प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश से 40वीं बार “मन की बात” की। इस बार “मन की बात” की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी जी ने महिलाओं के हर क्षेत्र में बढ़ रहे सहयोग की तारीफ के साथ की। आईए आपको बताते है पीएम नरेंद्र मोदी जी की “मन की बात” में 10 बड़ी बातें :-
1. पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक बेटी, 10 बेटों के बराबर होती है। दस बेटों से जितना पुण्य मिलेगा, एक बेटी से उतना ही पुण्य मिलेगा। यह हमारे समाज में नारी के महत्व को दर्शाता है, और तभी तो, हमारे समाज में नारी को ‘शक्ति’ का दर्जा दिया गया है।
2. पीएम नरेंद्र मोदी ने कल्पना चावला को याद करते हुए कहा कि उनकी 1 फरवरी को पुण्य तिथि है। पीएम मोदी ने कहा कि कल्पना दुनिया भर के लाखों युवाओं के प्रेरणा का स्रोत थी।
3. पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि रक्षा-मंत्री निर्मला सीतारमण ने लड़ाकू विमान सुखोई 30 उड़ाया और अब तीन बहादुर महिलाएँ भावना कंठ, मोहना सिंह और अवनि चतुर्वेदी फाइटर पायलट बनी हैं और सुखोई – 30 में प्रशिक्षण ले रही हैं।
4. पद्म सम्मान दिए जाने पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि हर साल पद्म-पुरस्कार की परंपरा रही है, लेकिन पिछले तीन सालों में यह प्रक्रिया बदल गई है।
5. अब व्यक्ति की पहचान पर नहीं उसके काम पर पद्म सम्मान दिया जाता है।
6. केरल की आदिवासी महिला लक्ष्मीकुट्टी के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्हें जड़ी-बूटियों में महारत हासिल है। सांप काटने के बाद उपयोग की जाने वाली दवाई बनाने में उन्हें महारत हासिल है।
7. महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी का जिक्र करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि बापू ने हम सभी को एक नया रास्ता दिखाया है। उस दिन हम सभी लोग ‘शहीद दिवस’ मनाते हैं।
8. प्रवासी भारतीय दिवस 9 जनवरी को मनाया जाता है इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस दिन हम विश्वभर में रह रहे भारतीयों के बीच अटूट बंधन का जश्न मनाते हैं।
9. भारतीय हर क्षेत्र में समर्पित है, कोई साइबर सिक्योरिटी, तो कोई जलवायु परिवर्तन पर काम शोध कर रहा है। जहाँ भी हमारे लोग हैं, उन्होंने वहाँ की धरती को किसी न किसी तरीके से सुसज्जित किया है।
10. छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित इलाका है, फिर भी आदिवासी महिलाओं ने नई मिसाल पेश की है। ऐसे ख़तरनाक इलाक़े में आदिवासी महिलाएं, ई-रिक्शा चला कर आत्म निर्भर बन रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि पिछले तीन वर्षो में पद्म पुरस्कार की पूरी प्रक्रिया बदल गई है, अब कोई भी नागरिक किसी को भी मनोनित कर सकता है और पूरी प्रक्रिया आनलाइन हो जाने से पारदर्शिता आ गई है। आकाशवाणी पर प्रसारित ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इन दिनों पद्म-पुरस्कारों के संबंध में काफी चर्चा आप भी सुनते होंगे। लेकिन थोड़ा अगर बारीकी से देखेंगे तो आपको गर्व होगा। गर्व इस बात का कि कैसे-कैसे महान लोग हमारे बीच में हैं और कैसे आज हमारे देश में सामान्य व्यक्ति बिना किसी सिफ़ारिश के उन ऊंचाइयों तक पहुंच रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि हर वर्ष पद्म-पुरस्कार देने की परम्परा रही है। लेकिन पिछले तीन वर्षों में इसकी पूरी प्रक्रिया बदल गई है। अब कोई भी नागरिक किसी को भी मनोनित कर सकता है।
पूरी प्रक्रिया आनलाइन हो जाने से पारदर्शिता आ गई है। एक तरह से इन पुरस्कारों की चयन-प्रक्रिया का पूरा बदल गया है। उन्होंने कहा कि आपका भी इस बात पर ध्यान गया होगा कि बहुत सामान्य लोगों को पद्म-पुरस्कार मिल रहे हैं। ऐसे लोगों को पद्म-पुरस्कार दिए गए हैं जो आमतौर पर बड़े-बड़े शहरों में, अख़बारों में, टी.वी. में, समारोह में नज़र नहीं आते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘अब पुरस्कार देने के लिए व्यक्ति की पहचान नहीं, उसके काम का महत्व बढ़ रहा है.’’ प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस संदर्भ में कचरे से खिलौना बनाने में योगदान देने वाले आईआईटी कानपुर के छात्र रहे अरविन्द गुप्ता, कर्नाटक की सितावा जोद्दती का जिक्र किया। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि सितावा जोद्दती ने अनगिनत महिलाओं का जीवन बदलने में महान योगदान दिया है।
इन्होंने सात वर्ष की आयु में ही स्वयं को देवदासी के रूप में समर्पित कर दिया था। उन्होंने मध्य प्रदेश के भज्जू श्याम का जिक्र किया जिन्होंने विदेशों में भारत का नाम रोशन किया है। मोदी ने हर्बल दवा बनाने वाली केरल की आदिवासी महिला लक्ष्मी कुट्टी, अस्पताल बनाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन मांजे, सब्जी बेचने वाली पश्चिम बंगाल की 75 वर्षीय सुभासिनी मिस्त्री का भी जिक्र किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा, ‘‘ मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी बहुरत्ना-वसुंधरा में ऐसे कई नर-रत्न हैं, कई नारी-रत्न हैं जिनको न कोई जानता है, न कोई पहचानता है। ऐसे व्यक्तियों की पहचान न बनना, उससे समाज का भी घाटा हो जाता है.’’
