प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इस साल होने वाली बोर्ड परीक्षाओं से पहले छात्र-छात्राओं को तनाव से मुक्त रहने के टिप्स देने के लिए उनसे ‘परीक्षा पे चर्चा 2.0’ की। पीएम मोदी ने इस दौरान कहा ‘मेरे लिए ये कार्यक्रम किसी को उपदेश देने के लिए नहीं है। मैं यहां आपके बीच खुद को अपने जैसा, आपके जैसा और आपकी स्थिति जैसा जीना चाहता हूं, जैसा आप जीते हैं।’
Live: PM @narendramodi‘s interaction with students, parents and teachers has begun. #ParikshaPeCharcha2 https://t.co/hr67fx9Vay
— BJP (@BJP4India) January 29, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम के जरिए छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से रूबरू हुए। इस इंटरैक्टिव सेशन में पीएम मोदी ने कई ऐसे सवालों के जवाब दिए जो एग्जाम से पहले छात्रों को परेशान करते हैं। उन्होंने डिप्रेशन और उम्मीदों के प्रेशर पर भी लंबी चर्चा की।
यहां पढ़ें परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम की कुछ खास बातें।
निशान चूक जाए तो माफी है, लेकिन निशान नीचा रखने की कोई माफी नहीं
लक्ष्य ऐसा होना चाहिये जो पहुंच में हो लेकिन पकड़ में न हो: प्रधानमंत्री श्री @narendramodi #ParikshaPeCharcha2 pic.twitter.com/H3wi6ODje9
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गुजरात में हम कहावत सुनते हैं- निशान चूक जाते हैं तो माफ हो सकता है, लेकिन निशान नीचा रखते हैं तो उसके लिए माफी नहीं हो सकती। लक्ष्य ऐसा होना चाहिए जो पहुंच में हो लेकिन पकड़ में न हो।
कुछ खिलौनों के टूटने के बचपन नहीं मरा करता
कुछ खिलौनों के टूटन से बचपन नहीं मरा करता है, इसमें बहुत बड़ा संदेश है, एक-आध एग्ज़ाम में असफल होने से जिंदगी ठहर नहीं जाती है: प्रधानमंत्री @narendramodi #ParikshaPeCharcha2 #ParikshaPeCharcha pic.twitter.com/oVCrHFPhU3
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परीक्षा का महत्व होता है इसलिए मैं यह नहीं कहूंगा कि छोड़ो यार जो होगा देखा जाएगा। लेकिन सिर्फ एक क्लास की परीक्षा है, जिंदगी की नहीं। अभी नहीं तो कभी नहीं जैसी कोई बात नहीं होती। परीक्षा के बाहर भी बहुत बड़ी दुनिया होती है। कुछ खिलौनों के टूटने से बचपन नहीं मरा करता, एकाध एग्ज़ाम में इधर-उधर हो जाये तो ज़िंदगी ठहर नहीं जाती।
बच्चे के रिपोर्ट कार्ड को अपना विजिटिंग कार्ड न बनाए पेरेंट्स
दबाव से परिस्थिति बिगड़ जाती है। आपने कुछ बनाया है तो बच्चा उसे मन से खाएगा। लेकिन अगर आप पीछे पड़ जाओ कि खाओ, खाओ, खाओ तो उसका मन उठ जाएगा। कई बार माता-पिता किसी फंक्शन में जाते हैं तो अपने बच्चे के रिपोर्ट का कार्ड को अपना विजिटिंग कार्ड बनाकर पेश करते हैं। ऐसा न करें। बच्चे की सफलता-असफलता को अपनी नाक का सवाल न बनाएं।
पैरेंट्स का सकारात्मक नजरिया बच्चों के लिए ताकत बन जाता है
अभिभावकों का सकारात्मक रवैया, बच्चों की जिंदगी की बहुत बड़ी ताकत बन जाता है : पीएम मोदी #ParikshaPeCharcha2 pic.twitter.com/t7ITxX6JbE
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अभिभावकों का सकारात्मक नजरिया बच्चों की ताकत बन जाता है। माता-पिता को अपने बच्चे की दूसरों के बच्चे से तुलना करने की आदत छोड़नी चाहिए। इसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बच्चा 90 क्यों नहीं लाया इसके लिए उसे कोसने की बजाए हमें उसे 55 से 60 लाने के लिए बधाई देनी चाहिए। उसकी गलतियां बताएं लेकिन प्यार से।
कसौटी कसती है, वह कोसने के लिए नहीं होती
छोटी-छोटी परीक्षाओं से बड़ी परीक्षा की तैयारी होती। जब आपकी जिंदगी में कोई कसौटी आती है तो आपका कोई न कोई टैलेंट उभरकर सामने आता है। इसलिए कसौटी को कोसें नहीं, क्योंकि वह आपको कसने आती है। नॉलेज के लिए पढ़ें परीक्षा के लिए नहीं। हम नंबरों के पीछे भागते हैं और जिंदगी पीछे छूटती जाती है। जिंदगी के के पीछे भागें नंबर खुद आपके पीछे आएंगे।
जिसके अंदर आत्मविश्वास होता है उसे तालियों की आवाज से फर्क नहीं पड़ता
जिसके अंदर आत्मविश्वास होता है कि उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कितनी तालियां बजी। वह अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त होता है। उसके अंदर ये विश्वास होता है कि एक न एक दिन मैं कुछ न कुछ ऐसा करूंगा कि टीचर खुद मुझे नोटिस करेंगे।