अब 2019 के आम चुनाव अपने मुहाने पर आ पहुंचे हैं और भाजपा फिर एक बार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की नेतृत्व में पूरे दमखम से साथ इस चुनाव को जीतने की तैयारी कर रही है। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर साल 2014 वाला जोश पार्टी में नयी ऊर्जा भर रहा है रहा है। ज्यादातर चुनावी विशेषज्ञ मोदी जी की जीत पर ही अपना दाव लगा रहे हैं। भाजपा आज अपने इतिहास का सबसे बेहतर समय देख रहा है पर हमेशा ऐसा नहीं था। भाजपा को अस्सी के दशक में 2 लोकसभा सीटों से पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आइये जानते हैं अपने जन्म के बाद से अपने स्वर्णिम काल तक भाजपा कैसे देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई!
आरम्भ
1980 में अपने गठन के साथ ही भाजपा को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। अपने गठन के 4 वर्ष बाद ही भाजपा ने आम चुनाव में कांग्रेस को टक्कर देने की कोशिश की। इस कोशिश से भाजपा को कोई सफलता प्राप्त नही हुई। 1984 के चुनावों के थोड़े समय पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या होने के कारण देश की जनता ने कांग्रेस के साथ सहानुभूति दिखाई और उसे कुल 403 सीटों के साथ जीत दिलाई। इस चुनाव में भाजपा को सिर्फ 2 सीटें ही मिल सकीं। संयमित राष्ट्रवाद, गांधीवादी समाजवाद और जन संघ से जुड़ाव वाली नीति भाजपा के काम न आयी।
शुरूआती सफलता
भाजपा को पहली बड़ी सफलता उस समय मिली जब उसने 1989 के आम चुनावों में कुल 86 सीटें प्राप्त की। भाजपा ने इस समय समान विचारधारा वाली वी पी सिंह की पार्टी ‘नेशनल फ्रंट’ का समर्थन किया और सरकार बनाने में मदद की। इस समय तक पार्टी ने पिछले चुनाव से सीख लेते हुए कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए थे। अब भाजपा हिंदुत्व को अपना मुख्य मुद्दा बना चुकी थी। भाजपा की इस विचारधारा का नेतृत्व पार्टी के तात्कालिक अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी कर रहे थे।
पहली बड़ी सफलता
भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनावों में फिर से एक बड़ी सफलता 1996 में मिली जब उसे आम चुनावों में 161 सीटें प्राप्त थीं। इस समय पार्टी ने प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को चुना था। भाजपा के नेतृत्व वाली ये सरकार बहुमत कायम नही रख सकी और महज 13 दिनों में ही गिर गयी।
वाजपेयी सरकार
वाजपेयी सरकार के गिर जाने के बाद 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा ने समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, एआईएडीएमके और बीजू जनता दल आदि के साथ मिलकर राजग (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) बनाया। राजग गठबंधन की पार्टियों में शिव सेना की विचारधारा भाजपा के ज़्यादा मिलती जुलती थी। वाजपेयी जी के नेतृत्व में राजग ने तेलुगु देशम पार्टी के बाहरी समर्थन से सरकार बना ली। जब एआईएडीएमके की प्रमुख जयललिता ने राजग (एन डी ए) से अपना समर्थन वापिस ले लिया तो ये सरकार भी गिर गई।
1999 में फिर से हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व में राजग ने एआईएडीएम के के समर्थन के बिना ही चुनाव लड़ा। इस बार भाजपा की मेहनत रंग लाई और पहली बार 303 लोकसभा सीटों के साथ राजग को पूर्ण बहुतमत प्राप्त हुआ। राजग की 303 सीटों में भाजपा की कुल 183 सीटें थीं। भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने पहली बार अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान उसने रक्षा मामलों में, आतंक के खिलाफ लड़ाई, वैश्वीकरण और आर्थिक विकास को अपनी नीतियों के केंद्र में रखा।
वाजपेयी जी के नेतृत्व में हार
2004 में अपने तय समय से 6 महीने पहले ही सरकार ने चुनाव कराने की घोषणा कर दी। इस चुनाव में राजग ‘भारत उदय’ के नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी। इस समय भाजपा को हार का सामना करना पड़ा क्योंकि उसके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के गठबंधन को इन चुनावों में 222 सीटें प्राप्त हुई। भाजपा को राजग की 186 सीटों के साथ हार का मुँह देखना पड़ा।
मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा का स्वर्ण काल
2014 में नरेंद्र मोदी के ओजस्वी नेतृत्व में भाजपा फिर से सत्ता पर काबिज़ हो गयी। इस बार मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया जो पार्टी के लिए एक अप्रत्याशित सफलता थी। 2014 के चुनावों में पहली बार देश की सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस को शर्मनाक हार मिली। 2014 में भाजपा को लोकसभा में कुल 282 सीटें मिली जबकि उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी महज 44 सीटें मिलीं।
वर्तमान में भाजपा देश के कई प्रमुख राज्यों में भी सत्ता पर विराजमान है। अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गोवा आदि राज्यों में अभी भाजपा के सरकारें हैं। यह विश्वास भी प्रबल है की पार्टी 2019 के चुनावों में भी श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में 2014 से भी बेहतर प्रदर्शन करेगी।