उन्होंने कहा कि पद्म-पुरस्कार एक माध्यम है लेकिन वे देशवासियों से भी कह रहे हैं कि हमारे आस-पास समाज के लिए जीने वाले, समाज के लिए खपने वाले, किसी न किसी विशेषता को ले करके जीवन भर कार्य करने वाले लक्षावधि लोग हैं। कभी न कभी उनको समाज के बीच में लाना चाहिए। वो मान-सम्मान के लिए काम नहीं करते हैं। लेकिन उनके कार्य के कारण हमें प्रेरणा मिलती है। मोदी ने कहा कि ऐसे लोगों को स्कूलों में, कालेजों में बुला करके उनके अनुभवों को सुनना चाहिए. पुरस्कार से भी आगे, समाज में भी कुछ प्रयास होना चाहिए।
गणतंत्र दिवस के 70 सालों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि जब देश में एक साथ दस देशों के प्रतिनिधियों को विशिष्ठ अतिथि बनाया गया। इस गणतंत्र दिवस के मौके पर सभी आसियान देशों के 27 अखबारों में 10 भाषाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेख प्रकाशित किया गया है।
विदेशी अखबारों में इस मौके को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चौथाई दुनिया की दोस्ती बताया है। इसके साथ ही लेख में पीएम मोदी ने भारत और आसियान देशों की दोस्ती को बेहद खास और महत्वपूर्व बताया है। इस बात की जानकारी भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल में ट्वीट कर दी है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि 69वां गणतंत्र दिवस यादगार मौका रहा।
इस दौरान सभी देशों की साझा संस्कृति और सभ्यतागत संबंधों के जरिए विकसित दोस्ती का असाधारण रूप दिखाई दिया। बताते चलें कि अपने लेख में पीएम ने एक साथ दस देशों के राष्ट्राध्यक्षों का गणतंत्र दिवस के मौके पर आना देश के लिए सम्मान की बात कही है।
पीएम मोदी के इस लेख का शीर्षक ‘साझा मूल्य, एक मंजिल’ था। इसमें पीएम ने लिखा कि आसियान देशों के साथ साझेदारी भले ही 25 साल पुरानी है, लेकिन भारत के दक्षिणपूर्व एशिया के साथ संबंध दो सदी से ज्यादा पुराने हैं। म्यांमार टाइम्स, वियतनाम न्यूज, जकार्ता पोस्ट, पोस्ट टुडे, बिजनस टाइम्स, तमिल मुरासू और द स्टार जैसे अखबारों में पीएम मोदी के इस लेख को छापा गया है।
27 newspapers in 10 languages in 10 ASEAN countries! Op-Ed by PM @narendramodi on the historic occasion of 69th Republic Day & Asean-India Commemorative Summit. Exceptional gesture of friendship nurtured by shared culture & civilizational linkages! List at https://t.co/gzhB5n1lIfpic.twitter.com/A4rpI0caZS
गौरतलब है कि गुरुवार यानी 25 जनवरी को पीएम मोदी ने चीन को कड़ा संदेश देते हुए आसियान देशों के साथ दक्षिण चीन सागर विवाद पर आपस में प्रभावी तालमेल के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया साथ ही सभी देशों ने संवेदनशील समुद्री गलियारे में सागर सुरक्षा और नौपरिवहन की आजादी पर जोर दिया।
भारत ने अपनी शक्ति और विश्व में अपनी हैसियत का नजारा तब भी दिखाया था जब पिछले साल पाक में होने जा रहे सार्क सम्मेलन का ऐसा बहिष्कार कि एक – एक कर सभी सार्क देशों ने इसका बहिष्कार किया और आखिरकार पाक सम्मेलन नहीं कर सका था। अब बारी चीन को सबक सिखाने की है।
भारत देश इस बार 69वां गणतंत्र दिवस मना रहा है और इस बार खास वजह यह है कि आसियान देशों के नेता बतौर मुख्य अतिथि जश्न का हिस्सा बनने जा रहे हैं। 10 देशों के नेताओं के भारत आने से इंडियन-आसियान समिट को मजबूती मिलेगी। आसियान देशों से भारत के हैं ये संबंध :-
ब्रुनई
ब्रुनेई के साथ भारत के 1984 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। 2016 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ब्रुनेई यात्रा पर गए थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए। ब्रुनेई से भारत द्वारा जिन वस्तुओं का आयात किया जाता है, उनमें मुख्य रूप से हर साल लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का कच्चा तेल है।
म्यांमार
मनमोहन सरकार के दौरान भारत-म्यांमार के बीच संबंध अधिक मजबूत हुए। भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग योजना दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग के महत्वपूर्ण घटक के रूप में उभर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल म्यांमार की यात्रा की थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए।
कंबोडिया
भारत-कंबोडिया के बीच संबंध प्राचीन हैं। दोनों देशों के बीच हाईड्रोग्राफ नेटवर्क स्टेशन स्थापित करने के लिए कामपोंग स्पियु में भूजल संसाधनों के अध्ययन पर समझौता जारी है। इसके अलावा कंबोडिया में सिएमरीप नदी बेसिन के लिए मास्टर प्लान बनाने पर भी समझौता हुआ था। भारत वहां राष्ट्रीय राजमार्गों की स्थिति सुधारने को नई दिल्ली में कार्यशाला का आयोजन करता रहा है।
इंडोनेशिया
साल 2016 में दोनों देशों के संबंधों ने नया मोड़ लिया। पीएम नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर साल 2016 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति नई दिल्ली पहुंचे। दोनों नेताओं ने भारत और इंडोनेशिया के प्रसिद्ध जनों के समहू (ईपीजी) के द्वारा दृष्टि दस्तावेज – 2025 सौंपे जाने के कदम का स्वागत किया। दस्तावेज में 2025 और उससे आगे के लिए द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को लेकर रूपरेखा की सिफारिश की गई है। दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष अन्वेषण समेत कई मुद्दों पर हस्ताक्षर हुए थे।
लाओस
दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध 1956 में स्थापित हुए थे। भारतीय सेना ने 2011, 2012 और 2013 में लाओस में यूएक्सओ व बारूदी सुरंग हटाने पर तीन प्रशिक्षण कैप्सूल का भी आयोजन किया था। दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक, रक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग पर कई करार हैं। भारत लाओस को समय – समय पर आर्थिक मदद भी देता रहा है।
मलेशिया
पिछले साल मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रज्जाक भारत पहुंचे थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच सात समझौते हुए। इसमें रेलवे नेटवर्क, भारतीयों के लिए वीजा नियमों में छूट, भारतीय टूरिस्ट वीजा समेत कई प्रमुख मुद्दों पर समझौता हुआ। डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में मलयेशिया के सहयोग को भी कागजी रूप दिया गया था।
फिलीपींस
दोनों देशों के संबंध पिछले साल तब और मजबूत हुए जब बीते 36 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने फिलीपींस की यात्रा है। नरेंद्र मोदी से पहले पहले 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आसियान शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने फिलीपींस गईं थीं। मोदी भी आसियान शिखर सम्मेलन और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने फिलीपींस पहुंचे थे। पिछले साल ही जुलाई में इंटरनेशनल राइस इंस्टिट्यूट को अपना साउथ एशियन रिजनल सेंटर वाराणसी में लगाने को मंजूरी दी गई थी।
सिंगापुर
सिंगापुर काफी समय से हिंद महासागर में भारत की भूमिका बढ़ाने की जरूरत पर बल देता रहा है। 2005 में दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत करोड़ों डॉलर का व्यापार दोनों देशों के बीच हर साल हो रहा है। दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच दक्षिणी चीन सागर में पिछले साल समुद्री अभ्यास भी हुआ था। जिस पर चीन ने नाराजगी जताई थी।
थाईलैंड
भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग योजना दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग के महत्वपूर्ण घटक के रूप में उभर सकता है। साल 2016 में दोनों देशों के बीच अर्थव्यवस्था, आतंकवाद से निबटने, साइबर सुरक्षा और मानव तस्करी से निबटने को सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया था। साथ ही रक्षा एवं समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में नजदीकी संबंध कायम करने की हामी भरी थी।
