राज्यसभा में हुए पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण को विस्तार से पढ़े

आदरणीय सभापति जी, दोनों संयुक्‍त सदन को राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्‍यवाद देने के लिए मैं आपके सामने उपस्थित हुआ हूं। करीब 40 आदरणीय सदस्‍यों ने इस चर्चा में हिस्‍सा लिया है। श्रीमान गुलाम नबी आजाद जी, नीरज शेखर जी, श्री ए. नवनीथकृष्‍णन जी, श्री डेरेक जी, श्री डी राजा, श्री शरद यादव जी, श्री सीताराम जी, श्रीमान अहमद भाई और अभी अभी श्री आनंद शर्मा जी, मैं आप सबका बहुत आभारी हूं। और भी जिन माननीय सदस्‍यों ने विषय रखा है उसके लिए भी मैं आभारी हूं। ज्‍यादातर जो चर्चा रही है वो Demonetisation के आसपास रही है। इस बात का हम इन्‍कार नहीं कर सकते कि हमारे देश में ये एक बुराई आई है इस बात से इन्‍कार नहीं कर सकते इसने हमारी अर्थव्‍यवस्‍था में, समाजव्‍यवस्‍था में जड़े जमा दी हैं। इसको हम इन्‍कार नहीं कर सकते और इसलिए भ्रष्‍टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई, ये कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है, किसी राजनीतिक दल को परेशान करने के लिए लड़ाई नहीं है। और ऐसा सोचने का कारण भी नहीं है और इसलिए किसी ने इस विवाद को अपने साथ जोड़ने का कोई कारण नहीं बनता है। इस सदन में हम सबका दायित्‍व बनता है कि हमने इसके खिलाफ जो भी हम लोगों की संविधान की मर्यादाएं हों और जो हमारी बु‍द्धि permit करती है वो हमे करना चाहिए और ये भी सही है कि सारे Parallel Economy के कारण सबसे ज्‍यादा नुकसान किसी का हुआ है तो गरीब का हुआ है। गरीब का हक छीन लिया जाता है और मध्‍यम वर्ग का शोषण होता है। और ऐसा नहीं कि पहले कोई प्रयास नहीं हुए होंगे! पहले भी तो प्रयास हुए होंगे, अधिक प्रयासों की आवश्‍यकता है। ये प्रयास भी अगर और अधिक प्रयास की तरफ ले जाता है तो जाना पड़ेगा। क्‍योंकि आखिर तक हम कब तक इन समस्‍याओं को लेकर के carpet के नीचे डालकर के अपना गुजारा करते रहेगें।

और इसलिए जहां तक एक विषय चर्चा में आता है कि जाली नोट की चर्चा। जो आंकड़े प्रचारित हैं वो आंकड़े वो हैं जो जाली नोट बैंक तक पहुंचे हैं उसका हिसाब किताब। ज्‍यादातर जाली नोट तभी बैंक के दरवाजे तक न जाएं उस व्‍यवस्‍था से चलते हैं। और आतंकवाद, नक्‍सलवाद इसको बढ़ावा देने में इसका उपयोग भी होता है। कुछ लोग बड़े उछल-उछल कर कह रहें हैं कि आंतकवाद के हाथ से दो हजार की कुछ नोटें मिली थी। हमें पता होना चाहिए कि हमारे देश में ये जो नोटबंदी के बाद का जो कालखंड था, बैंक लूटने का जो प्रयास हुआ और उसमें भी नई नोट ले जाने का प्रयास हुआ, वो जम्‍मू-कश्‍मीर में हुआ। क्‍योंकि जाली नोटों पर स्थिति बनने के बाद रोजमर्रा के कारोबार के लिए उनके सामने दिक्‍कत आई थी। और जो नोट बैंक लूटने के कुछ ही दिनों के बाद जो terrorists मारे गए हैं, उसमें वो नोट हाथ लिए है। तो इसका सीधा-सीधा संबंध है, वो हमें समझना चाहिए और कारण नहीं है कि हम ऐसे लोगों के पक्ष में अपना विचार क्‍यों रखे कोई कारण नहीं है ये लोग ऐसे हैं कि जिनके खिलाफ हमने एक स्‍वर से लड़ना ही पड़ेगा। ईमानदार व्‍यक्ति को ताकत तब तक नहीं मिलेगी जब तक कि बेइमानों के प्रति कठोरता नहीं बरती जाएगी। और इसलिए इन कदमों का ultimate लाभ ईमानदार शक्तियों को बल मिलने वाला है, ऐसा हमारा स्‍पष्‍ट मत है।

आदरणीय सभापति जी, बहुत वर्षों पहले एक वांचू कमेटी बनी थी। और नोटबंदी के आर्थिक जरूरतों के संबंध में उन्‍होंने उस समय श्रीमति इंदिरा जी जब थी तब इन्होने अपना रिपोर्ट दिया था। और यशवंतराव जी चव्हाण उससे सहमत भी थे उसको आगे ये बढ़ाना चाहते थे, लेकिन उस समय इंदिरा जी ने कहा कि अरे भई हम तो राजनीति में हैं, चुनाव तो लड़ते रहते हैं। ये गोडबोले जी कि किताब में है जी, आपको आपको गोडबोले जी, श्री यशवंतराव चव्हाण के, गोडबोले जी की किताब जो छपी अच्‍छा होता आपने इतनी जागरूकता दिखाई होती और उस किताब के खिलाफ आवाज उठाई होती, आप सोए थे क्‍या?, क्‍या कर रहे थे आप? और इंदिरा जी के उपर इतना बड़ा आरोप लग जाए, और एक अफ़सर आरोप लगा दे और अभी तक आप सोए रहे? अरे आपकी जगह में मैं होता तो गोडबोले जी के खिलाफ केस कर देता लेकिन आपने नहीं किया। आज, आज जब गोडबोले जी की किताब की चर्चा हो रही है, तो आपको जरा लेकिन आज उसकी स्थिति तो थोड़ी और आगे बड़ी है जब वांचू कमेटी ने रिपोर्ट दिया था, तब कालाधन नकद वहीं तक समस्‍याएं सीमित थीं। आज कालाधन, आतंकवादी संगठन, जाली नोट का कारोबार, ड्रग्‍स का कारोबार, हवाला का कारोबार ये जीवन के कई क्षेत्रों तक फैल चुका है इसलिए इसकी व्‍यापकता बड़ी है।

जिस समय 8 नवंबर को निर्णय किया, तो जाली नोट का वापिस आने का सवाल ही नहीं उठता था। कोई छोटी बैंक होगी! कोई साधन नहीं होंगें और घुस गया होगा, तो वो रिजर्व बैंक तलाश करेगी। लेकिन जाली नोट का तो उसी समय neutralised हो गई। और इसलिए उसकी हिसाब अगर किसी के पास है, तो वो आश्‍चर्य होता है कि वो कैसे है। इनके पास जाली नोट तो उसी समय neutralised हो जाते हैं। और सबसे बड़ा, सबसे बड़ा इसी के कारण हुआ है और आपने एक टीवी खबर भी देखी होगी। दुश्‍मन देशों में जाली नोट का जो बहुत बड़ा कारोबार करने वाले को आत्‍महत्‍या करनी पड़ी थी, ये टीवी न्‍यूज पर बहुत दिन तक चला।

अब देखिए कि हमारे देश में तीस चालीस दिवस में 700 से ज्‍यादा माओवादीयों ने surrender किया तीस-चालीस दिन में ये पहली बार हुआ, ये नवंबर-दिसंबर के दरम्‍यान चालीस दिन में करीब 700 लोगों ने surrender किया है और उसके बाद भी ये प्रक्रिया चल रही है। अगर माओवादी surrender करें उसका संतोष इस सदन में किसी को न हो, ऐसा हो नहीं सकता। कैसे हो सकता है? और अगर नहीं हो रहा है तो फिर कुछ मतलब और है।

