89 वर्ष पहले आज ही का वो दिन था, जब बापू ने ऐतिहासिक दांडी मार्च की शुरुआत की थी। हालांकि, दांडी मार्च अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण नमक कानून का विरोध करने के उद्देश्य से निकाला गया था। लेकिन, इस आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव को हिला दिया था। दांडी मार्च अन्याय और असमानता से लड़ने का एक मजबूत प्रतीक बन गया।क्या आपको पता है कि दांडी मार्च की योजना तैयार करने में किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी?
दरअसल, इसके पीछे हमारे महान नेता सरदार वल्लभभाई पटेल थे।
वे संगठन की बारीकियों को समझते थे। उन्होंने दांडी मार्च की ना केवल रूपरेखा तैयार की, बल्कि पल-पल उस पर अपनी पैनी नजर भी बनाए रखी थी। अंग्रेज, सरदार साहब से इतने अधिक भयभीत हो गए थे कि उन्होंने दांडी मार्च से कुछ दिन पहले ही उन्हें यह सोच कर गिरफ्तार कर लिया था कि इससे गांधी जी डर जाएंगे। हालांकि, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। क्योंकि अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ने का मजबूत इरादा हर मुश्किल और डर पर भारी था!
पिछले दिनों मुझे दांडी में उस जगह जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जहां बापू ने अपनी मुट्ठी में नमक उठाकर अंग्रेजों को चुनौती दी थी। वहां पर एक अत्याधुनिक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है। मैं सभी से आग्रह करता हूं कि उसे देखने अवश्य जाएं।
गांधी जी ने हमें सिखाया है कि कोई भी कार्य करने से पहले हम समाज के उस गरीब से गरीब व्यक्ति की परेशानियों के बारे में सोचें और यह विचार करें कि हमारे द्वारा किया गया कार्य उस व्यक्ति को किस प्रकार प्रभावित कर सकता है। मुझे यह कहते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारी सरकार ने हर क्षेत्र में जो भी कार्य किया है, उसमें इस चिंतन को समाहित किया गया है कि इससे कैसे गरीबी दूर होगी और समृद्धि आएगी।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस की संस्कृति गांधीवादी विचारधारा के बिल्कुल विपरीत हो चुकी है।
बापू ने कहा था, “ …मेरे लिए भारत की असली आजादी वो है, जब देशवासियों में भाईचारे की अटूट भावना हो।” गांधी जी ने हमेशा अपने कार्यों के माध्यम से ये संदेश दिया कि असमानता और जाति विभाजन उन्हें किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। दुख की बात है कि कांग्रेस ने समाज को विभाजित करने में कभी संकोच नहीं किया। सबसे भयानक जातिगत दंगे और दलितों के नरसंहार की घटनाएं कांग्रेस के शासन में ही हुई हैं।
बापू ने 1947 में कहा था, “समाज का नेतृत्व करने वाले सभी बुद्धिजीवियों और नेताओं का कर्तव्य है कि वे भारत के सम्मान की रक्षा करें, चाहे उनका राजनीतिक रुझान कुछ भी हो, चाहे वे किसी भी दल से जुड़े हों। अगर कुशासन और भ्रष्टाचार फलते-फूलते हैं तो देश के गौरव की रक्षा नहीं की जा सकती है। कुशासन और भ्रष्टाचार एक-दूसरे को बढ़ावा देते हैं।” हमारी सरकार ने भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने के लिए कठोर क़दम उठाए हैं। लेकिन, देश ने देखा है कि कैसे ‘कांग्रेस’ और ‘भ्रष्टाचार’ एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। आप किसी भी सेक्टर का नाम ले लीजिए, आपको वहां कांग्रेस का एक घोटाला नजर आ जाएगा। चाहे रक्षा, टेलिकॉम और सिंचाई का क्षेत्र हो या फिर खेल के आयोजनों से लेकर कृषि, ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्र, कोई भी सेक्टर कांग्रेस के घोटालों से अछूता नहीं है।
बापू ने त्याग की भावना पर बल देते हुए यह सीख दी कि आवश्यकता से अधिक संपत्ति के पीछे भागना ठीक नहीं है। जबकि, कांग्रेस ने बापू की इस शिक्षा के विपरीत अपने बैंक खातों को भरने और सुख-सुविधाओं वाली जीवन शैली को अपनाने का ही काम किया। ये सुख-सुविधाएं गरीबों की मूलभूत आवश्यकताओं की कीमत पर जुटाई गईं।
महिला कार्यकर्ताओं के एक समूह से बातचीत करते हुए बापू ने कहा था, “मुझे ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि देश के कुछ तथाकथित बड़े नेता अपने पुत्रों के जरिए संपत्ति का संग्रह करने में लगे हैं। भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार काफी बढ़ गया है। मुझसे यह भी कहा गया है कि मैं इस मामले में हस्तक्षेप करूं। अगर यह सब सही है तो यही कहा जा सकता है कि हम अपने दुर्भाग्य की दहलीज पर खड़े हैं।” बापू वंशवादी राजनीति की निंदा करते थे, लेकिन ‘Dynasty First’ आज की कांग्रेस का मूलमंत्र बन चुका है।
लोकतंत्र में अटूट आस्था रखने वाले बापू ने कहा था, “मेरी दृष्टि में लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है, जो किसी कमजोर व्यक्ति को भी उतना ही अवसर देती है, जितना किसी शक्तिशाली व्यक्ति को।” इसे विडंबना ही कहेंगे कि कांग्रेस ने देश को ‘आपातकाल’ दिया, यह वह वक्त था, जब हमारी लोकतांत्रिक भावनाओं को रौंद डाला गया था। यही नहीं कांग्रेस ने धारा 356 का कई बार दुरुपयोग किया। अगर कोई नेता उन्हें पसंद नहीं आता था तो वे उसकी सरकार को ही बर्खास्त कर देते थे।
कांग्रेस ने हमेशा वंशवादी संस्कृति को बढ़ावा दिया। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी कभी कोई आस्था नहीं रही है। गांधी जी कांग्रेस कल्चर को अच्छी तरह से समझ चुके थे। इसीलिए वे चाहते थे कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाए, विशेषकर 1947 के बाद।
उन्होंने कहा था, ‘’बड़े ही दुख के साथ मुझे ये कहना पड़ रहा है कि कई कांग्रेसियों ने स्वराज को केवल एक राजनीतिक आवश्यकता के रूप में देखा है, ना कि अनिवार्यता के रूप में।’’ उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस नेता सिर्फ साम्प्रदायिक जोड़-घटाव में व्यस्त हैं। 1937 में ही वे कह चुके थे, ‘’अनियंत्रित भ्रष्टाचार को सहने की बजाय मैं चाहूंगा कि पूरी कांग्रेस को शालीनता के साथ समाधि दे दी जाए।’’
सौभाग्य की बात है कि केंद्र में आज एक ऐसी सरकार है, जो बापू के पदचिह्नों पर चलते हुए जनसेवा में जुटी है। वहीं, एक ऐसी जनशक्ति भी है, जो भारत को कांग्रेस कल्चर से मुक्त करने के उनके सपनों को पूरा कर रही है!