वियतनाम
वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन टैन डंग ने 2014 में भारत यात्रा की थी। वियतनाम भारत से आकाश मिसाइल खरीदने पर विचार कर रहा है। माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच यह सौदा जल्द हो सकता है। जिस पर चीन कई बार आपत्ति जता चुका है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच दक्षिण चीन सागर में तेल निकालने को लेकर भी समझौते हो सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की राजधानी दिल्ली में दो दिनों तक चलने वाले भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में आसियान देशों के साथ हिस्सा लिया। उन्होंने इस दौरान कहा कि आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में आप सभी का स्वागत करते हुए मुझे काफी खुशी हो रही है। हमारी यह साझा यात्रा हजारों सालों से चली आ रही है। यह भारत के लिए सौभाग्य की बात है कि वह आसियान नेताओं की मेहमाननवाजी कर रहा है । आप सभी आसियान नेता गणतंत्र दिवस के मौके पर हमारे अतिथि होंगे।
पीएम मोदी ने कहा कि सन 1992 में जब से हमारी साझेदारी विकसित हुई, तबसे हमने 5 साल की कार्ययोजना के जरिये शांति, प्रगति और साझा समृद्धि के लिए आसियान भारत के उद्देश्यों को लागू करने में सफलता हासिल की है ।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत में आप सभी के सामूहिक उपस्थिति ने इस देश के सवा सौ करोड़ भारतीयों के दिलों को छूआ है। भारत, नियम आधारित समाजों और शांति के मूल्यों के लिए आसियान विजन साझा करता है। हम समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए आसियान देशों के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ।
पीएम मोदी ने कहा कि प्राचीन महाकाव्य रामायण में आसियान और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच अहम साझा विरासत रहा है। बौद्ध धर्म हमें भी करीब से बांधे रखता है। दक्षिण पूर्वी एशिया के कई हिस्सों में इस्लाम में विशिष्ट भारतीय संबंध कई सदियों से देखने को मिल रहे हैं ।
10 आसियान देशों के नेता सम्मेलन में भाग लेने के साथ – साथ गणतंत्र दिवस समारोह में भी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। तय कार्यक्रम के अनुसार वियतनाम के पीएम, कंबोडिया के पीएम, फिलीपीन्स के राष्ट्रपति, म्यांमार की स्टेट काउंसलर, सिंगापुर के पीएम, थाईलैंड के पीएम, ब्रुनेेई के सुल्तान, मलेशिया के पीएम, लाओस और पीडीआर के पीएम दिल्ली में हैं। इन नेताओं में सबसे पहले विएतनाम के प्रधानमंत्री नगुएन शुआन फुक अपनी पत्नी त्रान नगुएन थू के साथ यहां पहुंचे। मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने पालम हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया। उसके बाद कंबोडिया के प्रधानमंत्री सामदेच टेको हुन सेन का विमान उतरा। उनकी अगवानी कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा ने की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश की राजधानी दिल्ली में गुरुवार (25 जनवरी 2018) से शुरू होकर दो दिनों तक चलने वाले भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में आसियान देशों के साथ भाग लिया है। इस दौरान उन्होंने आसियान नेताओं का अलग – अलग अपने अंदाज में भारत में स्वागत किया है।
पीएम नरेंद्र मोदी जी ने अपने संबोधन में कहा कि हमारी यह यात्रा हजारों सालों से चली आ रही है। इस दौरान भारत और आसियान देशों के संबंध और बेहतर हुए हैं। उन्होंने कहा कि भारत आसियान के मूल सिद्धांत शांति और रूल बेस्ड सोसाइटी के साथ है, और हम आसियान के साथ संबंधों को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि पिछले 25 सालों में हमारा व्यापार 25 गुना बढ़ा है। भारत आसियान के साथ व्यापारिक संबंधों को और बेहतर बनाने के लिए तत्पर है। पीएम नरेंद्र मोदी जी ने आसियान के नेताओं से कहा कि आप गणतंत्र दिवस के मौके पर हमारे अतिथि होंगे। उन्होंने कहा कि रामायण, बौद्ध धर्म और इस्लाम का साझा इतिहास भारत को आसियान देशों से जोड़ता है।
Delighted to welcome you all to the ASEAN-India commemorative summit. Our shared voyage goes back thousands of years. It is India’s privilege to host the ASEAN leaders. The leaders will be our honoured guests at the #RepublicDay celebrations: PM Modi #ASEAN2018pic.twitter.com/9p4IYy6S6Z
His Excellency the President of the Swiss Federation,
Honourable Heads of State and Government,
World Economic Forum के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष श्री क्लॉज़श्वाब,
विश्व के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित उद्यमी, उद्योगपति और CEOs
मीडिया के मित्रों,
देवियों और सज्जनों,
नमस्कार।
दावोस में World Economic Forum की इस अड़तालीसवीं वार्षिक बैठक में शामिल होते हुए मुझे बेहद हर्ष हो रहा है।
सबसे पहले मैं श्री क्लॉज़श्वाब को उनकी इस पहल पर और World Economic Forum को एक सशक्त और व्यापक मंच बनाने पर बहुत-बहुत साधुवाद देता हूँ। उनके vision में एक महत्वाकांक्षी एजेंडा है जिसका उद्देश्य है दुनिया के हालात सुधारना। उन्होंने इस एजेंडा को आर्थिक और राजनीतिक चिंतन से बहुत मज़बूती के साथ जोड़ दिया है।
साथ ही साथ हमारेगर्मजोशी भरे स्वागत-सत्कार के लिए मैं Switzerland की सरकार और उसके नागरिकों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता हूँ।
दावोस में आख़िरी बार भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा सन् 1997 में हुई थी, जब श्री देवेगौड़ा जी यहाँ आए थे।
दावोस में आख़िरी बार भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा सन् 1997 में हुई थी, जब श्री देवे गौड़ा जी यहाँ आए थे। 1997 में भारत का GDP सिर्फ़ 400 billion dollar से कुछ अधिक था। अब दो दशकों बाद यह लगभग 6 गुना हो चुका है: PM @narendramodi@wef#IndiaMeansBusinesshttps://t.co/plnF2ehgs8
इस वर्ष फोरम का विषय – ”Creating a shared Future in a Fractured World” है। यानि दरारों से भरे विश्व में साझा भविष्य का निर्माण।
नये-नये बदलावों से, नई-नई शक्तियों सेआर्थिक क्षमता और राजनैतिक शक्ति का संतुलन बदल रहा है। इससे विश्व के स्वरुप में दूरगामी परिवर्तनों की छवि दिखाई दे रही है। विश्व के सामने शांति, स्थिरता और सुरक्षा को लेकर नई और गंभीर चुनौतियां है।
Technology driven transformation हमारे रहने, काम करने, व्यवहार, बातचीत और यहाँ तक कि अंतर्राष्ट्रीय समूहों और राजनीति तथा अर्थव्यवस्था तक को गहराई से प्रभावित कर रहे हैं।
Technology के जोड़ने, मोड़ने और तोड़ने– तीनोंआयामों का एक बड़ा उदाहरण Social media के प्रयोग में देखने को मिलता है।
आज Data सबसे बड़ी संपदा है। Data के globalflow से सबसे बड़े अवसर बन रहे हैं, और सबसे बड़ी चुनौतियां भी।
विज्ञान, तकनीक और आर्थिक प्रगति के नये आयामो में एक ओर तो मानव को समृद्धि केनये रास्ते दिखाने की क्षमता है। वहीं दूसरी ओर, इन परिवर्तनों से ऐसी दरारें भी पैदा हुई हैं जो दर्द भरी चोट पहुंचा सकती हैं।
बहुत से बदलाव ऐसी दीवारें खड़ी कर रहे हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए शान्ति और समृद्धि के रास्ते को दुर्गम ही नहीं दु:साध्य बना दिया है।
ये fractures, ये divides और ये barriers विकास के अभाव की हैं, गरीबी की हैं, बेरोजगारी की हैं, अवसरों के अभाव, और प्राकृतिक तथा तकनीकी संसाधनों पर आधिपत्य की हैं। इस परिवेश में हमारे सामने कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जो मानवता के भविष्य और भावी पीढ़ियों की विरासत के लिए समुचित जवाब मांगते हैं।
क्या हमारी विश्व-व्यवस्था इन दरारों और दूरियों को बढ़ावा दे रही है?