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उसी प्रकार से ये भी बात सही है कि देश की formal व्‍यवस्‍था में धन होना बहुत जरूरी है। हजार के नोट छपने के बाद सामान्‍य चलन में जाती नहीं थी, 500 के नोट बहुत कम जाती थी, हजार के नोट बहुत कम जाती थी और बंडल के बंडल का कारोबार चलता रहता था। ये हकीकत है इस हकीकत से हम इन्‍कार नहीं कर सकते हैं। अब जब इतनी बड़ी currency बैंको के पास आई है तो स्‍वाभाविक है कि बैंको की सामान्‍य व्‍यक्ति को पैसा देने की ताकत बढ़ेगी। ब्‍याजदर, एक साथ सभी बैंको ने ब्‍याजदर कम किया हो, वो पहली बार हमारे देश में हुआ था। बैंक का लाभ सामान्‍य लोगों के लिए..यहां पर असं‍गठित कामदारों की बात हो रही है, सचमुच में आप लोगों से खास करके, सीताराम जी और उनकी पार्टी से तो ये अपेक्षा रहेगी कि असंगठित कामदारों को उनके वेतन के संबध में सुरक्षा मिलनी चाहिए। ये हकीकत है कि जितना कहा जाता है उतना दिया नहीं जाता, दिया जाता है उसमें भी एक आध आदमी बाहर खड़ा रहता है वो कट लेता है ये बीमारियां हम सब जानते हैं, लेकिन ऐसी बहुत सी बीमारियों से हम परिचित हैं और इसलिए अगर हम ये व्‍यवस्‍था हम खड़ी करते हैं, तो उन श्रमिकों का लाभ मिलेगा समय रहते EPF के साथ भी जुड़ेगें, ESIC Scheme के साथ भी जुड़ेगें श्रमिकों को एक बहुत बड़ी सुरक्षा इसके कारण संभव होने वाली है, उस दिशा में हमारा प्रयास है।

असम खेती बागान का एक उदाहरण मैं देना चाहता हूं, वहां की सरकार ने थोड़ा initiative लिया, चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के लिए उन्‍होंने बैंक के खाते खुलवाए करीब सात लाख, mobile app पर उनको कारोबार करना सिखाया, शुरू में union वालों ने मना किया नहीं कैश पैसा देना पड़ेगा क्‍योंकि उसमें बाकी चीजें जुड़ी हुईं थीं, इसके कारण इस चाय बागान के मजदूरों को पूरा वेतन मिलने लगा, cut गया और उस इलाके में उनका कारोबार सुरक्षित हुआ, एक बहुत बड़ा experience है और मैं समझता हूं कि इसको हमने…।

उसी प्रकार से नोटबंदी के संबंध में कोई विदेशी अखबार को quote करते हैं, कोई विदेशी अर्थशास्त्रियों को quote करते हैं, एक ऐसा फलक है कि अगर आप दस quote करेगें तो मैं बीस कर सकता हूं, आप अगर दस महापुरूषों की quote कर सकते हैं, तो मैं बीस कर सकता हूं। ये इसलिए हो रहा है कि विश्‍व में इसका कोई parallel ही नहीं है। दुनिया में कहीं इतना बड़ा और इतना व्‍यापक निर्णय कभी हुआ नहीं है। और इसलिए दुनिया के अर्थशास्त्रियों के पास इसका लेखा जोखा करने का कोई मापदंड नहीं है। यह एक बहुत बड़ा दुनिया के अर्थशास्त्रियों के लिए, दुनिया की यूनिवर्सिटीस के लिए एक बहुत बड़ा केस-स्‍टडी बन सकता है।

और भारत ने कितना बड़ा निर्णय किया है इसका भी उसी प्रकार से जनसामान्‍य देश की जनशक्ति क्‍या होती है और इस सदन में बैठे हुए सभी महानुभावों से कहना चाहता हूं कि इस नोटबंदी के बाद समाजशास्‍त्री जरूर अध्‍ययन करेंगे, पहली बार देश में horizontal divide उभर कर के आया है। और जब मैं horizontal divide कहता हूं जनता जर्नादन का मिजाज एक तरफ और नेताओं का मिजाज दूसरी तरफ। ये जनता से इतने कटे हुए हैं, वो जनता से इतने कटे हुए हैं, पहली बार हमें संतोष होना चाहिए, आमतौर पर सरकार जब कोई निर्णय करती है तो जनता और सरकार आमने सामने रहती है, by and large कोई भी सरकार हो, ये पहली ऐसी घटना है कि कुछ लोग तो उधर थे लेकिन सरकार और जनता सा‍थ-साथ थी।

उसी प्रकार से इस बात का हम लोगों को गर्व होना चाहिए, हो सकता है आपकी कठिनाइयां कुछ होंगी, लेकिन इस बात को हमें समझना होगा और विश्‍व के सामने हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि इस देश के सवा सौ करोड़ लोग ऐसे हैं, वो अनपढ़ हो सकते हैं शिक्षा शायद न भी मिली हो जैसा आप वर्णन करते थे जो रिपोर्ट कार्ड आप दे रहे थे आप कि ऐसा है ऐसा है, ऐसा है, वो सब होते हुए भी, यह देश है जो अपनी भीतर की बुराइयों से बाहर निकलने के लिए मेहनत कर रहा है, तड़प रहा है। ये कोई भी राजनेता हो, दल कोई भी हो ये हम लोगों के लिए गर्व का विषय है कि इस देश में ऐसे जन हैं ऐसे नाग‍रिक हैं जो अपनी बुराइयों के खिलाफ लड़ने के लिए कष्‍ट झेलने के लिए तैयार होते हैं, कठिनाई झेलने के लिए तैयार होते हैं और बुराइयों से निकलने के रास्‍ते खोज रहे हैं। और इसलिए हमे भी इस बात को समझना होगा।

सभापति महोदय जी, पिछले सत्र में मनमोहन जी ने अपने विचार रखे थे, ये बात सही है कि अभी शायद एक किताब निकली है आपकी तरफ से, उसकी forward डाक्‍टर साहब ने लिखी है। मैं जब आपका रिपोर्ट देख रहा था, मुझे लगा कि शायद इतने बड़े अर्थशास्त्री हैं, तो किताब में उनका योगदान होगा। लेकिन पता चला कि किताब किसी और ने लिखी forward उन्‍होंने लिखी है। तो उनके भाषण में भी मुझे ऐसा लगा, उनके भाषण में भी ऐसा लगा कि शायद! ये बात बड़ी समझने की है पिछले करीब करीब, करीब करीब, करीब करीब 30-35 साल से, जो शब्‍द मैं बोला भी नहीं उसका अर्थ समझ गए ये, ये बड़ी गजब की बात है जी! अब डॉक्‍टर मनमोहन सिंह जी पूर्व प्रधानमंत्री हैं, आदरणीय व्‍यक्ति हैं। और हिंदुस्‍तान में पिछले 30-35 साल भारत के आर्थिक निर्णायकों के साथ उनका सीधा संबंध रहा आप निर्णायक भूमिका में रहा है। 35 साल तक इस देश में शायद ही कोई ऐसा अर्थ-जगत का व्‍यक्ति होगा, जिसने हिंदुस्‍तान के सत्‍तर साल की आजादी में आधा समय एक ही व्‍यक्ति का इतना दबदबा रहा हो। और इतने घोटालों की बाते आईं, लेकिन खासकर हम राजनेताओं ने डॉक्‍टर साहब से बहुत कुछ सीखने जैसा है। इतना सारा हुआ उनपर एक दाग नहीं लगा! बाथरूम में raincoat पहनकर के नहाना, ये कला तो डॉक्‍टर साहब ही जानते हैं और कोई नहीं जानता।

आदरणीय सभापति जी, इतने बड़े पद पर रहे हुए व्‍यक्ति ने सदन में जब लूट, launder जैसे शब्‍द प्रयोग किए थे, तो पचास बार उधर भी सोचने की जरूरत थी कि मर्यादा अगर लांघते हैं तो सुनने की भी तैयारी रखनी थी और हम उसी coin में वापिस देने की ताकत रखते हैं। और संविधान की मर्यादाओं में रहकर के करते हैं, लोकतंत्र का आदर करने वाले लोग हैं लेकिन किसी भी रूप में पराजय स्‍वीकार ही नहीं करना, ये कब तक चलेगा?

