जम्मू कश्मीर चुनाव के अनुभव

प्यारे मित्रों,

आज मैं आप लोगों के साथ बीते जम्मू-कश्मीर चुनाव के बारे में मेरे अनुभव शेयर करना चाहता हूँ।

उन दिनों सिर्फ एक ही लक्ष्य दिखता था कि जैसे देश में मोदी सरकार आई है ठीक वैसे ही जम्मू-कश्मीर में भी भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराये।

हमारा एक ही ध्येय था कि कैसे भी हमारे देश के सिरमौर जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद से छुटकारा मिले और विश्वास था कि मोदीजी ही वो 56″ की छाती वाले राष्ट्रवादी नेता हैं जो कश्मीर से आतंकवाद का सफाया कर सकते हैं।

26 अक्तूबर 2014 का दिन था, सुबह तड़के ही अमेरिका से रोहित गंगवाल जी का फोन आया।
बोले – “अभिषेक, 25 नवंबर से चुनाव हैं कश्मीर में और तुम गुजरात में मजे ले रहे हो यार, ऐसे नहीं चलेगा। कल रात को ही अमित जी से बात हुई मेरी, हमें इस बार जम्मू-कश्मीर में भी करिश्मा दिखाना है। अब नहीं तो फिर कभी भी नहीं हो पाएगा। मैंने जम्मू-कश्मीर की लोकल टीम पहले ही रेडी कर ली है तुम बस अपने कोर ग्रुप लेकर निकलो, और तुम्हारा अकाउंट चेक करके बताओ, मैंने कुछ पैसे ट्रान्सफर करे हैं।”

उन्होने कुछ गिनी चुनी विधान सभाओं के नाम बताए, कुछ बीजेपी के जम्मू के नेताओं के कांटैक्ट दिये और संघ के इंद्रेश जी से बात करने को भी कहा।

मैंने सभी को फोन लगाया, कुछ नेताओं ने बहुत तवज्जोह दी, कुछ ने ढंग से बात भी नहीं की। खैर जम्मू के सभी लोकल कोर्डीनेटरों से बात की, सबके सब पूरे जोश में थे और कह रहे थे इस बार तो कॉंग्रेस, अब्दुल्लाह और मुफ्ती परिवार को नहीं आने देंगे। जम्मू-कश्मीर में इस बार सिर्फ भगवाराज होगा।
इतना दूर जाना था वो भी कड़ाके की ठंड में, हम गुजरात में रहने वालों के लिए कश्मीर की ठंड किसी अभिशाप से कम नहीं थी पर मैं पहले भी 3 महीने चाइना में रहा था -18 डिग्री तापमान में तो मेरे पास अच्छे खासा ठंड में रहने का अनुभव था और भारी ठंड के कपड़े पड़े हुए थे।

2-3 दिन में पैकिंग की और सभी कोर सदस्यों को तैयार किया।

हमारी टीम के सदस्य देश के अलग अलग कोने से दिल्ली मे इकट्ठे हुए। जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँचते ही अखनूर से केशव जी अपनी गाडियाँ लिए बाहर ही खड़े थे। सभी लोग उसमें सवार हुए, कड़ाके की ठंड थी, हममें से ज़्यादातर के दाँत कड़कड़ा रहे थे। केशव जी यह देख कर बहुत हंस रहे थे। हम रेलेवे स्टेशन से जम्मू में कुछ लोगों से मिलने गए, नहा धोकर नाश्ता कर कच्ची छावनी मे प्रदेश बीजेपी कार्यालय पहुंचे। देखा कि वहाँ तो कोई भी नहीं है, एक 14-15 साल का लड़का टहलते मिला, उसने कहा यहाँ तो दोपहर के बाद ही लोग आते हैं।

प्रचार का मटेरियल कार्यालय के बाहर पड़ा हुआ था खुले में, कार्यालय का माहौल देखकर लगा कि चुनाव अभी खत्म हो गए हैं और सब आराम करने निकाल गए।

जुगल किशोर जी को फोन किया, कार्यालय प्रभारी का नंबर ले उनको कॉल किया तो आधा घंटे बाद एक कार्यकर्ता को भेजा। खैर वहाँ से हमने कुछ जानकारियाँ जुटाईं, कई लोगों के नंबर लिए और फिर आईटी कार्यालय गए। वहाँ कौशिक जी से मिले और अमित शाह जी के सहयोगी रहे भूपेन्द्र शर्मा जी से मुलाक़ात ली। फिर लोकल सिम कार्ड लेकर जम्मू मे कुछ जगहों पर लोगों से मिलते हुए अखनूर निकल पड़े।

केशव जी ने अखनूर में बहुत ही मजबूत टीम तैयार कर रखी थी, हमारे प्रत्याशी से मिल लोकल समस्याओं के बारे में जानकारी जुटा कर नगरोटा इत्यादि विधानसभाओं में भ्रमण किया।

