वह 2014 की गर्मियों के दिन थे, जब देशवासियों ने निर्णायक रूप से मत देकर अपना फैसला सुनाया: परिवारतंत्र को नहीं, लोकतंत्र को चुना। विनाश को नहीं, विकास को चुना। शिथिलता को नहीं, सुरक्षा को चुना। अवरोध को नहीं, अवसर को प्राथमिकता दी। वोट बैंक की राजनीति के ऊपर विकास की राजनीति को रखा। 2014 में देशवासी इस बात से बेहद दुखी थे कि हम सबका प्यारा भारत आखिर फ्रेजाइल फाइव देशों में क्यों है? क्यों किसी सकारात्मक खबर की...
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