आदरणीय सभापति जी, ये बात सही है कि सामान्‍यजन को आंदोलित करने के बहुत प्रयास हुए थे और आज हम देखते हैं कि कहीं एक छोटा अकस्‍मात भी हो जाए तो भी दो चार गाडिया जला दी जाती है, कहीं बस भी लेट आ जाए तो एक आध दो बस जला दी जाती है। ये by and large क्‍या प्रभाव होंगे वो तो विषलेशन का विषय है लेकिन ये दृश्‍य रोजमर्रा की घटना हैं। लेकिन, हमारे भीतर की लड़ाइयों से लड़ने के लिए प्रति‍बद्ध है कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद भी ऐसी कोई घटना उन्‍होंने होने नहीं दी। और पूरे विश्‍व के सामने भारत के लोगों के इस सामर्थ्‍य को हमने गर्व के साथ प्रस्‍तुत करना चाहिए, हमें इसकी बात करनी चाहिए और तभी जाकर के मैं समझता हूं कि किस बात को दुनिया समझ पाएगी कि हम किस प्रकार के सोचते हैं।

मैं आज एक और बात का उल्‍लेख करना चाहता हूं कि एक मसला ऐसा था कि हम और सीताराम जी की विचारधारा अलग है, तो विचारों की प्रस्‍तुति अलग हो ये स्‍वाभाविक है। लेकिन, ये एक ऐसा विषय था जब मैं सोच रहा था तो मुझे पूरी कल्‍पना थी कि सीताराम जी और उनका दल हमारे साथ रहेगा इस काम में हमारे साथ रहेगा। और उसका कारण था कारण ये था आप ही की पार्टी के वरिष्‍ठ नेता श्रीमान ज्‍योतिमय बसु 1972 में उन्‍होंने वांचू कमेटी का रिपोर्ट हाउस में रखने की बहुत बड़ी मांग की और बहुत बड़ा उन्‍होंने लड़ाई लड़ी थी। सरकार मानती नहीं थी, उसको प्रस्‍तुत नहीं कर रही थी, आखिरकर वो एक कापी ले आए उन्‍होंने खुद ने टेबल पर रखी। उन्‍होंने खुद ही, ज्‍योतिमय बसु जी ने उस रिपोर्ट को टेबल पर रखा, Private Member कहते हैं और उनका जो भाषण हुआ उस दिन वो आज भी बहुत प्रस्‍तुत है, उन्‍होंने कहा था कि 26 अगस्‍त 1972, सर 12 नवंबर 1970 कोई शक्तिशाली और प्रतिष्ठित कमेटी की प्राथमिक सेवाओं में से एक था विमुद्रीकरण, सर श्रीमति इंदिरा गांधी कालेधन के दम पर ही बची हुई है। उनकी राजनीति कालेधान से ही जीवित है। इसलिए न सिर्फ इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया, बल्कि डेढ़ साल तक दबाये भी रखा गया। ये ज्‍योतिमय बसु जी ने 1972 को कहा दोबारा 4 सिंतबर 1972 लोकसभा में भाषण करते हुए ज्‍योतिमय बसु जी ने कहा ,”था मैंने विमुद्रीकरण और अन्‍य उपायों की सिफारिश की है। अब उन्‍हें दोहराना नहीं चाहता। सरकार को ईमानदारी के साथ लोगों का सहयोग करना चाहिए। लेकिन, प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी और उनकी ये सरकार का चरित्र है एक ऐसी सरकार जो कालेधन की है, कालेधन द्वारा है, और कालेधन के लिए है।” ये 1972 की बात मैं कर रहा हूं और कांग्रेस पार्टी के नेता 4 सितंबर 1972 को ये कहा है। इतना ही नहीं, सीपीएम के वरिष्‍ठ नेता हरकिशन सिंह जी सुरजीत उन्‍होंने 27 अगस्‍त 1981 इसी सदन में उन्‍होंने भाषण दिया और उन्‍होंने कहा,“कालेधन पर लगाम लगाने के लिए क्‍या सरकार वाकई ही कोई गंभीर कदम उठाना चाहती है? क्‍या सौ रुपये के नोट को बंद करने जैसे फैसले लिए जा सकते हैं?” ये सवाल सुरजीत जी ने भी इसी सदन में 1981 में उठाया था और इसलिए खासकर के Left से मेरा आग्रह है कि आप इस लड़ाई में हमारा साथ दीजिए और आप देंगे मैं आशा करता हूं आप अपने विचार व्‍यापक रूप से जरूर रखते रहें हैं लेकिन ये काम ऐसा है कि जिससे आप अलग हो ही नहीं सकते आपका character ऐसा नहीं है। लेकिन फिर भी, ये तो समय बताएगा, ये बात सही है कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं में इतने कड़े फैसला लेना आमतौर पर लोग मानते है कि populist कदम लेना ये लोकतंत्र का स्‍वभाव बन जाता है। Short-term goals को लेकर के स्‍वभाव बन जाता है। और इसलिए इतने बड़े फैसले को समझने के लिए भी थोड़ा समय लगता है तो उसमें भी किसी का दोष नहीं देता हूं धीरे-धीरे लोग समझ जाएगें जो आज इसका विरोध कर रहे हैं उनको भी समझ आएगा कि इतना बड़ा फैसला कितना बड़ा देश का भला करने की संभावनाए लेकर के आया है और हम उसको आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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यहां पर डिजिटल व्‍यवस्‍था के संबंध में चर्चा हो रही है, मैं हैरान हूं जितने भाषण हुए सामने से, इस देश में ये नहीं है डिगना नहीं है, फलाना नहीं है, ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ, टायलेट है तो पानी नहीं है, पता नहीं क्‍या क्‍या बोले। मैं सोच रहा था कि ये जो बोल रहें हैं वो क्‍या बोल रहे हैं? सत्‍तर साल की हिंदुस्‍तान की सरकारों का रिपोर्ट कार्ड दे रहे थे, जो भी बोल रहे थे ये नहीं है, तो सत्‍तर साल का रिपोर्ट कार्ड है अब सत्‍तर साल में मेरा contribution ढाई साल का ही है। ये हमने, आपने टायलेट बनाया तो हमने ताला लगा दिया क्‍या? आपने रोड बनाया तो मैंने उखाड़ कर फेंक दिया क्‍या? आपने पानी का नल डाला वो आकर मैंने टयूब काट दी क्‍या? ये हकीकत है कोई ये नहीं कहता है कि हिंदुस्‍तान के हर कोनों में डिजिटल व्‍यवस्‍था है कौन कहता है? सवाल ये है कि mind-set बदलने के लिए जहां संभावना है वहां हम इसको कर सकते है कि नहीं कर सकते?

मान लीजि‍ए दि‍ल्‍ली शहर में संभावना है, चलो भई दि‍ल्‍ली से शुरू करो, हम लोग positive कुछ contribute करो। Behavioral-change का वि‍षय है। अगर कलकत्‍ते के लोगों के पास मोबाइल फोन है। कलकत्‍ते में लोगों के पास digital connectivity है तो वहीं से शुरू करो। हो सकता है दूर-सुदूर बंगलादेश के गांवों में नहीं होगा। ये कहना और दूसरा हम इस बात का तो गीत गाते रहते हैं कि‍ हमने ये कर दि‍या, हमने वो कर दि‍या, ढींकना कर दि‍या। अब जब उसे लागू करने की बात आई तो हमें तकलीफ हो रही है।

दूसरा, हम शब्‍दों का खेल खेलते हैं। हर कोई मानता है भाई। कि‍सी भी बच्‍चे को पूछो, भई स्‍कूल daily जाते हो, कि‍सी को भी। आपके भी संतानों को मैं पूछुंगा तो कहेंगे, हॉं daily जाता हूं। लेकि‍न मुझे भी मालूम है उसको भी मालूम है कि‍ Sunday को नहीं जाता है। सबको मालूम है। तो ये स्‍वाभावि‍क है, उसी प्रकार से देश में cashless का मतलब है धीरे-धीरे समाज को इस प्रकार की payment की दि‍शा में ले जाना। दुनि‍या में आज भी बड़े-बड़े देश भी चुनाव करते हैं तो बैलेट पेपर छापकर के, ठप्‍पे मारकर के चुनाव करते हैं। जि‍स देश को अनपढ़ माना जाता है ये हि‍न्‍दुस्‍तान, दुनि‍या का सबसे बड़ा लोकतंत्र बटन दबाकर के वोटिंग करता है। जि‍स दि‍न बटन दबाने की व्‍यवस्‍था आई होगी, कि‍सी ने सोचा होगा कि‍ इतनी technology हमारे देश का गरीब से गरीब आदमी adopt कर सकता है।

यानी कि‍ हम अपने देश की शक्‍ति‍ को कम न आंके। हां, हम को लगता है कि‍ ये रास्‍ता ही गलत है, तो ठीक है, लेकि‍न असुवि‍धा है, तकलीफ है, तो छोड़ देना, वो सही नहीं है। असुवि‍धा होगी, व्‍यवस्‍थाएं कम होगी, लेकि‍न आगे तो बढ़ना होगा। आगे बढ़ने के अंदर।

