70 के दशक में इंदिरा सरकार की तानाशाही के खिलाफ बिहार की धरती से उपजे जयप्रकाश नारायण (जेपी) की अगुआई वाले देशव्यापी आंदोलन जिसे सम्पूर्ण क्रांति भी कहा जाता है ने देश को कई बड़े नेता दिए जो आगे चल कर प्रखर नेता बने। उन्ही नेताओं की लम्बी फेहरिस्त में एक थे गोपालगंज बिहार में जन्मे लालू प्रसाद यादव। इस आंदोलन की भट्टी से तप कर निकले लालू यादव आगे चल के बिहार के मुख्यमंत्री और देश के रेलमंत्री भी बने।
लालू जी को मिले इस राजनितिक सफलता को आगे चल के वो सम्हाल के नहीं रख पाए। जातिवादी राजनीति, बेतुके बयानों और घोटालों में संलिप्तता ने उनकी छवि को धूमिल कर दिया।
क्या है चारा घोटाला ?
चारा घोटाला बिहार राज्य का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। इसमें मवेशियों को खिलाये जाने वाले चारे के नाम पर सरकारी खज़ाने से 950 करोड़ रूपये भर्जीवाड़ा कर के निकाल लिए गए थे। इस बड़े फर्जीवाड़े में कई लोग शामिल थे जिनमे से एक थे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जी। इस घोटाले में नाम आने के कारण लालू जी को मुख्यमंत्री पद इस्तीफ़ा तक देना पड़ा।
साल 1997 में सीबीआई ने लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले के मामले में चार्जशीट जारी की, और इसी कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा।अपनी पत्नी श्रीमती राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद सौंप कर लालू जी खुद राष्ट्रिय जनता दल के राष्ट्रिय अध्यक्ष बनकर परोक्ष रूप से सरकार खुद चलाते रहे। चारा घोटाला मामले में तब लालू जी को जेल भी जाना पड़ा और वे कई महीने तक जेल में भी रहे।
चारा घोटाले से जुड़ी कानूनी कार्यवाइयां।
साल 1994 में बिहार पुलिस ने तत्कालीन बिहार के गुमला, रांची, पटना डोरंडा और लोहरदग्गा आदि जैसे कई कोषागारों से फर्जीवाड़े के जरिये करोड़ो रुपयों की अवैध निकासी के एफआईआर दर्ज किये । पशुपालन और कोषागार विभाग के कई कर्मचारियों को रातों रात गिरफ्तार कर लिया गया, सप्लायरों और ठेकेदारों को भी हिरासत में लिया गया। राज्य भर में करीब दर्जन भर मुकदमे दर्ज किये गए।
सीबीआई को सौंपी गई जांच की बागडोर।
ये बात यहीं खत्म नहीं हुई, तब के विपक्षी पार्टियों ने घोटाले के बृहत् होने और सरकार के इसमें मिलीभगत होने के कारण मांग उठाई की इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए। केंद्र ने विपक्षी दलों की मांग को मानते हुए घोटाले कीं जांच की बागडोर सीबीआई को सौंप दी और सीबीआई ने इस मामले की जांच के लिए अपने संयुक्त निदेशक यू० एन० विश्वास को नियुक्त कर दिया, यहीं से इस घोटाले की जांच का रुख बिलकुल बदल गया।
सीबीआई ने अपनी आरंभिक जाँच के बाद बताया कि चारा घोटाला का ये मामला उतना भी सीधा नहीं है जितना उसे बिहार सरकार बता रही है। सीबीआई ने कहा कि चारा घोटाले में शामिल सभी बड़े आरोपियों के रिश्ते राष्ट्रीय जनता दल व दूसरी अलग अलग पार्टियों के प्रमुख नेताओं से रहे हैं और इस बात के उनके पास पर्याप्त सबूत भी हैं कि घोटाले से मिले काली कमाई का हिस्सा कई नेताओं के पास भी पहुंचा है।
सीबीआई के मुताबिक़, राज्य के सरकारी ख़ज़ाने से पैसा कुछ इसी तरह निष्कासित किया गया। पशुपालन विभाग के कर्मचारियों ने चारे और पशुओं की दवा की सप्लाई के नाम पर करोड़ों रुपये के जाली बिल कोषागारों से कई वर्षों तक भुनाते रहे ।
