एक बड़ी पुरानी कहावत है ‘बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ’। ये कहावत भारतीय राजनीति के अलग अलग कालखंडों में कई बार बिलकुल सच साबित हुई है और आज यही कहावत प्रमुख विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए सच होती प्रतीत हो रही है। जो दल साढ़े चार साल पहले पूरे देश भर में महज 44 सीटों पर सिमट कर लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल होने का हक़ भी खो चुकी थी आज वही दल हिंदी पट्टी के तीन बड़े और प्रमुख राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हो गई है। यह गहन विचार करने वाली बात है कि कैसे एक व्यक्ति जो हर मंच पर दिए अपने भाषणों के लिए मज़ाक बनता रहता है उसने कांग्रेस पार्टी को हालिया विधानसभा चुनावों में सफलता दिला दी है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं राहुल गांधी की जो हर तरफ मज़ाक का पात्र बने हुए है। पर मज़ाक बनने के बाद भी इस बार वो अच्छी सफलता पा गए। अगर हम नहीं सम्हले तो शायद वो आगे भी सफल हो सकते है। आप सोच रहे होंगे कि राहुल कैसे सफल हो सकता है? तो आप सही हैं, चूंकि राहुल वर्तमान में सरकार का हिस्सा नहीं है तो वे अपने किये गए कार्यों से अपनी काबिलियत नहीं दिखा सकते पर उनके भाषणों में होने वाली चूक का प्रचार पूरे देशभर में होता है।
इस प्रचार में राहुल गांधी का सबसे ज्यादा साथ देते हैं खुद भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक। भाजपा समर्थक राहुल गांधी की हर छोटी मोटी बात पर तंज कसते और विरोध करते हुए नजर आते हैं। इस तरह से भाजपा समर्थक खुद ही प्रमुख विपक्षी दल के अध्यक्ष की निगेटिव पब्लिसिटी करते है। इस प्रकार की पब्लिसिटी से भी राहुल का जनता के साथ कनेक्शन बढ़ता है और वे राहुल के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उनको पढ़ते हैं, उनको सुनते हैं और उनके बारे में जानते हैं। इस तरह से नकारात्मकता फैलने के बावज़ूद भी राहुल अपनी पहुँच आम लोगों तक बना जाते हैं।
हम पिछले दो दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा कई बार हुआ है कि नकारात्मक पब्लिसिटी के बल पर कई लोगों ने अपनी राह सुगम बना ली और सत्ता के शिखर तक पहुँच गए। अगर 21वीं सदी के शुरूआती सालों की बात करें तो पूर्व कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने अपने शासन काल में बेहतरीन कार्य किये थे और देश विकास के पथ पर था परन्तु 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा समर्थकों ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने का मुद्दा जोर शोर से उठाया और उनके खिलाफ बहुत सारी नकारात्मक बातें की गई जिसका फायदा सोनिया और कांग्रेस को मिला। जो भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी वो बुरी तरह से हारी और अटल जी जैसा प्रधानमंत्री भारत ने खो दिया।
कुछ ऐसा ही नकारात्मक प्रचार साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कई सारी अनरगल बातें कांग्रेस के नेताओं द्वारा कही गई। मोदी जी को इस दौरान ‘मौत का सौदागर’ जैसे नकारात्मक विशेषणों के साथ पुकारा गया जिसने पहले से प्रसिद्ध नरेंद्र मोदी को और ज्यादा प्रचारित किया जिसकी वजह से भाजपा को चुनावों में अप्रत्याशित सफलता हासिल हुई और इंदिरा गांधी के बाद मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्हे इतनी ज्यादा सीटें हासिल हुई थी।
प्रधानमंत्री मोदी के अलावा नकारात्मक प्रचार का फायदा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भी साल 2015 में मिला जो भाजपा समर्थकों द्वारा उनपर किये जाते थे। आखिर में इन निगेटिव पब्लिसिटी ने भी अपना कमाल कर दिखाया और 70 सीटों की विधानसभा में केजरीवाल को कुछ 67 सीटों की प्रचंड जीत हासिल हुई थी।
ऊपर बताये गए सारे उदाहरण ज्यादा पुराने नहीं हैं इसलिए हमें इन्हे समझने की जरुरत है और राहुल गांधी का नकारात्मक प्रचार करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों का सकारात्मक प्रचार करने की जरुरत है। पिछले साढ़े चार साल और आने वाले छह महीनों में किये गए और किये जाने वाले सारे विकास कार्यों को देश के कोने कोने में प्रचारित कर के ही हम नरेंद्र मोदी जी को पुनः देश का प्रधानमंत्री बना पाएंगे।