कुछ लोग कहते है कि‍ दुनि‍या में कई देश आगे है। दुनि‍या के कई देश, मैं हैरान हूं, आनंद शर्मा जी कह रहे थे। आपको आश्‍चर्य होगा कि‍ कोरि‍या ने डि‍जि‍टल जाने के लि‍ए जो incentive scheme बनाई इतनी बड़ी मात्रा में आई। ये कह रहे है कि‍ आप करोड़ों रुपया डि‍जि‍टल को promote करने के लि‍ए कर रहे हो। अब जो BHIM app बनाई है। BHIM app में एक नए पैसे का खर्चा नहीं है। बि‍ना खर्च के transaction हो रहा है। एक रुपए का भी कि‍सी बैंक को, कि‍सी को भी कमीशन नहीं जाता है, और इसलि‍ए दुनि‍या paper-less, premises-less बैंकिंग की तरफ जा रही है। भारत को पीछे रहने का कोई कारण नहीं है। हो सकता है हमारी व्‍यवस्‍थाएं कम होंगी तो दो साल और ज्‍यादा लगे, पांच साल और लगेंगे। लेकि‍न शुरू करना या ये दि‍शा गलत है, ये वि‍चार मैं समझता हूं उपयुक्‍त नहीं होगा। हम लोगों को प्रयास करना चाहि‍ए इसको promote करने के लि‍ए अपने-अपने इलाके में भी लोगों को हमें समझाना चाहि‍ए और उस दि‍शा में हमने आगे बढ़ना चाहि‍ए।

अब देखि‍ए, रेलवे। हमारे देश में सामान्‍य मानव जाता है। आज 60 से प्रति‍शत रेलवे में, online बुकिंग होने लगी है। उनकी payment online । अगर वो टि‍कट cancel करते हैं तो online पैसा वापि‍स जा रहा है। आज बहुत से परि‍वार है जो शहरों में रहते हैं। उनको अगर बि‍जली का बि‍ल भरना है, पहले बि‍जली का बि‍ल भरने के लि‍ए आधे दि‍न छुट्टी लेनी पड़ती थी और जाकर के दफ्तर में। आज वो घर में रात को 12 बजे आकर के अपने मोबाइल फोन से बि‍जली का payment दे रहा है। सुवि‍धा बढ़ती चली जा रही है। अगर ये सुवि‍धा वैज्ञानि‍क तरीके से टैक्‍नोलॉजी के तरीके से मि‍लती है तो हां हमें उसकी कमि‍यों की चि‍न्‍ता जरूर करनी चाहि‍ए। technological भी कोई कमी आती है तो उसे ठीक करना चाहि‍ए लेकि‍न ये कल्‍पना ही गलत है अगर ये negativity लेकर के हम चलेंगे तो हम देश का कोई भला नहीं कर सकते हैं।

Rupay Card- अभी अरुण जी बता रहे थे। इस देश में जनधन एकाउंट के साथ इस देश के 21 करोड़ लोगों को Rupay Card दि‍ए है। और आपको अंदाज नहीं है कि‍ इसकी ताकत क्‍या होती है। आमतौर पर जेब में ये कार्ड होना, ये बड़ा prestigious बन गया है एक वर्ग के लि‍ए, payment करनी है तो कार्ड से करना। ये भी हवा बन गई है कि‍ गरीब का तो वि‍षय ही नहीं है जी। अभी मुझे अनंत कुमार जी बता रहे थे। वो बैंगलोर से आ रहे थे तो उनके साथ कोई IT professional बैठे थे तो उन्‍होंने अपने ड्राइवर की घटना सुनी। बोले उनका ड्राइवर बहुतखुश है इस demonetization से। तो बोले क्‍यों। बोले आज कोई बड़ा आदमी कार्ड रखता है, मैं भी कार्ड रखता हूं। वो कार्ड दि‍खाने लगा। उसको बड़ा आनंद था। अब देखि‍ए ये समाज के सामान्‍य व्‍यक्‍ति‍ के जीवन में भी एक बदलाव की व्‍यवस्‍था है। एक नया आत्‍मवि‍श्‍वास पैदा होता है। जि‍सके घर में एक साईकि‍ल भी नहीं आती है न, वो खुशी से समा नही पाता है जब मोटरसाईकि‍ल आ जाती है। जि‍सके पास स्‍कूटर हो अगर छोटी सी लाता है, पुरानी भी लाता है वो गर्व करता है। हमें समाज के छोटे-छोटे लोगों के जो aspirations है उस aspirations को पूरा करने की दि‍शा में, हमारा प्रयास होना चाहि‍ए।

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Direct Benefit Transfer- कि‍तना बड़ा फायदा हुआ है। मैंने उस सदन में वि‍स्‍तार से कहा है कि‍ Direct Benefit Transfer के द्वारा करीब-करीब 50 हजार करोड़ रुपया जो कभी leakage होते थे और हर वर्ष होते थे, अब तक बचा पाए और आगे पता नहीं कि‍तने बच पाएंगे। Direct Benefit Transfer स्‍कॉलरशि‍प जैसे में। एक ही व्‍यक्‍ति‍ 6 जगह से लेता है। वि‍धवा पेंशन, जो बेटी का जन्‍म नहीं हुआ वो वि‍धवा भी हो गई और चेक भी कट रहा है। ये Direct Benefit Transfer स्‍कीम के कारण, ये जो leakage थी वो बि‍चौलि‍ए ले जाते थे। इसमें बहुत बड़ा देख का जो खजाना लूटा जा रहा था उसमें रोक लगी है। तो Direct Benefit Transfer स्‍कीम का भी इसके कारण फायदा हुआ है। हमें कोशि‍श करनी चाहि‍ए digital payment को बढ़ाने के लि‍ए हम जि‍तना प्रयास करते हैं, हमें करते रहना चाहि‍ए।

सरकार ने उस व्‍यवस्‍था को वि‍कसि‍त कि‍या है। POS machine की आवश्‍यकता। बहुत तेजी से POS machine बढाए जा रहे हैं। Mobile-Payment के लि‍ए E-wallet के लि‍ए promotion हो रहा है। Internet-Banking की तरफ काम चल रहा है। ‘AADHAR based payment’. जि‍स प्रकार से टैक्‍नोलॉजी develop हुई है। सि‍र्फ ‘AADHAR’ के आधार पर, कोई मोबाइल फोन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, वो अपना payment दे पाएगा, वो दि‍न दूर नहीं होंगे। और इसलि‍ए इन व्‍यवस्‍थाओं को या तो थोड़ा हम समझने की कोशि‍श करें और अपनी टीमों को इसमें लागू करने के लि‍ए प्रयास करें।

BHIM App बहुत ही उत्‍तम प्रकार की व्‍यवस्‍था बनी है। भारत सरकार की छत्रछाया में बनी है और BHIM App को जि‍तना popular करेंगे तो कोई व्‍यापारी कोई बाहर की एजेंसी को कोई लेना-देना नहीं होगा। सीधा-सीधा एक enable प्‍लेटफॉर्म है जि‍सका लाभ लोग ले सकते हैं। हमें इसको करना चाहि‍ए।

अब देखि‍ए ड्राइवर, जो हाइवे पर जाता है। हम जानते है कि‍ vehicle रुकने के कारण कि‍तना खर्चा हमारे पेट्रोल डीजल का होता है। 8 नवंबर के बाद उस पर भी थोड़ा बल दि‍या गया कि‍ भई ड्राइवर टोल टैक्स पर गाड़ि‍यां अपना टैक्‍स देने के लि‍ए टैक्‍नोलॉजी का प्रयोग करे। और radio frequency identification, RFID के जरि‍ए, पहले इक्‍के-दुक्‍के लोगों के पास वो व्‍यवस्‍था थी। इतने कम समय में आज करीब-करीब 20 प्रति‍शत ट्रैफि‍क, ये RFID के द्वारा payment करता है। कार आती है, सीधा उसका रजि‍स्‍ट्रेशन हो जाता है बैंक में से deduct हो जाता है, उसको रुकना नहीं पड़ता है, चली जाती है। ये अगर बढ़ेगा तो देश का कि‍तना पेट्रोल बचेगा। हमारे देश में टोल टैक्‍स पर ये स्‍थि‍ति‍ बनी है। उसी प्रकार से पेट्रोल पंप पर करीब-करीब 29-30 प्रति‍शत लोग, आज डि‍जि‍टल करेंसी से काम करना शुरू कर दि‍ए हैं। हमने चंद्रबाबू नायडू जी के नेतृत्‍व में कमेटी बनाई, उसकी अंतरि‍म रि‍पोर्ट आई है। उसका अध्‍ययन हो रहा है। फाइनल रि‍पोर्ट उनकी आने वाली है। लेकि‍न हम बदलाव के लि‍ए तैयारी करें और मुझे लगता है कि‍।

