गुजरात के मुख्यमंत्री पद से देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक का सफर पूरा करने वाले नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार तीन साल पूरी कर चुकी है. 20014 के लोक सभा चुनावों के वक्त पूरे देश में चली मोदी लहर ने नरेन्द्र मोदी को एक ब्रांड बना दिया है. यही वजह है कि विधानसभा चुनावों के वक्त प्रदेश स्तरीय नेतृत्व मोदी की जनसभाएं, रैलियां और रोड शो अपने-अपने राज्यों में अधिक से अधिक करवाने की पूरी कोशिश करती हैं. खास बात यह है कि नरेन्द्र मोदी भी राज्यों की मांग पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. गौरतलब है कि मोदी ने खुद उत्तर प्रदेश में 20 रैलियों को संबोधित किया था. आज मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में हम आपको 5 वे बातें बताएंगे जो यह साबित करेंगी कि पिछले तीन सालों में नरेन्द्र मोदी एक ब्रांड बन कर उभरे हैं.
बीजेपी बनी सबसे बड़ी पार्टी
2014 के आम चुनावों में बीजेपी का परचम लहराने के बाद नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी राज्य दर राज्य विधानसभा चुनावों की जीत अपने खाते में लिखवाती चली गई. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक आधार भी लगातार फैलता रहा. जम्मू-कश्मीर को जोड़ लिया जाए तो देश के 14 राज्यों पर अब बीजेपी का शासन है. जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्य हैं. कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत की आधी से भी ज्यादा आबादी पर बीजेपी की सत्ता चल रही है. इसके अलावा बीजेपी ने दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने का रिकॉर्ड भी दर्ज किया. सबसे बड़ी पार्टी बनने पर अमित शाह ने यह लक्ष्य हासिल करने का श्रेय कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत को दिया और कहा था, “मुझे यह कहने में गर्व होता है कि बीजेपी करीब 10.5 करोड़ सदस्यों के साथ विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.’
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए तमाम राज्यों में केन्द्र की मोदी सरकार के जनपरोपकारी कामों और नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़े गए. इसमें दिल्ली, बिहार और पंजाब की हार को छोड़ दें तो बाकि सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों में या तो बीजेपी को सत्ता मिली या फिर वह सम्मानजनक स्थिति में रही. इस दौरान पर्चों, बिल्लों से लेकर होर्डिंग और सोशल मीडिया तक सभी चुनावों में मोदी ही मोदी नजर आते रहे हैं. 2014 के बाद के चुनावों में मोदी सरकार के दौरान हुई सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और उज्जवला योजना का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया और यह कारगर भी रहा.
मोदी बनाम ऑल हुई भारत की राजनीतिक व्यवस्था
जिस तरह एक समय देश की राजनीति कांग्रेस बनाम ऑल थी ठीक उसी तरह इन दिनों देश के राजनीतिक हालात मोदी बनाम ऑल जैसी ही है. सोनिया गांधी राष्ट्रपति चुनाव के लिए पूरे विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में तो लगी ही हैं साथ ही साथ उनकी नजर 2019 के लोकसभा चुनावों पर भी हैं. सोनिया के लिए यहां सबसे आगे लालू प्रसाद यादव नजर आ रहे हैं. वे विपक्ष को एकजुट करने की हरसंभव कोशिश का ऐलान कर चुके हैं. उनका कहना है कि जिस तरह हमने बिहार में अपने धुर विरोधी नीतीश कुमार के साथ मिलकर बीजेपी को हराया उसी तरह केन्द्र की राजनीति से भी खदेड़ देंगे.
यहां इतिहास में वन बनाम ऑल की बात करें तो 1971 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 352 सीटें मिलने और 1975 में आपातकाल लगाने के बाद 1977 के चुनावों में चार पार्टियों (कांग्रेस (ओ), जन संघ, भारतीय लोक दल और सोशलिस्ट पार्टी ने एक साथ चुनाव लड़ा और कांग्रेस के 189 के मुकाबले उस ‘महागठबंधन’ ने 345 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके अलावा 1984 में हुए लोकसभा चुनाव भी इतिहास के लिहाज से महत्वपूर्ण है. इन चुनावों में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को कुल 514 सीटों में से 404 सीटों पर जीत हासिल हुई. खास बात रही कि इस बार देश की संसद में प्रमुख विरोधी दल के तौर पर सामने आई एक क्षेत्रीय पार्टी (तेलगु देशम पार्टी), उसे कुल 30 सीटों पर जीत मिली जबकि सीपीआई (एम) को 22. इसके बाद 1989 के चुनावों में भी विपक्ष को कांग्रेस से टकराने के लिए एक होना पड़ा और देश ने वी. पी. सिंह और फिर चंद्रशेखर को पीएम की कुर्सी पर बैठे देखा.
भारतीय राजनीति में ट्रेंड सेटर बने मोदी
रैलियों में कही गईं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बातें लोगों की इस कदर भाती हैं कि उनमें से तमाम ट्रेंड में आ जाती हैं. सबका साथ सबका विकास, अबकी बार मोदी सरकार, देश का चौकीदार, न खाऊंगा न खाने दूंगा जैसी बातें आए दिन लोग बोलते रहते हैं. मोदी की सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रख बाकी राजनीतिक पार्टियों ने भी अपनी योजना बदली और सभी वर्गों की विकास की बातें कीं लेकिन तमाम राज्यों में अन्य दलों की बातों को जनता ने सिरे से नकार दिया.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता ने पिछले तीन सालों में भारत की सीमा लांघ विदेशों में भी अपना असर दिखाया. यही वजह है कि अपने तीन साल के कार्यकाल में कुल 56 विदेश यात्राएं कर चुके हैं. और इस महीने के अंतिम सप्ताह में चार देशों (जर्मनी, स्पेन, रूस और फ्रांस) की यात्रा पर निकल रहे हैं. विदेशी धरती पर भी मोदी-मोदी के नारों ने उनकी छवि को विश्वस्तरीय पहचान दिया. इसका उदाहरण आप सिर्फ इस बात से लगा सकते हैं कि मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में कुल 7 देशों के प्रमुख हिस्सा लेने आए थे जिनमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी शामिल थे. इसके अलावा पिछले तीन सालों में करीब 75 विदेशी मेहमान भारत दौरे पर आ चुके हैं जिनमें अमेरिका, चीन, रूस, आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, श्रीलंका, बांग्लादेश और ब्रिटेन जैसे देश भी थे.