साथ साथ ऊपर रिपोर्टिंग भी करता रहा जिससे कि समस्याओं का समानांतर रूप से निदान होता रहे।

कुछ दिनों बाद केशव जी ने कहा कि अभिषेक जी जम्मू में तो सब ठीक चल रहा है चलो घाटी में घूम आयें, आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में प्रचार करने का अलग ही मजा आएगा। शोपियाँ तक होकर आते हैं, वहाँ 14 दिसंबर को चुनाव होगा,अच्छा खासा समय है।

मैंने ज़ोर से बोला “जय श्री राम”, सब दोस्तों ने भी जवाब दिया, चलो चलते हैं।
हम लोग जम्मू होते हुए, ऊधमपुर, बनिहाल, इत्यादि घूमते अनंतनाग में घुस रहे थे। बीच में मंदिर पड़ा तो दर्शन किए और टीका लगाया।
हमारे साथ कुछ आर्मी के साथी भी थे, हम जैसे ही अनंतनाग में घुसे तो हर कोई हमें घूर रहा था।
आगे चले तो लोगों ने चिल्लाना शूरू कर दिया “बाबे आए – बाबे आए”।
मैं समझा नहीं कि क्या हो रहा है, तभी आर्मी वाले दोस्तों ने हमारी गाड़ी क्रॉस कर रुकने का ईशारा किया, हमने साथ में गाड़ी लगाकर पूंछा तो उन्होने कहा कि आप लोग तिलक मिटा दो वरना हमें मुश्किल होगा।

‘बाबे आए’ का मतलब मैं तब समझा। हम सब लोगों की आँखों में खून बह रहा था, माथा गुस्से और दुख से फटा जा रहा था, वो 4-5 सेकंड हमें बड़े कष्टदायी लगे जब हमने अपना तिलक मिटाया।

अब मैं कश्मीरी पंडितों का दुख भली भाँति समझ गया था। अब हमे समझ आया कि कश्मीर की कुदरती माशूमियत को छोड़ कर कश्मीरी पंडित क्यो पलायन किये। क्योकि धरती के स्वर्ग कश्मीर मे दैत्यो का कब्जा (इन्सानियत के दुश्मन) हो गया है पर आज भी जैसे नन्हा सा बच्चा मॉ से विछुड़ने के बाद नजर मॉ पर गड़ाकर बार बार मॉ से मिलने की चेष्टा करता है वही हाल कश्मीरी पंडितो की है।

अनंतनाग से कोकरनाग शोपियाँ इत्यादि जगहों पर घूमते हुए अपने कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

एक बहुत बुजुर्ग कश्मीरी पंडितों के परिवार से मिले और उन्होने जो कुछ भी बताया उसे सुन हम सबका कलेजा फट गया। उन्होने अपनी आखों से देखे और खुद पर सहे जुल्मों को बताया। हम ईराक में घटित जो भी सुन और देख रहे हैं कुछ वैसा ही हुआ था कश्मीर में। माता-पिता के सामने उनके शिशुओं को मारा गया, उनका मांस पका कर माता-पिता के सामने ही खाया गया था। ऐसी न जाने कितनी घटनाएँ हमें सुनने को मिलीं, 2-3 दिन उन सब जगहों पर बिताए और फिर बड़े दुखी मन से हम अखनूर लौट आए।

हमने इन 2-3 दिनों में ही समझ लिया था कि हमको घाटी से एक भी सीट नहीं मिलनी और वैसा ही हुआ। फिर हमने अपना पूरा फोकस जम्मू की कुछ विधानसभाओं में लगाया, प्रभु राम की कृपा से हमने जिन जिन विधानसभाओं में काम किया था हम सभी में जीते सिर्फ नगरोटा छोडकर। नगरोटा (और भी 1-2 विधानसभाएँ) हम अपनी ही कुछ गलतियों की वजह से हारे।

बाद में मुफ्ती को सीएम बना देख और हसरत आलम जैसे दुर्दांत आतंकियों को जेल से बाहर आता देख मन बहुत दुखी हुआ।

खैर, हमने सच्चे मन से, सच्चे दिल से, प्रभु राम को मन में बसाए हुए, जान हथेली पर रख देश के लिए जम्मू-कश्मीर में मेहनत की थी।

उम्मीद है कि एक दिन कश्मीर में भी अमन-चैन कायम होगा – एक दिन तिरंगा वहाँ शान से लहराया जाएगा – एक दिन वहाँ भी हर कौम का व्यक्ति बिना डरे हुए सुरक्षित गलियों में घूमेगा – एक दिन बिना डरे हर कौम का व्यक्ति अपने धर्म का पालन सर उठाकर कर सकेगा – एक दिन – एक दिन – वो दिन आयेगा – जरूर आएगा।

वंदे मातरम।

With Best Regards,
Abhishek Gupta
Core Committee Member
Narendra Modi Global Team
narendramodi.global
&
North India Coordinator Modi for PM organization
www.modiforpm.org
+91-9974226601

admin
By admin , March 12, 2015

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