वे कौन सी शक्तियाँ हैं जो सामंजस्य के ऊपर अलगाव को तरजीह देती हैं, जो सहयोग के ऊपर संघर्ष को हावी करती हैं?
और हमारे पास वे कौन से साधन हैं, वे कौन से रास्ते हैं जिनके ज़रिये हम इन दरारों और दूरियों को मिटाकर एक सुहाने और साझा भविष्य के सपने को साकार कर सकते हैं?
Friends,
भारत, भारतीयता ओर भारतीय विरासत का प्रतिनिधि होने के नाते मेरे लिए इस फोरम का विषय जितना समकालीन है उतना ही समयातीत भी है।
समयातीत इसलिए क्योंकि भारत में अनादिकाल से हम मानव मात्र को जोड़ने में विश्वास करते आये हैं, उसे तोड़ने में नहीं, उसे बांट ने में नहीं। हज़ारों साल पहले संस्कृत भाषा में लिखे गये ग्रंथों में भारतीय चिंतकों ने कहा: “वसुधैवकुटुम्बकम्”। यानि पूरी दुनिया एक परिवार है। तत्वतः हम सब एक परिवार की तरह बंधे हुए हैं, हमारी नियतियां एक साझा सूत्र से हमें जोड़ती हैं।
वसुधैवकुटुम्बकम् की यह धारणा निश्चित तौर पर आज दरारों और दूरियों को मिटाने के लिए और भी ज्यादा सार्थक है।
लेकिन आज एक गंभीर बात यह है कि इस काल की विकट चुनौतियों से निपटने के लिए हमारे बीच सहमति का अभाव है।
परिवार में जहां एक ओर सौहार्द्र और सहयोग होता है वहीं कुछ न कुछ मतभेद और झगड़े भी हो सकते हैं। लेकिन परिवार का प्राण, उसकी प्रेरणा यही भावना होती है कि जब साझा चुनौतियां सामने आयें तोसब लोग एकजुट होकर उनका सामना करते हैं, और एकजुट होकर उपलब्धियों और आनंद के हिस्सेदार बनते हैं।
परन्तु चिंता का विषय है कि हमारे विभाजनों ने, दरारों ने इन चुनौतियों के खिलाफ़ मानव जाति के संघर्ष को और भी कठिन, और भी कठोर बना दिया है।
Friends,
जिन चुनौतियों की ओर मैं इशारा कर रहा हूँ उनकी संख्या भी बहुत है और विस्तार भी व्यापक है। यहां पर मैं सिर्फ तीन प्रमुख चुनौतियों का जिक्र करुंगा जो मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़े ख़तरे पैदा कर रही हैं।
Glaciers पीछे हटते जा रहे हैं। आर्कटिक की बर्फ पिघलती जा रही है। बहुत से द्वीप डूब रहे हैं, याडूबने वाले हैं। बहुत गर्मी और बहुत ठंड, बेहद बारिश और बाढ़ या बहुत सूखा – extreme weather का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है।
इन हालात में होना तो यह चाहिए था कि हम अपने सीमित संकुचित दायरों से निकलकर एकजुट हो जाते। लेकिन क्या ऐसा हुआ? और अगर नहीं, तो क्यों? और हम क्या कर सकते हैं जो इन हालात में सुधार हो।
हर कोई कहता है की carbon emission को कम करना चाहिए। लेकिन ऐसे कितने देश या लोग हैं जो विकासशील देशों और समाजों को उपयुक्त technology उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक संसाधन मुहैया कराने में मदद करना चाहते हैं।
भारतीय परम्परा में प्रकृति के साथ गहरे तालमेल के बारे में। हजारो साल पहले हमारे शास्त्रों में मनुष्यमात्र को बताया गया- “भूमि माता, पुत्रो अहम् पृथ्व्याः” यानि, we the human are children of Mother Earth: PM @narendramodi at the @wef
आपने अनेक बार सुना होगा भारतीय परम्परा में प्रकृति के साथ गहरे तालमेल के बारे में। हजारो साल पहले हमारे शास्त्रों में मनुष्यमात्र को बताया गया- “भूमि माता, पुत्रोअहम्पृथ्व्याः” यानि, we the human are children of Mother Earth.
यदि हम पृथ्वी की संतान हैं तो आज मानव और प्रकृति के बीच जंग-सीक्योंछिड़ी है?
हज़ारों साल पहले भारत में लिखे गए सबसे प्रमुख उपनिषद ‘इशोपनिषद’ की शुरुआत में हीतत्त्वद्रष्टागुरु ने अपने शिष्यों से परिवर्तनशील जगत के बारे में कहा: ‘तेनत्यक्तेनभुन्जीथा’।यानि संसार मेंरहते हुए उसकात्यागपूर्वक भोग करो.
ढाई हज़ार साल पहले भगवान् बुद्ध ने अपरिग्रहयानि आवश्यकता के अनुसार इस्तेमाल को अपने सिद्धांतों में प्रमुख स्थान दिया।भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का trusteeship का सिद्धांत भी आवश्यकता यानि need के अनुसारउपयोग और उपभोग करने के पक्ष में था;greed परआधारित शोषण का उन्होंने सीधा विरोध किया था.
