अगर आपको 90 का दशक या फिर उससे पहले होने वाले चुनाव याद हो तो बिहार, उत्तरप्रदेश और हरियाणा जैसे कुछ क्षेत्रों में चुनावी धांधलियों की खूब ख़बरें सुनने को मिलती थी। ख़ास कर के बिहार में जब तक लालू प्रसाद यादव की सत्ता रही तब तक चुनावी धांधली चुनावों का एक हिस्सा ही मान लिया गया था। आप सोच रहे होंगे की आज के समय में मैं इन बातों को क्यों याद कर रहा हूँ। तो मुझे उस जमाने की याद इसलिए आई है क्योंकि वर्तमान में चल रहे चुनावों में भी कुछ वैसी ही चुनावी धांधली देखने को मिली है। हालांकि बिहार जैसे राज्य में तो चुनाव शांति पूर्ण हो रहे हैं पर इस बार पश्चिम बंगाल में हिंसा के माहौल में खूब चुनावी धांधली की ख़बरें सुनने को मिल रही है।
लोकसभा चुनावों के 4 चरण पूरे हो जाने के बाद भी यह गहन चिंता का विषय है कि पश्चिम बंगाल चुनावी हिंसा से मुक्त होने का नाम नहीं ले रहा है। 29 अप्रैल को हुए चौथे चरण के मतदान के दौरान भी जिस तरह अलग अलग स्थानों पर हिंसा और धांधली देखने को मिली उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि या तो चुनाव आयोग अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह सही ढंग से नहीं कर पा रहा है या फिर पश्चिम बंगाल की सरकार धन बल के सहारे मतदान में धांधली करवा रही हैं।
पिछले चार चरणों में मतदान के समय हुई हिंसा और धांधली से चुनाव आयोग यह तो समझ चुका है कि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस सरकार और उसका प्रशासनिक तंत्र स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है पर इसके बाद भी चुनाव आयोग क्यों नहीं ऐसे उपाय कर पा रहा है जिससे मतदाताओं को डरा-धमकाकर उन्हें वोट डालने से रोकने के साथ मतदान केंद्रों में धांधली करने वालों पर लगाम लग सके यह समझ से परे है। आज पश्चिम बंगाल में जैसी चुनावी धांधली देखने को मिल रही है वैसी ही कभी बिहार, हरियाणा और देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी देखने को मिलती थी, लेकिन निर्वाचन आयोग ने सख़्ती दिखाकर हालात बदल दिए। ऐसा ही कुछ पश्चिम बंगाल में भी किया जाना जरूरी था।
लोकसभा चुनाव के लिए 29 अप्रैल को हुए चौथे चरण के मतदान में सबसे ज्यादा शिकायतें पश्चिम बंगाल से मिली थी। राज्य में टीएमसी के कार्यकर्ता गुंडागर्दी पर उतर आए। पर इन सब वाक्यों से यह भी साफ़ हो रहा है की चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी की हालत अच्छी नहीं है तभी वे शाम दाम दंड भेद सब कुछ का इस्तेमाल कर रही हैं।
अगर सिलसिलेवार तरीके से पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हुए हिंसा पर नजर डालें तो पहले चरण की वोटिंग में दिनहाता में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमला और कूचबिहार में लेफ्ट प्रत्याशी पर हमला हुआ। दूसरे चरण में रायगंज में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हंगामा कर रहे टीएमसी कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े थे। तीसरे चरण में मुर्शिदाबाद में टीएमसी कार्यकर्ताओं के साथ झड़प में एक कांग्रेस नेता की मौत हो गई, इसके अलावा बूथ पर बम फेंकने की कई घटनाएँ भी सामने आई। चौथे चरण में आसनसोल में बीजेपी प्रत्याशी बाबुल सुप्रियो पर हमला हुआ और उनकी गाड़ी में तोड़फोड़ की गई। इसके अलावा पत्रकारों के साथ भी मारपीट की गई।
अभी भी पश्चिम बंगाल में तीन चरण के मतदान बाकी हैं। पर जिस प्रकार से ममता सरकार की कुंठा नजर आने लगी है इससे साफ़ पता चल रहा है की उन्हें भी अपनी करारी हार का आभास हो गया है। अब 23 मई के दिन का इंतजार है जब पश्चिम बंगाल की जनता इस फासिस्ट सरकार को सबक सिखाएगी।