पिछले कुछ दशकों से भारत सरकार कर्ज लेकर अपना खर्चा पूरा कर रही हैं. हर साल सरकार सरकार तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से कर्ज लेती हैं. सरकारों की मंशा होती है कि कर्ज कम किया जाए. लेकिन पिछले पांच सालों के आंकड़े बताते हैं कि हर साल प्रति व्यक्ति ऋण बढ़ता ही गया है. यानि सरकारों ने लगातार ऋण बढ़ा ही लिया है!
हाल ही में सरकार ने इस बात का खुलासा संसद में किया है. सांसद लक्ष्मीनारायण यादव और रामटहल चौधरी ने वित्तमंत्री से इस बाबत प्रश्न किया था. उन्होंने वित्तमंत्री से पूछा था कि क्या देश में प्रति व्यक्ति ऋण भार बढ़ रहा है. इस संबंध में सरकार की प्रतिक्रिया क्या है. साथ ही उन्होंने पूछा कि वर्ष 2009 के दौरान प्रति व्यक्ति ऋण भार की तुलना में वर्तमान में देश में प्रति व्यक्ति ऋण भार का ब्यौरा क्या है और इस पर कितना ब्याज अदा किया गया है.
दोनों सांसदों द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में लोकसभा में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वित्त लेखा और जनसंख्या संबंधी आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2016 तक की स्थिति के अनुसार केंद्र सरकार के ऋण के अधार पर प्रति व्यक्ति ऋण 53,796 रुपये था जबकि 31 मार्च 2015 की स्थिति के अनुसार यह 49,270 रुपये था.
सरकार ने प्रति वयक्ति ऋण बढ़ने की सफाई में कहा कि प्रति व्यक्ति ऋण मुख्य रूप से उच्चतर विकास हासिल करने के लिए विकासात्मक व्य्य के कारण बढ़ा है. केंद्र सरकार के प्रति व्यक्ति ऋण भार में अन्य बातों के साथ-साथ विदेश ऋण, आंतरिक ऋण और अन्य देनदारियां शामिल हैं. केंद्र सरकार के वित्त लेखे के अनुसार वर्ष 2009-10 के दौरान और वर्ष 2013-14 से वर्ष 2015-16 तक प्रति वयक्ति ऋण इस प्रकार रहा.
प्रति व्यक्ति ऋण और ऋण पर अदा किए गए ब्याज का ब्यौरा | ||||||
वर्ष | प्रति व्यक्ति ऋण (रु.) | ऋण पर अदा किया गया ब्याज (रु. करोड़) | ||||
2009-10 | 30,171 | 2,13,093 | ||||
2013-14 | 45,319 | 3,74,254 | ||||
2014-15 | 49,270 | 4,02,444 | ||||
2015-16 | 53,796 | 4,41,659 |
इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सफाई देते हुए कहा कि केंद्र सरकार राजकोषीय औचित्य की नीति के जरुए लोक ऋण में वृद्धि कम करने हेतु व्यापक कार्यनीति अपना रही है, जिसमें अन्य बातों के साथ-सात कम लागत वाले उधार लेना, चरणबद्ध तरीके से ऋण का सक्रिय समेकन (कनसोलिडेशन) शुरू करना, रियायती शर्तों पर और दीर्घावधि परिपक्वता वाले कम खर्चीले स्रोतों से निधियां जुटाने पर जोर देदना, अल्पावधिक ऋण पर नजर रखना और ऋण भिन्न पूंजी प्रवाह को बढ़ावा देना शामिल है!