भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 25 से 27 जून तक अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं। ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद मोदी की पहली अमेरिकी यात्रा पर बहुत सी निगाहें टिकी हैं, और इन निगाहों में उम्मीदें भी बहुत हैं।
हालांकि पिछले कुछ समय में अमेरिका और भारत के संबंधों में जो ठंडापन आया है वैसे में बहुत ज्यादा उम्मीदें भी बेमानी ही दिखाई देती हैं। लेकिन यह भी नहीं माना जा सकता कि मोदी अमेरिका जैसे मजबूत साझीदार देश के साथ द्विपक्षीय बातचीत में यूं ही खाली हाथ लौट आएंगे।
ऐसे में चार बड़े मुद्दे हैं जिन पर मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान बातचीत हो सकती है और वो पिछले कुछ समय से दोनों देशों के संबंधों पर बढ़ती जा रही बर्फ को पिघलाने का काम कर सकती है। आइए डालते हैं ऐसे ही चार मुद्दों पर एक निगाह।
एच1 बी वीजा पर हो सकती है बातचीत
राष्ट्रपति चुने जाने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने एच1बी वीजा को लेकर जिस तरह का सख्त रुख दिखाया है उसने पूरी दुनिया को चौंका कर रख दिया है। विदेशी पेशेवरों के अमेरिका जाकर काम करने को लेकर जिस तरह से ट्रंप लगातार नियमों को सख्त कर रहे हैं उसका खामियाजा भारत को भी भुगतना पड़ रहा है।
अमेरिका में काम करने वाली देश की प्रमुख आईटी कंपनियों टीसीएस और इन्फोसिस ने अब अमेरिकों को नौकरियां देने के ज्यादा रास्ते खोल दिए हैं इसके अलावा भारतीय युवाओं को दिए गए वीजा में भी कटौती कर दी है। आने वाले समय में दूसरी कंपनियां भी इसी राह पर चलेंगी। अमेरिका में विदेशी पेशेवरों के मामले में चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर है। ऐसे में पूरी संभावना है कि पीएम मोदी इस मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति से बात करके कोई बीच का रास्ता निकालने की पहल करें। ट्रंप के अनिश्चित रुख को देखकर ये ज्यादा मुश्किल भी नहीं दिखता।
एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए दोबारा पैरवी
भारत लंबे समय से न्यूक्लियर सप्लायर देशों के समूह यानि NSG में प्रवेश के लिए हाथ पैर मार रहा है। इस मुहिम में उसका सबसे बड़ा समर्थक अमेरिका ही रहा है, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा तो निजी तौर पर भी इसको लेकर प्रयास करते रहे हैं। हालांकि चीन के अडंगे से हर बार बात पटरी से उतर जाती है।
अब पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्ता से बाहर होने के बाद भारत की इस मुहिम का सारा दारोमदार नए राष्ट्रपति ट्रंप के कंधों पर है क्योंकि बिना उनके समर्थन के भारत की एनएसजी में एंट मुश्किल है। ट्रंप से मुलाकात के दौरान मोदी चाहेंगे की ओबामा की छोड़ी उस जिम्मेदारी को ट्रंप उसी तरह आगे बढ़ाएं। भारत के नजरिए से यह थोड़ा मुफीद भी नजर आता है क्योंकि चीन को लेकर लगातार ट्रंप का रुख मुखर रहा है ऐसे में चीन की मुखालफत के लिए भी ट्रंप भारत का समर्थन कर सकते हैं।