जवाब में मजाकिया अंदाज में लालू यादव ने कहा था की ‘जो भी राजनीति में है वो प्रधानमंत्री बनना चाहता हैं, मैं भी बनना चाहता हूँ। लालू यादव ने सवाल का जवाब देते हुए बिना लाग लपेट अपने दिल की बात बता दी थी, पर इस तरह से खुलकर कोई दूसरा नेता सामने आकर नहीं कह पाता है, हालांकि सारे नेताओं के दिल में ऐसी ख़्वाहिश ज़रूर रहती है, शायद इसीलिए जब भी राहुल गांधी या किसी नेता का नाम विपक्ष के तरफ से पीएम कैंडिडेट की तरफ से उछलता है तब उसे विपक्षी दलों में से ही कई नेताओं द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है और यह कह दिया जाता है की वक़्त आने पर इस बारे में निर्णय लिया जाएगा।
यही अनिर्णय की स्थिति विपक्ष की एकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देती है। चाहे पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी हों या फिर उत्तरप्रदेश से मायावती और मुलायम सिंह कोई भी राहुल गांधी के नाम पर एकजुट नहीं हो सकते हैं। यही कारण है कि फिलहाल उत्तरप्रदेश में सपा और बसपा गैर-कांग्रेसी/गैर-भाजपा मोर्चा बनाने के फिराक में है। इससे कम से कम उत्तरप्रदेश जो सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाला राज्य है वहां कांग्रेस की दाल गलती हुई नजर नहीं आ रही है। बहरहाल आगामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को अपने विकास कार्यों को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करने की जरुरत है। जहाँ तक विपक्ष की बात है तो विपक्ष के पास कोई एजेंडा ही नहीं हैं अतः वे अपनी आपसी कलह में ही जूझते रह जाएंगे।