एक वि‍षय है Banking System- अगर आप कुछ भी कहते हैं तो फि‍र मैं कहता हूं कि‍ वो रि‍पोर्ट कार्ड है। पुराने कार्यकाल का वो रि‍पोर्ट कार्ड है। इस सरकार ने आकर के सबसे पहले तो Debt Recovery Tribunal की रचना की- 6, ताकि‍ बैंकों में जो भी debt है,सरकार ने initiative लि‍या। बैंकों में जो appointment होती थी, उसके लि‍ए कोई नि‍यम नहीं था, ऐसे ही चल रहा था, घि‍सी-पि‍टी व्‍यवस्‍था थी। इस सरकार ने Bank Board Bureau बनाया, independent एजेंसी है, वही recruitment करती है। उसके Chairman, Managing director, उसके Director वगैरह। बैंकिंग व्‍यवस्‍था में professionalism लाने का हमने प्रयास कि‍या है।

बैंक और फाइनेंस जगत, Banking Sector, Economic World इनकी एक Round Table Conference दो दि‍न की गई। हमारे देश की बैंकिंग को global level के standards में कैसे लाया जाए, वि‍स्‍तार से उन्‍होंने आत्‍ममंथन कि‍या, चिंतन कि‍या, अपनी कमि‍यों को भी उन्होंने समझा और ठीक करने का प्रयास कि‍या।

रि‍जर्व बैंक की गरि‍मा- मैं समझता हूं कि‍ मुझ पर हमला हो, हमारी पार्टी पर हमला हो, हमारी सरकार पर हमला हो, बहुत स्‍वाभावि‍क है, वो चलता रहेगा अपना। लेकि‍न रि‍जर्व बैंक को घसीटने का कोई कारण नहीं है। रि‍जर्व बैंक के गवर्नर को घसीटने का कोई कारण नहीं है। ऐसे institutions की मान-मर्यादाओं का पालन करने में हमारा योगदान होना चाहि‍ए। और इसके पहले गवर्नर थे तब भी कुछ लोगों ने आवाज उठा्र थी। फि‍र मैंने उसका भी वि‍रोध कि‍या था कि‍ ये शोभा नहीं देता। ऐसी चीजों को वि‍वादों से परे रखना चाहि‍ए। बाकी सरकार की व्‍यवस्‍थाएं हैं वो चलती रहेंगी, उसको हमें करना चाहि‍ए। अर्थव्‍यवस्‍था चलाने में रि‍जर्व बैंक की बहुत बड़ी भूमि‍का होती है। उसकी credibility की दि‍शा में हम लोगों का positive सक्रि‍य योगदान होना चाहि‍ए। लेकि‍न जो लोग रि‍जर्व बैंक की गरि‍मा और इस सरकार पर जब आरोप लगाते हैं तो मैं जरा उनको आज कहना चाहता हूं। और बड़े दुख के साथ कहना चाहता हूं। रि‍जर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. सुब्‍बाराव ने एक कि‍ताब लि‍खी है, ‘Who Moved My Interest Rate? और उस कि‍ताब में उन्‍होंने लि‍खा है कि‍ 2008 में तत्‍कालीन वि‍त्‍त सचि‍व के तहत एक Liquidity Management Committee को नि‍युक्‍त करने के सरकार के नि‍र्णय से मैं नाराज और परेशान था। चि‍दंबरम ने स्‍पष्‍ट रूप से भारतीय रि‍जर्व बैंक के वि‍षय के क्षेत्र में over-step कि‍या था। Liquidity Management पूरी तरह से रि‍जर्व बैंक का function है। न केवल उन्‍होंने मुझसे इस वि‍षय पर परामर्श भी नहीं कि‍या लेकि‍न अधिसूचना जारी करने के बारे में मुझे बताया तक नहीं था। मुझे क्‍या पता था कि‍ यह नि‍र्णय मेरे कार्यकाल के अंति‍म वर्ष में हम दोनों के बीच असहज संबंध के लि‍ए tone set करेगा। ये रि‍जर्व बैंक के Ex-Governor ने पुरानी सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है। और कि‍ताब में छापा है और अभी तक कि‍सी ने इसका जवाब नहीं दि‍या है। अब मैं बोल रहा हूं तो कुछ कहेंगे तो अलग बात है। लेकि‍न यह बात सही है कि‍ आज हम ये उपदेश देते हैं कि‍ जरा वे भी अपने आप को जरा गि‍रेबान में देखें। और मैं मानूंगा कि‍ हम राजनीति‍ से इसको परे रखे। इस Institution का गौरव रखने की दि‍शा में प्रयत्‍न करि‍एं।

और हमने क्‍या कि‍या है। RBI की ताकत बढ़े, उसके नि‍र्णय इस सरकार ने आकर के कि‍ए हैं। हमने RBI Act एक्‍ट संशोधन करके Monetary Policy Committee की स्‍थापना की है। कई वर्षों से उसकी चर्चा चल रही थी, कोई नहीं कर रहा था, हमने की। इस समि‍ति‍ को Monetary Policy संचालन की पूरी स्‍वायत्‍ता दी गई है। इस समि‍ति‍ के प्रमुख RBI के गवर्नर है। RBI के दो अधि‍कारी के अलावा 3 वि‍शेषज्ञ इसके सदस्‍य है। इस समि‍ति‍ में केन्‍द्र सरकार का एक भी सदस्‍य नहीं रखा गया है। और इससे बड़ी स्‍वायत्‍ता, Monetary Policy बहुत बड़ी बात होती है। इतनी बड़ी स्‍वायत्‍ता कोई कल्‍पना नहीं कर सकता है इस सरकार ने RBI को दी है। और उसके कारण RBI की ताकत को बढ़ावा मि‍ला है।

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ये बात सही है। कई वि‍षयों पर यहां चर्चाएं हुई हैं। कोई सरकार सोने के लि‍ए तो आती नहीं है। पहले भी जो सरकारें आई हैं उन्‍होंने भी तो कुछ न कुछ करने का तो प्रयास कि‍या होगा। हम ये तो नहीं कहते कि‍ कि‍सी ने कुछ कि‍या नहीं होगा। मैं लालकि‍ले पर से बोला हूं और हि‍न्‍दुस्‍तान के और कि‍सी प्रधानमंत्री ये बोला नहीं है जो मैंने बोला है। मैंने कहा है कि‍ देश आजाद हुआ, तब से जि‍तनी सरकारें आईं, जि‍तने प्रधानमंत्री आएं, जि‍तने लोक काम कि‍ए, उन सबका योगदान है, तब देश आज यहां आकर पहुंचा हैं। हम ऐसे लोग हैं। वो तो मुझे मालूम है और तो नाम लेने से कतराते हैं। उनको पसंद नहीं आता है कि‍ कि‍सी ओर ने कुछ काम कि‍या हो और उसका उल्‍लेख करते रहे। और इति‍हास गवाह है। लेकि‍न ये बात सही है कि‍ इस सरकार ने Governance के मुद्दे पर बहुत काम कि‍या है। छोटे-छोटे नि‍र्णय लेंगे लेकि‍न नि‍र्णय ने सामान्‍य मानव की ताकत को बहुत बढ़ावा दि‍या है।

हमने affidavit की प्रथा दी। MP के घर, MLA के घर, Carporator के घर लोग आ-आकर के सुबह खड़े हो जाते थे ठप्‍पा मरवाने के लि‍ए। queue लग जाती थी। और वो न देखता था न कुछ नहीं। एक peon बैठता था या कोई साथी कार्यकर्ता बैठता था वो ठप्‍पे मार देता था। हमने उस certificate को self-attestation की व्‍यवस्‍था कर दी और उसके कारण वो संकट से भी सामान्‍य मानव बच गया। क्‍योंकि‍ जब उसकी final appointment होगी तो original कॉपी लेकर के जाएगा। Xerox का जमाना है सब कुछ करने की क्‍या जरूरत है।