सोचने का विषय है कि त्यागपूर्वक भोग से आवश्यकतानुसार उपयोग करते हुए अब हम लालच के वश प्रकृति के शोषणतक कैसे पहुँच गए?यह हमारा विकास हुआ है या पतन?
हमारे दिमाग कीयेदुरावस्था, हमारे स्वार्थ की खौफनाक झलक, हमें क्यों आत्म-चिंतन पर मजबूर नहीं करती?
अगर हम सोचें तो पाएंगे कि आजपर्यावरण में व्याप्तभयंकरकुपरिणामोंके इलाज का एक अचूक नुस्खा है – प्राचीन भारतीय दर्शन का मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य।
यही नहीं, इस दर्शन से जन्मी योग और आयुर्वेद जैसी भारतीय परम्पराओं की समग्र पद्यति न सिर्फ परिवेश और हमारे बीच के fracture को heal कर सकती है, बल्कि हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य और संतुलन भी प्रदान करती है।
वातावरण को बचाने और climate change का प्रतिकार करने के लिए एक बहुत बड़ा अभियान, एक बहुत बड़ा लक्ष्य मेरी सरकार ने देश के सामने रखा है। सन् 2022 तक हमें भारत में 175 GW renewable energy का उत्पादन करना है। पिछले करीब तीन वर्षों में 60 GW, यानी इस लक्ष्य का एक तिहाई से भी अधिक हम प्राप्त कर चुके हैं।
Globalisation के विरुद्ध इस चिंताजनक स्थिति का हल अलगाव में नहीं है। इसका समाधान परिवर्तन को समझने और उसे स्वीकारने में है, बदलते हुए समय के साथ चुस्त और लचीली नीतियां बनाने में है: PM @narendramodi
2016 में भारत और फ्रांस ने मिलकर एक नये अंतर्राष्ट्रीय treaty based organization की कल्पना की। यह क्रांतिकारी क़दम अब एक सफल प्रयोग में बदल गया है।
International Solar Alliance के रुप में यहपहल आवश्यक Treatyratification के बाद अब एक वास्तविकता है। मुझे बेहद ख़ुशीहै कि इस वर्ष मार्च में फ्रांस के राष्ट्रपति मैंक्रॉ और मेरे संयुक्त निमंत्रण पर इस Alliance के सदस्य देशों के leaders नई दिल्ली में होने वाले Alliance के पहले summit में भाग लेंगे।
Friends,
दूसरी बड़ी चुनौती है आतंकवाद। 2016 में 25 हजार से ज्यादा लोग आतंकी हमलों में मारे गये। 77 देशों में यानी संयुक्त राष्ट्र संघकी सदस्यता के करीब 40% हिस्से में आतंकवादी गतिविधियों से कई लोगों की जानें गई।
एक ओर आतंकवाद के आर्थिक दुष्परिणाम कोअरबों डॉलर के नुकसान के रूप में आंका गया है। दूसरी ओर किसी ने यह भी आकलन किया है कि यूरोप में एक आतंकी हमला आयोजित करने के लिए केवल 10 हजार डॉलर से कम में भी काम चल सकता है।
यह मानवता विरोधी चुनौती जीवन को ही नहीं, सुरक्षा को ही नहीं, सारे संसार केविकास, शान्ति और स्थिरता को बुरी तरह प्रभावित कर रही है।
स्पष्ट है कि हमें आतंकवाद से लड़ने के लिए आपसी सहयोग को एक व्यावहारिक बुनियाद पर मजबूती के साथ खड़ा करना होगा।
हमें जरुरत है कि मानवता में विश्वास रखने वाले सभी देश विभिन्न रास्तों से विभिन्न mechanism के द्वारा आपसी सहयोग बढ़ाये जिससे आतंकवाद को प्रश्रय देने वाली ताकतों को पराजित किया जा सके।
तीसरी चुनौती मैं यह देखता हूँ कि बहुत से समाज और देश ज्यादा से ज्यादा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि Globalization अपने नाम के विपरीत सिकुड़ रहा है। इस प्रकार की मनोवृत्तियों और गलत प्राथमिकताओं के दुष्परिणाम को climate change या आतंकवाद के ख़तरे से कम नहीं आंका जा सकता।
हालांकि हर कोई interconnected विश्व की बात करता है लेकिन globalization की चमक कम हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आदर्श अभी भी सर्वमान्य हैं। World Trade Organization भी व्यापक है। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने हुए विश्व संगठनोंकी संरचना, व्यवस्था और उनकी कार्य पद्धति क्या आज के मानव की आकांक्षाओं और उसके सपनों को, आज की वास्तविकता कोपरिलक्षित करते हैं?
इन संस्थानों की पुरानी व्यवस्था और आज के विश्व में खासतौर पर बहुतायत विकासमान देशों की आवश्यकताओं के बीच एक बड़ी खाई है।
Globalization के विपरीत protectionism की ताकतें सर उठा रहीं हैं। उनकी मंशा है कि न सिर्फ वे खुद globalization से बचें बल्कि globalization के प्राकृतिक प्रवाह का रुख भी पलट दें।
इसका एक परिणाम यह है कि नये-नये प्रकार के tariff और non-tariff barrier देखने को मिलते हैं।
द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौते और negotiations रुक-से गये हैं.
Cross-border वित्तीय निवेश में ज्यादातर देशों में कमी आई है। और Global supply chains की वृद्धि भी रुक गयी है।
Globalisation के विरुद्ध इस चिंताजनक स्थिति का हल अलगाव में नहीं है। इसका समाधान परिवर्तन को समझने और उसे स्वीकारने में है, बदलते हुए समय के साथ चुस्त और लचीली नीतियां बनाने में है।
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, ”मैं नहीं चाहता कि मेरे घर की दीवारें और खिड़कियां सभी तरफ से बंद हो। मैं चाहता हूँ की सभी देशों की संस्कृतियों की हवा मेरे घर में पूरी स्वछंदता से आ जा सके। लेकिन इस हवा से मेरे पैर उखड़ जायें, यह मुझे मंजूर नहीं होगा।”
आज का भारत महात्मा गांधी के इसी दर्शन और चिंतन को अपनाते हुए पूरे आत्मविश्वास और निर्भिकता के साथ विश्व भर से जीवनदायिनी तरंगों का स्वागत कर रहा है।
भारत का लोकतंत्र देश की स्थिरता, निश्चितता और सतत विकास का मूल आधार है। धर्म, संस्कृति, भाषा, वेश-भूषा और खान-पान की अपार विविधता से भरे-पूरे भारत के लिए लोकतंत्र महज़ एक राजनैतिक व्यवस्था नहीं बल्कि एक जीवन दर्शन है, जीवन शैली है।
हम भारतीय यह भली-भांति जानते और समझते हैं की विविधता की अनेकता को सौहार्दृ, सहयोग और संकल्प की एकता में बदलने के लिए लोकतांत्रिक परिवेश और स्वतंत्रताओं का महत्व क्या है।
भारत में लोकतंत्र सिर्फ हमारी विविधता का ही पालन-पोषण नहीं करता, बल्कि सवा सौ करोड़ से भी अधिक भारतीयों की आशाओं, आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और उनके सपनों को पूरा करने के लिए, उनके समुचित विकास के लिए आवश्यक परिवेश, roadmap और template भी प्रदान करता है।
लोकतांत्रिक मूल्य और समावेशी आर्थिक विकास और प्रगति में तमाम दरारों को पाटने की संजीवनी शक्ति है।
भारत के छह सौ करोड़ मतदाताओं ने 2014 में तीस साल बाद पहली बार किसी एक राजनीतिक Party को केंद्र में सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत दिया।
हमने किसी एक वर्ग या कुछ लोगो के सीमित विकास का नहीं बल्कि सबके विकास का संकल्प किया। मेरी सरकार का मोटो है:”सबका साथ -सबका विकास”। प्रगति के लिए हमारा vision समावेशी है, हमारा mission समावेशी है।
यह समावेशी दर्शन मेरी सरकार की हर नीति का हर योजना का आधार है।
चाहे वह करोड़ों लोगों के लिए पहली बार bank खाते खुला के financial inclusion करना हो, या गरीबों तक, हर जरूरतमंद तक digital technology द्वारा direct benefit transfer.
