विदेश मंत्रालय साफ़ कर चुका है कि कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ़ के बीच कोई मुलाक़ात तय नहीं है. भारत ने ऐसी मुलाक़ात का कोई प्रस्ताव नहीं दिया है और न ही पाकिस्तान की तरफ़ से ही ऐसी कोई पेशकश हुई है. फिर भी अस्ताना में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाक़ात की अटकलें लगाईं जा रही हैं. मुलाक़ात आधिकारिक और तयशुदा न सही, चंद मिनटों की अनौपचारिक भेंट ही सही. हालांकि कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव की मेजबानी में दिए जा रहे भोज में दोनों ही नेता शिरकत करेंगे.
इसके पीछे कुछ वजहें भी बताई जा रही हैं. आठ-नौ जून को हो रही शंघाई कोऑपरेटिव ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) की यहां हो रही शिखर बैठक में भारत और पाकिस्तान को पूर्णकालिक सदस्य का दर्जा दे दिया जाएगा. इसकी प्रक्रिया पिछले साल जून से शुरू हुई थी. दोनों देशों ने इसके लिए मेमोरेंडम ऑफ आब्लिगेशन पर दस्तखत किए हैं. इसमें सभी सदस्य देशों का आपस में सहयोग बड़ी शर्त है.
हालांकि ये शर्त दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर बाध्यकारी नहीं है पर एससीओ के सभी पुराने देश चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान अपने रिश्तों पर ज़मीं बर्फ़ पिघलाएं. याद हो कि उफ़ा में 2015 में भी दोनों प्रधानमंत्री एससीओ बैठक के दौरान ही मिले थे और बातचीत के पटरी पर लाने की कोशिश की शुरुआत की थी. पर पाकिस्तान की तरफ़ से लगातार आतंकी वारदातों की वजह से ये पटरी पर लौट न सकी.
भारत दो टूक लहजे में साफ़ कर चुक है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते. इसलिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी कह चुकी हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी और नवाज़ शरीफ की यहां अस्टाना में कोई मुलाक़ात होगी. लेकिन पाकिस्तान से मिल रही जानकारी के मुताबिक़ कुलभूषण जाधव ICJ में शुरुआती हार का मुंह देख चुके पाकिस्तान पर बातचीत की पहल का भारी दबाव है. समस्या ये है कि वह बातचीत का अनुरोध खुलकर नहीं करना चाहता.
नवाज़ शरीफ़ गुरुवार सुबह अस्ताना पहुंच रहे हैं जबकि मोदी दोपहर को. दोनों एक शहर में होंगे और वे चाहें तो उनके पास मिलने का वक्त भी होगा. ऐसे में चीन और रूस समेत शंघाई को-ऑपरेशन आर्गेनाइजेशन के सदस्य देशों की कोशिशें कहां तक रंग ला पाती हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.