हमने इंटरव्‍यू खत्‍म कर दि‍ए। टैक्‍नोलॉजी के द्वारा तय होगा कि‍ जो अपने उसके मेरि‍ट होंगे, मेरि‍ट के आधार पर नौकरी मि‍लेगी। उसके कारण करप्‍शन गया। 1100 से अधि‍क कानून को खत्‍म कि‍या इसी दो सदनों ने खत्‍म कि‍या है। सीनि‍यर पोस्‍ट पर नि‍युक्‍ति, कई अखबारों ने articals लि‍खे हैं। पहली बार मेरि‍ट के आधार पर appointment हो रही है। पुरानी प्रक्रि‍या सारी, मेरा-तेरा सब चला गया है और इस पर कई neutral अखबारों ने बहुत अच्‍छे articals भी लि‍खे हैं।

DBT, direct benefit के द्वारा leakages को रोका गया है। पहले कंपनी रजि‍स्‍टर करनी होती थी तो 7-7, 15-15 दि‍न, दो-दो महीने लगते थे। आज 24 घंटे में कंपनी रजि‍स्‍टर हो सकती है। ये व्‍यवस्‍था की है। पहले पासपोर्ट पाने में महीने लग जाते थे, आज पासपोर्ट एक हफ्ते के भीतर देने की व्‍यवस्‍था की है। और अब Postal में जो head-office है उसको भी Passport-Office में convert करने की दि‍शा में हम लोग काम कर रहे हैं और उसका भी लाभ सामान्‍य मानव को मि‍लने वाला है और उस दि‍शा में हमारा प्रयास है।

हम ये भी जानते है कि‍ कोयले की नीलामी कि‍तना बड़ा वि‍षय था। आसानी से सरकार ने इसको लागू कर दि‍या। पारदर्शि‍ता को लाए। एक बड़ा महत्‍वपूर्ण नि‍र्णय कि‍या है जि‍सकी अभी चर्चा काफी हुई नहीं है लेकि‍न मैं इस सदन को बताना चाहता हूं। सरकार की जो खरीद करने की परंपरा होती है उसमें हम लोगों ने GEM को लॉन्‍च कि‍या है। जि‍समें Government E-market place, GEM, इस व्‍यवस्‍था को World Bank के South Asia Procurement Innovation Awards से भी सम्‍मानि‍त कि‍या गया है। अब उसमें दुनि‍या में जि‍सको भी सरकार को देना होगा, वो online आते हैं, अपनी लि‍स्‍ट रखते हैं और सरकार उसमें से तय कर सकती हैं। आर्थि‍क लाभ भी हुआ है और 5000 रुपए से ज्‍यादा का पेमेंट करना हो तो इस GEM के माध्‍यम से कर सकते हैं। उस दि‍शा में हमने व्‍यवस्‍था की है।

भ्रष्‍टाचार के खि‍लाफ Good Governance के माध्‍यम से, टैक्‍नॉलोजी के उपयोग के माध्‍मय से एक पारदर्शि‍ता लाने की दि‍शा में हमने बड़ी सफलता पाई है।

इस सरकार ने महि‍लाओं के सशक्‍तीकरण के लि‍ए अनेक नई योजनाएं बनाई हैं। उज्‍जवला योजना। हम जानते हैं गैस के सि‍लेंडर का क्‍या जमाना था, MP को 25-25 कूपन मि‍ला करते थे और उन 25 कूपनों को लेने के लि‍ए लोग कतार लगाते थे। वो भी दि‍न थे। 2014 के चुनाव में 9 सि‍लेंडर दें या 12 सि‍लेंडर दें, उस पर चुनाव का मुद्दा लड़ा गया था। ये सरकार के कार्यों में कि‍तना फर्क है। गरीब महि‍लाओं को गैस का चूल्‍हा, ये सपने में भी नहीं सोच सकते थे। अब तक करीब-करीब 1 करोड़ 65 लाख से ज्‍यादा गरीब परि‍वारों को गैस के कनेक्‍शन दे दि‍ए गए हैं। पांच करोड़ परि‍वारों तक पहुंचाने का पूरा इरादा है। देश में 25 करोड़ परि‍वार है, पांच करोड़ परि‍वारों तक पहुंचाने का प्रयास है।

प्रधानमंत्री आवास योजना- महि‍लाओं के नाम घरों का रजि‍स्‍ट्रेशन की कानूनी व्‍यवस्‍था की है। MGNREGA में 55 प्रति‍शत महि‍लाएं आज काम कर रही हैं जो पहले 40-45 प्रति‍शत हुआ करती थी।

मुद्रा योजना में बैंक से पैसे दि‍ए जाते हैं बि‍ना कि‍सी गारंटी के दि‍ए जाते हैं। पैसे लाने में 70 प्रति‍शत महि‍लाएं हैं यानी entrepreneur के रूप में हमारे देश की महि‍लाएं इसके साथ जुड़ रही हैं।

पंडि‍त दीनदयाल अंत्‍योदय योजना- Self-Help groups के काम दक्षि‍ण भारत में कुछ मात्रा में चलता था। लेकि‍न पूरे भारत में और पूर्वी भारत में उसको बढ़ावा देने की दि‍शा में भी हम लोगों ने काम करने का प्रयास कि‍या है।

गरीब गर्भवती महि‍लाओं के लि‍ए 6000 रुपए प्रसूता में IMR, MMR के लि‍ए। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभि‍यान, बहुत बड़ी मात्रा में उसको स्‍वीकृति‍ मि‍ली है, सामाजि‍क आंदोलन बना हुआ है। सुकन्‍या समृद्धि‍ योजना- एक करोड़ एकाउंट बच्‍चि‍यों के नाम पर खुले हैं और 11 हजार करोड़ रुपए, जि‍नको भवि‍ष्‍य के लि‍ए एक सुरक्षा की गारंटी देते हैं। महि‍ला शक्‍ति‍ केन्‍द्र 500 करोड़ की लागत से 14 लाख आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में इसकी स्‍थापना हुई है।

मि‍शन इन्‍द्रधनुष- बच्‍चों का टीकारकरण नहीं होता था। सरकारें चलती थी, टीकाकरण के कार्यक्रम होते थे। 55 लाख बच्‍चे ऐसे ध्‍यान में आए जि‍नका टीकाकरण नहीं हुआ था। मि‍शन इन्‍द्रधनुष के कारण उन बच्‍चों को खोजा गया। उनकी जि‍न्‍दगी बचाने की दि‍शा में काम कि‍या गया।

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ग्रामीण क्षेत्र में, यहां पर मैं हैरान था कि‍ स्‍वच्‍छता की मजाक उड़ाई जा रही थी। क्‍या कारण है मैं समझ नहीं पा रहा हूं। हम में से कोई नहीं है जो गंदगी में रहना चाहता है। हम ये भी जानते है कि‍ स्‍वच्‍छता behavior का issue ज्‍यादा है। Infrastructure का उसके साथ आता है। और मैं कहूंगा हम राजनेता कभी-कभी कम पड़ रहे हैं, मैं इस देश के मीडि‍या का अभि‍नंदन करना चाहता हूं कि‍ स्‍वच्‍छता के आंदोलन को उसने उठा दि‍या है। आज सब मीडि‍या के द्वारा स्‍वच्‍छता के लि‍ए इनाम दि‍ए जा रहे हैं, फंक्‍शन कि‍ए जा रहे हैं। स्‍वच्‍छता के संबंध में आज हि‍न्‍दुस्‍तान का, वरना सरकार के कि‍सी भी कार्यक्रम में मीडि‍या नेगेटि‍व करे वो स्‍वाभावि‍क है। ये एक अपवाद कार्यकम है जि‍सको सरकार से भी, राजनेताओं से भी दो कदम आगे मीडि‍या के लोग गए हैं और स्‍वच्‍छता को आंदोलन बनाने की दि‍शा में प्रयास कि‍या है और मैं उनका अभि‍नंदन करता हूं इस सदन के माध्‍यम से। और यहां कोई खड़ा होकर के कहता है कि‍ टॉयलेट है, पानी नहीं है। महात्‍मा गांधी भी इस बात के लि‍ए बड़े आग्रही थे। मुझे तो डर लगता है कि‍ कभी आज महात्‍मा गांधी होते और स्‍वच्‍छता की बात करते तो हम लोग यही भाषा बोलते क्‍या। क्‍या हम लोगों की जि‍म्‍मेवारी नहीं है, क्‍या समाज में बदलाव लाने के लि‍ए कोई सकारात्‍मक चीज कर ही नहीं सकते। हर चीज में हम वि‍रोध करेंगे। और इसलिए, मुझे खुशी है कि‍ ग्रामीण क्षेत्र में sanitation coverage जो पहले 42 प्रति‍शत था इस आंदोलन के बाद वो 60 प्रति‍शत पहुंचा है। हम जब ये बात करते है टॉयलेट की, आप कल्‍पना कर सकते हैं गांव की महि‍लाओं की ही क्‍या, शहरी की झुग्‍गी-झोपड़ी में जो महि‍लाएं रहती है, कि‍तनी पीड़ा होती है जी, अंधेरा नहीं होता तब तक वो शौचालय नहीं जा सकती। ये दर्द होना चाहि‍ए। ये तू-तू मैं-मैं का वि‍षय नहीं है लेकि‍न जब मजाक उड़ाते हैं कोई तो बहुत पीड़ा होती है। ये मजाक का वि‍षय नहीं हो सकता है।

