मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए हैं. अर्थव्यवस्था, विकास, रक्षा, बजट, टैक्स रिफॉर्म के बीच विदेश नीति भी एक बड़ा मुद्दा है जिसकी हमेशा चर्चा होती रही है. इस नीति पर मोदी सरकार के कई फैसले सराहनीय रहे तो कई पर विपक्षियों ने जमकर सवाल उठाए. मोदी सरकार के 3 साल के कार्यकाल के दौरान विदेश नीति के तहत लिए गए कुछ अहम फैसलों को समझ कर ही यह तय किया जा सकता है कि सरकार के कार्यकाल के दौरान लिए गए फैसलों का दूसरे देशों से रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा.
पाकिस्तान से बनते-बिगड़ते रिश्ते
केन्द्र में मोदी सरकार बनते ही शुरुआत सभी दक्षिण एशियाई देशों को नई सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह में शामिल होने के न्यौते के साथ हुई. इससे साफ संकेत मिला कि भारत की नई सरकार अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ एक मजबूत रिश्ता कायम करने की कवायद करेगी. यह संकेत तब और पुख्ता हो गया जब प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर आयोजित शादी समारोह में शिरकत की. भारत-पाकिस्तान रिश्तों में ऐसी गर्मजोशी का उदाहरण पूर्व की सरकारों के कार्यकाल में देखने को नहीं मिली.
नापाक कोशिश और माकूल जवाब
लेकिन इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-पाक रिश्तों में नया आयाम सामने किया. सरहद पार से आतंकी वारदातों को रोकने के लिए पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करने की मंजूरी दी गई. ऐसी मिसाल भी पूर्व की सरकारों के कार्यकाल में देखने को नहीं मिली. जाहिर है, तीन साल के मोदी कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान को साफ-साफ संकेत दिया गया कि दोस्ती का हाथ बढ़ाने के बावजूद सरहद पार से किसी नापाक कोशिश को माकूल जवाब देने के लिए मोदी सरकार तैयार है.
नेपाल को दो टूक
जब मोदी सरकार का कार्यकाल शुरू हुआ, नेपाल-भारत रिश्ता नाजुक दौर से गुजर रहा था. इसके बाद नेपाल में आए अप्रैल 2015 के भूकंप के बाद भारत सरकार ने बढ़ चढ़ कर नेपाल की मदद करने की पहल की. हालांकि इस दौरान नेपाल और चीन की बढ़ती नजदीकी दोनों देशों के बीच रिश्ता चुनौती भरा रहा है.
अब ट्रंप की बारी
यूपीए की मनमोहन सरकार के दौरान बराक ओबामा प्रशासन के साथ मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों की शुरुआत हुई. यहां से शुरू करते हुए मोदी ने अमेरिका में तेजी से बदलते आर्थिक और राजनीतिक हालात का मुकाबला किया है. बीते तीन साल में पीएम मोदी ने अमेरिका में अपने मेक इन इंडिया और और ग्लोबल वर्कफोर्स प्रोवाइडर के कार्यक्रमों को सामने रखा है. अमेरिका में इंडियन डाएसपोरा (भारतीय मूल के लोग) से मजबूत कनेक्ट बनाने में अहम सफलता पाई है. वहीं अपने कार्यकाल के चौथे साल में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों के लिए अहम है.
मोदी बनाम पुतिन- दबाव में नहीं होगी कोई डील
प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की जून के पहले हफ्ते में मुलाकात होनी है. इस मुलाकात में रूस की कोशिश भारत के साथ कुडानकुलम 5 और 6 न्यूक्लियर रिएक्टर को विकसित करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर करने की है. लेकिन भारत ने रूस को साफ कर दिया है कि यदि वह भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए चीन को राजी करने में असमर्थ है तो इस तरह की डील का कोई फायदा नहीं होगा. गौरतलब है कि मोदी-पुतिन की मुलाकात में सबसे अहम मसौदा इस डील को लेकर है और भारत साफ शब्दों में कह चुका है कि वह चीन को भारत की सदस्यता के लिए राजी नहीं कर पाता तो ऐसी डील से भारत को कोई फायदा नहीं होने वाला है.