सीबीआई अधिकारीयों को जांच के दौरान पता लगा की बिहार के मुख्य लेखा परीक्षक ने इस निरंतर चल रहे फर्जीवाड़े की सुचना समय समय पर कई बार राज्य सरकार को भेजी थी पर सरकार ने इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी। वित्तीय अनियमितताओं का ये हाल था की कई वर्ष तो राज के विधान सभा में बजट भी पारित नहीं हुआ और राज्य का सारा काम-काज वित्तीय लेखा अनुदान के मार्फ़त चलता रहा।
सीबीआई ने बाद में कहा की उसके पास इस बात के ठोस सबूत है की तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू जी को भी इस फर्जीवाड़े की पूरी जानकारी थी और उन्होंने कई बार इस तरह के फर्जी निकासी के लिए वित्त मंत्रालय के प्रभारी को अनुमति भी दी। जांच में सीबीआई ने दावा किया की लालू जी और उनकी धर्मपत्नी राबड़ी देवी जी अपनी आय से अधिक सम्पत्ति रखने के भी दोषी हैं।
सीबीआई ने इसे सामान्य भ्रष्टाचार के बजाय व्यापक षड्यंत्र कहा क्यूंकि इसमें पशुपालन विभाग के कर्मचारी, राज्य के नेता और व्यापारी वर्ग सब सामान रूप से सहभागी थे। इस मामले में सीबीआई के कमान सम्हालते हीं कई गिरफ्तारियां हुईं और अलग अलग जगह पे छापे मारे गए। लालू जी के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट जारी की और उन्हें जेल जाना पड़ा। उच्चतम न्यायलय से जमानत मिलने से पहले कई महीनों तक उन्हें जेल में रहना पड़ा।
इस मामले के शीघ्र निपटारे में बहुत सी रूकाबटें आईं। इसी बहस में बहुत समय जाया कर दिया गया की अलग होकर बने नए राज्य झारखंड के मामलों की सुनवाई पटना उच्च न्यायलय में हो या रांची उच्च न्यायलय में। कई बाधाओं को झेलती हुई इस मुद्दे पर निर्णय आने में सत्रह साल लग गए।
क्या है वर्तमान स्थिति !
लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद पिछले 23 दिसम्बर को रांची की सीबीआई कोर्ट ने इस मुकदमे में निर्णय देते हुए लालू यादव समेत कुल 16 आरोपियों को दोषी ठहराया। वहीं इसी मामले में आरोपी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत 6 आरोपियों को बरी कर दिया गया। दोषी साबित होते हीं लालू यादव को पुलिस कस्टडी में ले कर रांची के विरसा मुंडा जेल भेज दिया गया।
राजनैतिक नफा नुक्सान !
इस निर्णय के बाद के राजनैतिक नफा नुक्सान पे भी राजनैतिक पंडितों की नज़र है। निर्णय के बाद जहाँ लालू जी के कुंवे ने इस मुद्दे को जातीय रंग देते हुए कहा की एक अगड़ी जाती का आरोपी इसी मामले में बरी कर दिया गया और मुझे पिछड़ी जाती का होने के कारण जेल जाना पर रहा है। साफ़ है की लालू जी का कुनबा इसे जातीय रंग दे कर अपने पक्ष में इस्तेमाल करना चाहता है।
वहीं अगर बात भाजपा और उनके घटक दलों की करें तो उनके लिए ये निर्णय कहीं न कही अच्छा संकेत है, ख़ास कर के तब जब 2जी घोटाले के दोनों मुख्य आरोपी ए राजा और कनिमोझी के बरी हो जाने से सरकार पर जो सवाल उठे थे, उन सवालों को ये निर्णय जरूर दबा देगी।
भविष्य की संभावनाएं।
बहरहाल 3 जनवरी को इस मामले पे सजा के ऐलान के बाद भी इस मामले में अभी थोड़ा और वक़्त तो लगेगा हीं। लालू जी ऊपर की अदालतों में अपील करेंगे और जमानत पे फिर बाहर आ जायेंगे। ऊपर की अदालतों में फिर ये मामला कुछ साल चलेगा। पर ये तो साफ़ है की इस निर्णय के बाद लालू जी की पार्टी को और नुक्सान होगा। चुनाव तो लालू जी 2013 से हीं नहीं लड़ सकते पर पार्टी प्रचार में वो बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, देखना दिलचस्प होगा की अब भी उनके समर्थक उनके साथ रहेंगे या अब उनका मोहभंग हो जायेगा।