उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने 40 फीसदी के करीब वोट शेयर के साथ प्रचंड जीत हासिल की। राजनीतिक तौर पर प्रभुत्व रखने वाले हिंदी क्षेत्र उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने विरोधियों को कहीं पीछे छोड़ते हुए 403 सीटों में से 312 सीटों पर कब्जा किया।
हालांकि 11 मार्च को आए नतीजों से बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी ने भी वोट शेयर के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया। सपा ने 2012 के उस वोट शेयर को बरकरार रखा जिसने उसे राज्य की सत्ता तक पहुंचाया था।
हालांकि पार्टी को बड़ा नुकसान उसके कांग्रेस के गठबंधन की वजह से हुआ। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अपने जाटव- दलिव वोट को बरकरार तो रखा, लेकिन वो अपने कोर वोट से अलग अन्य मतदाताओं को आकर्षित करने में असफल साबित हुई।
2017 में मतप्रतिशत में हुआ मामूली बदलाव
विश्लेषक मान रहे थे कि इस साल मतदाताओं के प्रतिशत में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मतदाताओं की सहभागिता में 2017 के इस चुनाव में मामूली परिवर्तन देखने को मिला।
जहां 2012 में ये प्रतिशत 59.4 फीसद था वहीं 2017 में ये 61.14 फीसदी हो गया है। ये राजनीतिक विश्लेषण त्रिवेदी पॉलिटिकल डेटा के कैलकुलेशन के आधार पर किया गया है।
हालांकि महिलाओं के मत प्रतिशत में पुरुषों के मुकाबले इस साल 3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है।
305 राजनीतिक पार्टियां थीं मैदान में, 9 को मिला प्रतिनिधित्व
305 राजनीतिक पार्टियां इस बार चुनाव मैदान में थीं। इन पार्टियों की संख्या पिछले कुछ सालों में बढ़ी है। 2007 के चुनावों में 222 पार्टियां चुनाव मैदान में थीं। वहीं दूसरी ओर इन पार्टियों का जीत प्रतिशत घटा है। 2002 में जहां 17 पार्टियां राज्य की विधानसभा में जनता का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। 2017 में 9 पार्टियों के प्रत्याशी ही राज्य की विधानसभा में लोगों का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे।
इसकी सबसे बड़ी वजह छोटी पार्टियों को छोड़कर मतदाताओं द्वारा बड़ी पार्टियों का चयन है। मतदाता उन उम्मीदवारों या पार्टियों का चयन कर रहे हैं जिनके जीतने की संभावना ज्यादा है।
मतदाताओं और राजनीतिक पार्टियों के रिश्तों की बात करें तो मतदाताओं ने उन पार्टियों की तरफ रुझान दिखाया है जो कि उनके हित और सुविधाओं की बात करती हैं। उत्तर प्रदेश की रानजीति में मतदाताओं का ये रुझान 1980 और 1990 के ट्रेंड के बिल्कुल उल्टा है।