या फिर gender justice के लिए ‘बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ’।
हम मानते हैं कि प्रगति तभी प्रगति है, विकास तभी सच्चे अर्थों में विकास है जब सब साथ चल सकें।
हम अपनी आर्थिक और सामाजिक नीतियों में केवल छोटे-मोटे सुधारही नहीं कर रहे, बल्कि आमूलचूलरूपान्तरण कर रहे हैं। हमने जो रास्ता चुनाहै वो है reform, performand transform.
आज हम भारत की अर्थव्यवस्था को जिस प्रकार से निवेश के लिए सुगम बना रहे हैं उसका कोई सानी नहीं है ।
इसी का नतीजा है कि आज भारत में निवेश करना, भारत की यात्रा करना, भारत में काम करना, भारत में manufacture करना, और भारत से अपने products and services को दुनिया भर को export करना, सभी कुछ पहले की तुलना में बहुत आसान हो गया है।
हमने लाइसेंस-परमिट राज को जड़ से ख़त्म करने का प्रण लिया है। Red tape हटा कर हम red carpet बिछा रहे हैं।
अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्र foreign direct investment के लिए खुल गए हैं। 90प्रतिशत से अधिक में automatic route से निवेश सम्भव है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों ने मिल कर 10,000 से अधिक reforms किये हैं। 1400 से अधिक ऐसे पुराने कानून, जो business में, प्रशासन में, और आम इंसान के रोजमर्रा के जीवन में अडचनेंडालरहे थे, ऐसे पुराने कानूनों को हमने ख़त्म कर दिया है
70 साल के स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार देश में एक एकीकृत कर व्यवस्था goods and service tax – GST – के रूप में लागू कर ली गई है।
पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए हम technology का इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत कोtransform करनेके लिए हमारे संकल्प और हमारे प्रयासों का विश्व भर की business community ने स्वागत किया है।
भारत में democracy,demographyऔर dynamism मिल कर development को साकार कर रहे हैं, destiny को आकारदे रहे हैं।
दशकों के नियंत्रण ने भारत के लोगों की, भारत के युवा की क्षमताओं को जकड रखा था। लेकिन अब, हमारी सरकार के निर्भीक नीतिगत फैसलों ने, असरदार कदमों ने परिस्थितियां बदल दी हैं।
अब भारत के लोग, भारत के युवा 2025 में 5 ट्रिलियनडॉलर कीअर्थव्यवस्था के निर्माण में योगदान के लिए समर्थ हैं।
यही नहीं, जब Innovation और Entrepreneurship(आंत्रप्रेनयूरशिप) के ज़रिये वे जॉब-सीकर नहीं,जॉबगिवर बनेंगे तो उनके लिए, उनके देश के लिए और आप के व्यवसाय के लिए कितने रास्ते खुलेंगे इसकी कल्पना ही की जा सकती है।
आप सभी विश्व के प्रमुख लीडर्स हैं, और विश्व में हो रहे परिवर्तनों से, भारत की ranking और rating में हुए सुधार से, और आगे के लिए जो रास्ता हमने चुना है – इन सबसे आप भलीभाँति परिचित हैं।
लेकिन इन सभी आकंड़ो से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि भारत के लोगों ने हमारी नीतियों का, अपनी भविष्य में बदलाव के लिए हुई नई पहलों और अच्छे भविष्य के सुनहरे संकेतों का स्वागत किया है।
स्वेच्छा से subsidy का त्याग, या फिर चुनाव दर चुनाव लोकतांत्रिक तरीकों से हमारी नीतियों और सुधारों में अपना विश्वास व्यक्त करना हो– ऐसे अनेक प्रमाण भारत में इन अभूतपूर्व परिवर्तनोंके व्यापक समर्थन की पुष्टि करते हैं।
Friends,
विश्व में तमाम तरह के फ्रैक्चर और तमाम तरह की दरारों को देखते हुए, यह आवश्यक है कि हमारे साझा भविष्य के लिए हम कई दिशाओं पर ध्यान दें।
सबसे पहले तो ये आवश्यक है कि विश्व की बड़ी ताक़तों के बीच सहयोग के संबंध हों। यह आवश्यक है कि विश्व के प्रमुख देशों के बीच प्रतिस्पर्धा उनके बीच एक दीवार बनकर न खड़ी हो जाए। साझा चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए हमें अपने मतभेदों को दरकिनार करके एक larger vision के तहत साथ मिल कर काम करना होगा।
दूसरी आवश्यकता है कि नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करना पहले से भी ज़्यादा ज़रूरी हो गया है। ख़ास तौर पर जब हम ऐसे समय से गुज़र रहे हैं जहाँ हमारे चारों और होने वाले बदलाव अनिश्चितताओं को जन्म दे सकते हैं, तब अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियमों का सही spirit में पालन ज़रूरी है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व के प्रमुख राजनैतिक, आर्थिक एवं सुरक्षा से संबंधित संस्थानों में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। उनमें सहभागिता और लोकतांत्रिकरण कोआज की परिस्थिति के अनुरूप बढ़ावा दिया जाए।
चौथी महत्वपूर्ण बात ये है कि हमें विश्व की आर्थिक प्रगति में और तेज़ी लानी होगी। इस बारे में विश्व में आर्थिक वृद्धि के लिए हाल के संकेत उत्साहजनक है। Technology और digital revolution ऐसे नए समाधानों की संभावना बढ़ाते हैं जिनसे हम ग़रीबी और बेरोज़गारी जैसी पुरानी समस्याओं और चुनौतियों का नए सिरे से मुक़ाबला कर सकते हैं।
Friends,
इस प्रकार के प्रयासों में भारत ने हमेशा सहायता का हाथ आगे बढ़ाया है।आज से ही नहीं, अपनी स्वतंत्रता के समय से नहीं, बल्कि पुरातन काल से भारत चुनौतियों का मुक़ाबला करनेमें सबके साथ सहयोग का हामी रहा है।
पिछली शताब्दी में जब विश्व दो विश्वयुद्धों के संकट से गुज़रा तब अपना कोई निजी स्वार्थ न होते हुए भी, कोई आर्थिक या territorial हितन होते हुए भी भारत शान्ति और मानवताके उच्च आदर्शों की सुरक्षा के लिए खड़ा हुआ। डेढ़ लाख से भी अधिक भारतीय सैनिकों ने अपनी जान दी।
ये वही आदर्श हैं जिनके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद से भारत ने UN peace keeping ऑपरेशंस में सैनिकों का सबसे बड़ी संख्या में योगदान किया है।
ये वही आदर्श हैं जिनकी प्रेरणा और शक्ति हमें संकटों और प्राकृतिक आपदाओं के समय अपने पड़ोसियों मित्र देशों और मानव मात्र की सहायता करने के लिए उत्साहित करती है।