महि‍लाओं की सुरक्षा के लि‍ए Universalization of Women Helpline 181, 24 घंटे एमरजेंसी सेवा को शुरू कि‍या गया है। 18 states & UTs ने इस महि‍ला हेल्‍पलाइन की व्‍यवस्‍था को आगे बढ़ाया है। महि‍लाओं की पुलि‍स में भर्ती 33 प्रति‍शत और कुछ राज्‍यों ने भी स्‍वीकार कि‍या है। UTs के अंदर ये compulsory कर दि‍या गया है। हरि‍याणा ने एक नया प्रयोग कि‍या है। जि‍सको हि‍न्‍दुस्‍तान में और लोग करे। मैंने presentation कि‍या है सबके सामने। उन्‍होंने महि‍ला पुलि‍स volunteers का एक network खड़ा कि‍या है जो इस प्रकार से लोगों की मदद करने का काम कर रहा है। एक नई स्‍कीम उन्‍होंने शुरू की है। कहने का तात्‍पर्य मेरा यह है। एक panic button की टैक्‍नोलॉजी का उपयोग करके, हम आने वाले कुछ दि‍नों में आपके सामने लेकर के आने वाले हैं।

कि‍सानों का सशक्‍तीकरण- इस सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। सबसे बड़ी बात प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना। हमें पसंद आए या न आए, लेकि‍न कि‍सान को सुरक्षा देनी है तो हमें उसको उसकी income के assurance के साथ जोड़ना होगा। हमारे यहां irrigation की सुवि‍धा बहुत कम है। प्राकृति‍क संसाधनों पर ही वो dependent है। ऐसी स्‍थि‍ति‍ में अगर बो नहीं सकता है तो भी और कटाई के बाद भी अगर बरबाद होता है तो भी अगर insurance मि‍लता है। और मुझे है कि‍ कुछ progressive राज्‍यों ने 40-40 50-50 प्रति‍शत कि‍सानों के insurance का काम उन्‍होंने कि‍या है। सरकार ने भी कि‍सानों के लि‍ए बहुत बड़ी मात्रा में फसल बीमा योजना को प्रोत्‍साहन देने के लि‍ए काम कि‍या है। पहले की तुलना में काफी बढ़ोतरी हुई लेकि‍न कुछ राज्‍यों में बहुत पीछे है। ये चि‍न्‍ता का वि‍षय है। इसको आगे बढ़ाना है।

नई Fertilizer Policy- यूरि‍या का उत्‍पादन। देखि‍ए नीम-कोटिंग, नीम-कोटिंग के कारण दो महत्‍वपूर्ण लाभ हुए, एक तो जमीन को तो फायदा हो ही रहा है, उत्‍पादन भी बढ़ रहा है। लेकि‍न पहले कि‍सान के नाम से सब्‍सि‍डी कटती थी बि‍ल कि‍सान के नाम से फटता था, लेकि‍न वो Chemical Industry में raw material के रूप में चला जाता था। जो Synthetic Milk बनाते थे वो भी यूरि‍या का उपयोग करते थे। 100 प्रति‍शत नीम-कोटिंग करने के कारण जमीन के सि‍वा उसका कहीं उपयोग संभव ही नहीं रहा है। चोरी गई है। न यूरि‍या का आज black-money हो रहा है। यूरि‍या नहीं मि‍ल रहा है ऐसी कि‍सी Chief Minister की चि‍ट्ठी नहीं आती है। यूरि‍या के लि‍ए कतार नहीं लगती है, यूरि‍या के लि‍ए कि‍सी को परेशानी नहीं हो रही। छोटे से परि‍वर्तन भी कि‍तना बड़ा बदलाव ला सकते हैं वो आप देख सकते हैं।

हमारे देश में दाल का उत्‍पादन- इस सरकार ने उसको प्रमोट करने की दि‍शा में प्रयास कि‍या है। और उसका परि‍णाम यह है कि‍ आज करीब-करीब 50 से 60 प्रति‍शत वृद्धि‍ की संभावना इस बार पैदा हुई है। हमारे देश के कि‍सानों ने सरकार के आवाह्न को स्‍वीकार कि‍या और सारे रि‍कॉर्ड तोड़कर के इस काम को उन्‍होंने कि‍या है।

e-NAM- Electronic Market 500 मंडि‍यों में, अब कि‍सान जहां भी ज्‍यादा दाम से माल बि‍क सकता है वो technology के माध्‍यम से कर सकता है। 500 मंडी में मोबाइल फोन के द्वारा आज मेरा कि‍सान व्‍यापार कर सके इस स्‍थि‍ति‍ में नहीं है। करीब 250 मंडि‍यों ने इस काम को पूरा कर दि‍या है। राज्‍यों ने कुछ कानून बदलने थे तो कुछ कानून बदले हैं। हम जानते हैं food processing हमारे कि‍सान को लाभ तब होगा जब हम food processing पर बल देंगे। सरकार ने 100 प्रति‍शत FDI allow कि‍या है ताकि food processing को मदद मि‍ले और value addition हो ताकि‍ हमारे कि‍सान की ज्‍यादा income हो और उस दि‍शा में काम करने की दि‍शा में हम प्रयास कर रहे हैं।

आदि‍वासि‍यों का सशक्‍तीकरण- करीब-करीब 28 वि‍भाग का कहीं न कहीं उनका आदि‍वासी के साथ संबंध आता है। हमने पहली बार एक Tribal sub-Plan के तहत, राशि‍ तो बढ़ा दी, लेकि‍न वनबंधु कल्‍याण योजना के तहत एक Comprehensive Plan बनकर के outcome दि‍खाई दे, उस दि‍शा में एक सफल प्रयास कि‍या है।

Forest Rights Act- उसको मजबूती से लागू करने की दि‍शा में काम कि‍या है। Tribal areas में पहली बार क्‍योंकि‍ हमारे देश में जि‍तने भी minerals है, mining है वो ज्‍यादातर tribal-belts में है चाहे कोयला हो, चाहे Iron हो, चाहे और हो लेकि‍न वहां लाभ नहीं मि‍लता था। पहली बार सरकार ने District Mineral Foundation बनाया और जो वहां से खदान से नि‍कलता है, उस पर टैक्‍स लगाया। मुझे छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री कह रहे थे कि‍ मेरे 7 जि‍ले ऐसे है कि‍ जहां से जो खनि‍ज नि‍कलता है, ये जो आपने योजना की है, Foundation बनाया है उसके कारण उन जि‍लों के वि‍कास के लि‍ए मुझे अब extra बजट की कभी जरूरत नहीं पड़ेगी। इतनी बड़ी मात्रा में राशि‍ उन गरीब आदि‍वासि‍यों के काम आने वाली है, उस पर हमने काम कि‍या है।

हमने Rurban Mission जो चलाया है, उसका सबसे बड़ा लाभ आदि‍वासी क्षेत्र में होने की संभावना है। आदि‍वासी मार्कि‍ट को एक बड़ी मार्कि‍ट में develop होना चाहि‍ए। मार्कि‍ट में develop होता है तो वहां education system आता है , वहां पर medical facility आती है वहां पर और एंटरटेनमेंट की सुवि‍धा। धीरे-धीरे अगल-बगल के 50-100 गांव का वो केन्‍द्र बन जाता है और Rurban के द्वारा tribal-belts में 300 ऐसे नए शहर बनाने की दि‍शा में हम काम कर रहे हैं। ये आदि‍वासी क्षेत्र के वि‍कास के लि‍ए एक बहुत बड़ा काम होगा।

