PM Narendra Modis successful foreign policy opened the doors of Islamic countries to India

पीएम श्री नरेंद्र मोदी जी की सफल विदेश नीति ने भारत के लिए खोले इस्लामिक देशों के द्वार

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के साथ ही श्री नरेंद्र मोदी जी ने मध्य-पूर्व के देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करने के सारे प्रयास तेज कर दिए थे। पुरानी उदासीन नीति को दरकिनार करते हुए मोदी जी ने सऊदी अरब, इज़राइल और यूएई से अपने रिश्तों को प्रगाढ़ करने की शुरुआत की है। प्रधानमंत्री को इसमें अच्छी सफलता भी मिली है। मोदी जी ने अपनी दूरदर्शी कूटनीतिक प्रयासों के चलते मध्य-पूर्व के देशों में अपनी एक अलग छवि बनाई है।

श्री नरेंद्र मोदी जी को हाल ही में 4 मुस्लिम देशों से सम्मानित भी किया गया है। मोदी जी को यूएई के द्वारा अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘जायेद मेडल’ से भी नवाज़ा गया है। दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास मज़बूत करने के लिए उन्हें ये सम्मान दिया गया था।

मुस्लिम देशों का मोदी प्रेम उस समय बहुत खुल कर सामने आया जब ओआईसी (आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉर्पोरेशन) ने मोदी को बतौर ‘गेस्ट ऑफ ओनर’ आमंत्रित किया। अपने स्वभाव के अनुरूप पाकिस्तान ने इसका विरोध किया लेकिन ओआईसी पर इसका कोई असर नहीं हुआ। मुस्लिम देशों के बीच भारत का बढ़ता हुआ कद अब पाकिस्तान को खटकने लगा है। लेकिन वहीं प्रधानमंत्री मोदी को मिले इस सम्मान के कारण भारत की विश्व में छवि और चमकदार हो गई है।

सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने मोदी से प्रभावित होकर उन्हें ‘बड़ा भाई’ तक कह दिया। ये इस बात का संकेत है कि भारत और सऊदी अरब के बीच संबंधों में मधुरता आ रही है। जब फरवरी में सऊदी अरब के प्रिंस ने भारत की यात्रा की तो उन्होंने भारत में अगले 2 सालों में 100 अरब डॉलर के निवेश की संभावना की बात कही। भारत की तेल कंपनी ओएनजीसी ने अबू धाबी में ऑइल कंसेशन के 10 फ़ीसदी शेयर भी 600 लाख डॉलर में ख़रीद लिये हैं।

भारत और इज़राइल के संबंध – प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और इसके पहले भाजपा के ही पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इज़राइल के साथ संबंधों पर विशेष ज़ोर देने की नीति अपनाई है। वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने न केवल व्यापार और निवेश बल्कि सुरक्षा क्षेत्र में भी इज़राइल के साथ दोस्ताना संबंधों की पैरवी की है। भारत सैन्य और रक्षा क्षेत्र में अपनी मज़बूती के लिए इज़राइल से 54 ड्रोन, ज़मीन से हवा में मार करने वाला मिसाइल तंत्र (कम दूरी और लंबी दूरी) और बराक-8 ख़रीद रहा है। भारत की इज़राइल के साथ बढ़ती नज़दीकियों से ईरान के साथ संबंधों में थोड़ी उदासी आयी है लेकिन इस पर थोड़ी दूरदर्शिता और कूटनीतिक समझ से निपटा जा सकता है।

भारत और ईरान के संबंध
भारत को ईरान से अपने संबंधों के कारण अमेरिका के दबाव का सामना करना पड़ा है लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो दोनों से संबंध अभी भी अच्छे हैं। भारत और ईरान के बीच एनर्जी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर अरबों डॉलर की संधि पर काम चल रहा है। इनमें ईरान के चाबहार पोर्ट को मॉर्डन बनाने को भी शामिल किया गया है। ईरान भारत से रेलवे, पेट्रोकेमिकल प्लांट और इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट वाली योजनाओं में भी निवेश चाहता है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने वर्ष 2016 के अपने ईरान दौरे में चाबहार पोर्ट के डेवलपमेंट के लिए 50 करोड़ डॉलर के निवेश की बात कही थी।

भारत की तेल की ज़रूरतों को पूरा करने में ईरान का बहुत बड़ा योगदान है इसलिए भारत नहीं चाहता कि ईरान से उसके संबंध किसी भी कारण से ख़राब हों। 2016 में अमेरिका और यूरोपीय संघ के दबाव के चलते भारत ने ईरान से तेल का आयात कम किया था लेकिन फिर भी दोनों देशों के रिश्ते दोस्ताना बने हुए हैं। भारत की नीति भी यही है कि ईरान से उसके रिश्तों में खटास न आये। लेकिन यदि भारत ईरान को नज़रअंदाज़ करता है तो इसका लाभ दूसरे देश जैसे रूस और चीन उठा सकते हैं और भारत फरजाद बी गैस फील्ड हाथ से गंवा सकता है। इसके अलावा भारत की चाबहार में वर्तमान स्थिति में भी कमज़ोर आ सकती है। इन सब के मद्देनज़र ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने दक्षिण पूर्व के देशों के साथ एक संतुलित नीति का पालन करते हुए अपने रिश्तों को आगे बढ़ाया है जो देश के विकास के लिए बेहद जरूरी है।

Rohit Gangwal
By Rohit Gangwal , April 16, 2019

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