चाहे नेपाल में भूकंप हो,या हमारे दूसरे पड़ोसी या मित्र देशों में बाढ़, तूफ़ान, या दूसरी प्राकृतिक आपदाएँ। भारत ने FirstResponder के रूप में सहायता पहुँचाना अपना सबसे प्रमुखकर्तव्य समझता है। यमन में जब हिंसा की लपटों ने भारत ही नहीं दुनिया के बहुत से देशों के नागरिकों को चपेट लेना शुरू किया तो हमने अपने संसाधनों के ज़रिए भारतीयों को ही नहीं, अन्य देशों केलगभग 2 हज़ार नागरिकों को भीवहाँ से सुरक्षित निकाला।
स्वयं एक विकासशील देश होने के बावजूद भारत development cooperation में, capacity building में, आगे बढ़कर सहयोग करता आ रहा है। Africa के देश हों, या भारत के पड़ोसी, या South East Asia के देश हों, या फ़िर Pacific Islands हों, सभी के साथ हमारे सहयोग की रूपरेखा और हमारे projects उन देशों की प्राथमिकताओं और ज़रूरतों पर आधारित होते हैं।
Friends,
भारत ने कोई राजनैतिक या भौगोलिक महत्वाकांक्षा नहीं रखी है।हम किसी भी देश केप्राकृतिक संसाधनों का शोषणनहीं करतेबल्कि उसदेश के लिए उसके साथ मिलकर उनकाविकास करते हैं।
भारतीय भूभाग में हज़ारों साल से विविधता के सौहार्दपूर्ण सहअस्तित्व का सीधा नतीजा यह है कि हम multi-cultural संसार में और multi-polar विश्व-व्यवस्था में विश्वास रखते हैं।
भारत ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र, विविधता का सम्मान, सौहार्द्र और समन्वय, सहयोग और संवाद सेसभी विवादों और दरारों को मिटाया जा सकता है।
शांति, स्थिरता और विकास के लिए यह भारत का जांचा-परखा नुस्खा है।
यही नहीं, a predictable, stable, transparent and progressive India will continue to be the good news in an otherwise state of uncertainty and flux.
An India where enormous diversity exists harmoniously will always be a unifying and harmonising force.
अपने लिए नहीं, अपने देश के लिए ही नहीं भारतीय मानस ने, भारत के चिंतकों ने ऋषि मुनियों ने प्राचीन काल से ही सर्वेभवन्तुसुखिनःसर्वेसन्तुनिरामया, सर्वेभद्राणीपश्यंतु, माकश्चिद् दुख भाग भवेत् – यानी सब प्रसन्न हों, सब स्वस्थ हों, सबका कल्याण हों और किसी को दुःख ना मिले – यह सपना देखा है।
और इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए, इस सपने को साकार करने के लिए रास्ता भी दिखाया है: सहनाऽवतु, सह नौ भुनक्तु सह वीर्यंकरवावहे। तेजस्विनाधीतमस्तुमाविद्विषावहे।
इस हजारोंसाल पुरानी भारतीय प्रार्थना का अभिप्राय है कि हम सब मिलकर काम करें, मिलकर चलें, हमारी प्रतिभाएं साथ-साथ खिलें और हमारे बीच कभी भी द्वेष न हो।
पिछली शताब्दी के महान भारतीय कवि और Nobel पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक ऐसे heaven of freedom की कल्पना की“where the World has not been broken up into fragments by narrow domestic walls”.
आइए हम मिलकर एक ऐसा heaven of freedom बनाएँ जहाँ सहयोग और समन्वय हो, divide और fracture नहीं।
आइए हम सब साथ-साथ दुनिया को उसकी दरारों और अनावश्यक दीवारों से मुक्ति दिलाएँ।
Friends,
भारत और भारतीयों ने पूरे विश्व को एक परिवार माना है। विभिन्न देशों में भारतीय मूल के 30 million लोग रह रहे हैं।
जब हमने पूरी दुनिया को अपना परिवार माना है, तो दुनिया के लिए भी हमभारतीय उनका परिवार हैं।
मैं आप सबका आह्वान करता हूं कि अगर आप वेल्थ के साथ वैलनेस चाहते हैं, तो भारत में काम करें।
अगर आप health के साथ जीवन की wholeness यानि समग्रता चाहते हैं तो भारत में आयें।
अगर आप prosperity के साथ peace चाहते हैं तो भारत में रहें।
आप भारत आएं, भारत में हमेशाआपका स्वागत होगा।
मुझे आप सब से बातचीत करने का यह बहुमूल्य अवसर प्रदान करने के लिए, World Economic Forum का, श्री क्लास श्वाब का और आप सबका मैं ह्रदय से बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ।
स्विट्जरलैंड के दावोस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विश्व आर्थिक मंच के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए देश के लिए एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी पेश किया है। उन्होंने भारत में निवेश की संभावनाओं का जिक्र करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था का भी बखान किया। उन्होंने कहा कि भारत साल 2025 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
इस तरह पीएम नरेंद्र मोदी ने भारतीयों और भारतीय कारोबार जगत के सामने एक तरह का लक्ष्य रख दिया है कि 2025 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाना है। यह एक काफी महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, क्योंकि अगले आठ साल में ही अर्थव्यवस्था को दोगुना करना कम चुनौती की बात नहीं है।
नौकरी देने वाला देश बनेगा भारत
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि यदि हम ऐसा कर पाए तो नौकरी खोजने वालों को भूल जाइए, भारत नौकरी देने वाला बनेगा। पीएम नरेंद्र मोदी का यह लक्ष्य देश के लिए एक और चुनौती है, क्योंकि अभी देश पर्याप्त संख्या में नौकरियां पैदा करने के लिए जूझ रहा है।
दावोस के स्की रिजॉर्ट में बर्फबारी और जमा देने वाली ठंड के बाद एकतरफ, सूरज की चमक और गर्मी बढ़नी शुरू हुई तो दूसरी तरफ, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम भारतीय सदाचार, संस्कृति, सिद्धांतों और पीएम नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षाओं के ताप को महसूस कर रहा था।
दावोस में करीब 30 साल के बाद की सबसे ज्यादा बर्फबारी देखी गई। 72 घंटे तक की बर्फबारी में चार फीट तक बर्फ जम गई थी। जिससे इस छोटे से शहर में हर तरफ परेशानी और ट्रैफिक जाम का माहौल था। मौसम खराब होने की वजह से खुद पीएम नरेंद्र मोदी जी को ज्यूरिख एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर की जगह सड़क मार्ग से दावोस जाना पड़ा।
भारत को निवेश का आकर्षक स्थल बताते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि जो लोग धन के साथ तंदुरुस्ती और समृद्धि के साथ शांति चाहते हैं उन्हें भारत आना चाहिए।
दावोस में विश्व आर्थिक मंच सम्मेलन में शरीक होने वाले मोदी दो दशक में पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। इस बार ये सम्मेलन इस मायने में खास रहा क्योंकि उद्घाटन भाषण पीएम नरेंद्र मोदी ने दिया। अपने भाषण में उन्होंने जहां अर्थव्यवस्था और निवेश पर बात रखी, वहीं दुनिया के सामने खड़ी तीन सबसे बड़ी चुनौतियां भी बताईं।