उसी प्रकार से स्‍वच्‍छता, मैंने प्रारंभ में कहा था कि‍ स्‍वच्‍छता एक जन आंदोलन बनना चाहि‍ए। जन आंदोलन बनाने की दि‍शा में हम सबका कुछ न कुछ योगदान होना चाहि‍ए। जब से हमने स्‍वच्‍छता के लि‍ए रैंकिंग करना शुरू कि‍या है, independent agency द्वारा कि‍या है शहरों के बीच में स्‍पर्धा शुरू हुई है। एक शहर अगर आगे गया तो दूसरा शहर उस शहर को टोकता है कि‍ देखो वो शहर तो आगे हो गया, हम क्‍यों सफाई नहीं कर रहे? धीरे-धीरे ये बात नीचे तक जाने लगी है। हम लोगों को उस पर बल देना चाहि‍ए और मैं तो चाहूंगा कि‍ हमारे देश की सभी पॉलि‍टि‍कल पार्टि‍यों को कहीं न कहीं सरकार चलाने का इन दि‍नों अवसर मि‍ला है। कोई नगरपालि‍का में होंगे, कोई जि‍ला पंचायत में होंगे, कोई राज्‍य में होंगे। आपको अपनी पार्टी की सरकारों में जो सेवा करने का अवसर मि‍ला है आप उनसे भी तो competition कीजि‍ए। वो communist ruled जि‍तने शहर है उनके बीच स्‍वच्‍छता की स्‍पर्धा कीजि‍ए। communist ruled जि‍तने district पंचायत है उनके बीच स्‍वच्‍छता की स्‍पर्धा कीजि‍ए। एक वातावरण बनेगा। BJP ruled states होंगे तो वहां की नगरपालि‍काएं competition करें। एक बार हम इस competition को आगे बढ़ाएंगे तो मैं समझता हूं कि‍ ये स्‍वच्‍छता का अभि‍यान सफल होगा। ये सरकारी कार्यक्रम नहीं है ये जन आंदोलन होना चाहि‍ए। ये युगों की आवश्‍यकता है, behavioral change की आवश्‍यकता है। वर्ल्‍ड बैंक की रि‍पोर्ट कहती है कि‍ करीब-करीब अस्‍वच्‍छता के कारण हेल्‍थ के लि‍ए ढाई लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ता है। अगर हम इतनी care करे तो देश के ढाई लाख करोड़ रुपए, ये वर्ल्‍ड बैंक की रि‍पोर्ट है हि‍न्‍दुस्‍तान के संबंध में। गरीब मानवी को तो एक साल में करीब-करीब 7 हजार रुपए का खर्चा आता है। गंदगी से बीमारी आना बहुत स्‍वाभावि‍क है। हम इसको बचा सकते हैं।

अब बच्‍चों को हाथ धोकर के खाना खाना चाहि‍ए। ये हर कोई मानता है। लेकि‍न हम कहें तो कोई कहेगा वहां तो पानी नहीं है, नल नहीं है, वहां तो ढींकना नहीं है, बच्‍चा कुएं पर जाएगा तो। अरे ऐसा थोड़ी न सोचते हैं। ये जो सोच है, इसी सोच ने देश को यहीं दबोच कर रखा हुआ है। अरे जरा कुछ सोचो तो सही नि‍कले तो सही कठि‍नाइयां आएंगी तो रास्‍ते नि‍कलेंगे। लेकि‍न हम घर में बैठकर के, वहां बच्‍चों को आप हाथ धोने के लि‍ए कह रहे हैं लेकि‍न वहां ढींकना नहीं, फलाना नहीं है। ऐसे देश बदलता नहीं जी, इसलि‍ए इस मानि‍सकता से देश का हम बहुत नुकसान कर रहे हैं। इस मानसि‍कता से हमें बाहर आना चाहि‍ए। दुनि‍या में, हम देखे हमारे अड़ोस-पड़ोस के देश, चाहे साउथ कोरि‍या देखे, चाहे मलेशि‍या देखे, थाइलैंड देखे, सिंगापुर देखे, छोटे-छोटे देश उन्‍होंने 15-15 साल लगा दि‍ए स्‍वच्‍छता के लि‍ए और आज हम लोगों के लि‍ए वो एक मॉडल के रूप में नजर आते हैं। क्‍यों हम हि‍न्‍दुस्‍तान में नहीं कर सकते। हमारा भी तो सपना होना चाहि‍ए कि‍ छोटे-छोटे देश अगर वे हो सकते हैं तो हम क्‍यों नहीं हो सकते हैं। हमें उस दि‍शा में प्रयास करना चाहि‍ए। लेकि‍न कभी-कभी क्‍या लगता है कि‍ जि‍स प्रकार का वातवरण बना है, कि‍सी शायर ने कहा है शहर तुम्‍हारा, काति‍ल तुम, शाहि‍द तुम, हाकि‍म तुम, मुझे यकीन है कि‍ मेरा ही कसूर नि‍कलेगा। लेकि‍न मैं मानता हूं कि‍ उसमें से हम जरा बाहर आएं।

एक और वि‍षय करके मैं अपनी बात को समाप्‍त करना चाहूंगा। एक भारत श्रेष्‍ठ भारत- इस काम को हमने 31 अक्‍तूबर को लॉन्‍च कि‍या। सरदार पटेल की जयंती पर लॉन्‍च कि‍या। हमारे देश में दुनि‍या के कि‍सी राज्‍य के साथ sister state बनना, sister city बनना, ये तो कई वर्षों से चल रहा है लेकि‍न हमारी अपने ही देश के अलग-अलग लोगों से मि‍लने की आदत नहीं बनी। हमने ऐसे प्रकार से कर दि‍या कि‍ जि‍सके कारण कई राज्‍यों को लगने लगा कि‍ हमारी उपेक्षा हो रही है। आवश्‍यकता है कि‍ हमारे देश की potential को हमें पकड़ना चाहि‍ए। हमने एक भारत श्रेष्‍ठ भारत कार्यक्रम के तहत कोशि‍श की है और मैं चाहूंगा कि‍ सदन में जो लोग है वो इसे समझने और आगे बढ़ाने में मदद करें। जैसे दो राज्‍यों के बीच में MoU करते हैं। अभी 12 राज्‍यों ने एक-दूसरे के साथ शायद कर लि‍या है। जैसे हरि‍याणा और तेलंगाना ने कि‍या है। तो हरि‍याणा में तेलुगु भाषा के 100 sentences हरि‍याणा के लोग बोलना सीखें। हॉस्‍पि‍टल कहां है, रि‍क्‍शा कहां मि‍लेगी, होटल कहां है, फर्स्‍ट स्‍टेशन कहां है, पुलि‍सवाला कहां है, ये अगर सीखने को मि‍लेगा और तेलंगाना के लोग हरि‍याणा की भाषा सीखें। हरि‍याणा में कभी तेलंगाना का फि‍ल्‍म फेस्‍टि‍वल हो, हरि‍याणा का फि‍ल्‍म फेस्‍टि‍वल तेलंगाना में हो। Quiz competition हो, तेलंगाना की Quiz competition में हरि‍याणा के बच्‍चे स्‍पर्धा लें। एक प्रकार से देश का जानने का अभि‍यान, देश से जुड़ने का और ये जि‍तना हम बढ़ाएंगे। कभी-कभी लगता है, हि‍न्‍दी भाषा में कुछ शब्‍द भी नहीं होते लेकि‍न तमि‍ल में कुछ अच्‍छा शब्‍द होता है, लेकि‍न हम परि‍चि‍त नहीं है। मराठी में बढ़ि‍या शब्‍द होता है बांग्‍ला में बहुत बढ़ि‍या शब्‍द हाता है, हम परिचित नहीं हैं। हमारे देश की इतनी बढ़ी ताकत है। इस ताकत को जोड़ने की दि‍शा में ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ का एक अभि‍यान चलाने की दि‍शा में प्रयास चल रहा है।

मै फि‍र एक बार सभी आदरणीय सदस्‍यों ने जो वि‍चार रखे हैं उसके प्रति‍ आभार व्‍यक्‍त करता हूं और आपने मुझे समर्थन देने के लि‍ए, बात करने का अवसर दि‍या, मैं इसके लि‍ए आभार व्‍यक्‍त करता हूं और राष्‍ट्रपति‍ जी के संबोधन को मेरा समर्थन देकर के मैं अपनी बात को समाप्‍त करता हूं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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By admin , February 10, 2017

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