सुधार, प्रदर्शन और बदलाव
पीएम नरेंद्र मोदी ने ये भी कहा कि मौजूदा वक्त में भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 2.2 लाख करोड़ डॉलर है। और 2025 तक देश पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन के सिद्धांत का पालन कर रही है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने आज कहा, ‘हमने भारत में निवेश, उत्पादन और काम करने को आसान बनाया है। हमने लाइसेंस और परमिट राज को जड़ से उखाड़ फेंकने का फैसला किया है। हम लालफीताशाही को लाल कालीन से बदल रहे हैं.’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारत आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन के इतर दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ नौ द्विपक्षीय बैठकें करेंगे। इस दौरान उन्होंने आतंकवाद के विरोध, सुरक्षा और संपर्क बढ़ाने पर उनका जोर होगा। एक अप्रत्याशित कार्यक्रम में यहां आसियान देशों के सभी नेता गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि होंगे। पीएम नरेंद्र मोदी यहां वियतनाम के प्रधानमंत्री न्गुयेन हुआ फुक, फिलीपीन के राष्ट्रपति रोड्रिगो रोआ दुतेर्ते और म्यांमा की नेता आंग सान सू क्यी से मुलाकात करेंगे। ये नेता 25 जनवरी को होने वाली शिखर बैठक के लिये यहां पहुंच रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बृहस्पतिवार को थाइलैंड, सिंगापुर और ब्रुनेई के नेताओं के साथ भी द्विपीक्षीय बातचीत करेंगे। मोदी इसके बाद शुक्रवार को इंडोनेशिया, लाओस और मलेशिया के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे। भारत आसियान संबंधों के 25 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित इस शिखर बैठक का आयोजन ऐसे समय हो रहा है। जब क्षेत्र में चीन का आर्थिक और सैन्य हटधर्मिता बढ़ती जा रही है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक भारत के लिये इन देशों के समक्ष व्यापार और संपर्क जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अपने आप को एक शक्तिशाली सहयोगी के तौर पर प्रस्तुत करने का बेहतर अवसर हो सकता है।
इस दौरान नेताओं के बीच 25 जनवरी को एक बैठक होगी जिसमें वह समुद्री क्षेंत्र में सहयोग और सुरक्षा के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रख सकेंगे। इसी दिन एक पूर्ण सत्र का भी आयोजन किया जायेगा। आसियान देशों में थाइलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन सिंगापुर, म्यांमा, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में स्वागत भाषण दिया है। यहां अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) पर कहा कि वैश्विकरण की चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है। लिहाजा वैश्विकरण के प्रवाह के रुख को बदलने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि दुनियाभर में दो देशों के बीच और कुछ देशों के समूहों के बीच (द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार) कारोबारी समझौते नहीं हो रहे हैं। इसके चलते ग्लोबल इकोनॉमी में कारोबार पर प्रतिबंधों में इजाफा हुआ है। टेक्नोलॉजी के स्वतंत्र संचार में रुकावटे बढ़ी हैं।
दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक मंच के वार्षिक सम्मेलन में कीनोट एड्रेस देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर मौजूदा समय में संरक्षणवाद की नीतियां हावी है। वैश्विक स्तर पर कुछ शक्तियां वैश्विकरण के प्रभावों से बचने के लिए संरक्षणवाद को बढ़ावा दे रही हैं और इनकी कोशिश है कि ग्लोबलाइजेशन की धारा को बदल दें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि क्लाइमेट चेंज दुनिया की लिए सबसे बड़ी चुनौती है इसके बावजूद ग्लोबलाइजेशन के दौर में भी हम इससे लड़ने के लिए एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि दुनिया के सभी देश मानते हैं कि प्रदूषण पर लगाम के कड़े मानक लागू किए जाएं। लेकिन दुनिया भर के अमीर देश उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए नई टेक्नोलॉजी से वंचित रखा है।
इस मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसके साथ ही वैश्विक कारोबारी ढांचे के साथ-साथ वैश्विक संगठनों में भी तुरंत सुधार की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र के ढांचें में सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बना था और तत्कालीन वैश्विक आर्थिक स्थिति को केन्द्र में रखते हुए बना था। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि बीते दो दशकों के दौरान भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी छलांग लगाई है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के साथ ही भारत में रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म की नीतियों पर चलने की कोशिश की जा रही है। इसी का नतीजा है कि भारत में निवेश करना, कारोबार करना, टूरिज्म के लिए जाना इत्यादि पहले की तुलना में बहुत आसान हो चुका है।
वैश्विक मंच से पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में रेड टेप हटाकर रेड कार्पेट बिछाया जा रहा है। ज्यादातर क्षेत्रों में ऑटोमैटिक रूट के जरिए विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी गई है। भारत में बीते तीन साल के अंदर सैकड़ों पुराने और बेकार हो चुके कानून को हटाने का काम किया है। देश में पार्दर्शिता को बढ़ाने के लिए देश में जीएसटी को भी लागू किया गया है।
पीएम नरेंद्र मोदी के मुताबिक भारत के युवा 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के निर्माण में सक्रिय हैं। इनोवेशन के जरिए वह जॉब सीकर नहीं जॉब गिवर बनेंगे। पीएम मोदी ने कहा कि भारत की रैंकिंग और रेटिंग में हुए सुधार से दुनिया परिचित है। देश में स्वेच्छा से सब्सिडी का त्याग किया जा चुका है। ऐसे अनेक प्रमाण भारत की आर्थिक विकास की गाथा सुनाता है।