नोटबंदी के जिस ऐतिहासिक फैसले की फिलहाल भारत के कोने कोने में बात हो रही है, जिसने रातोंरात हर भारतीय की पॉकेट पर असर डाला, उस निर्णय को अमल में लाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने ऐसे भरोसेमंद अफसरशाह को चुना था जिसे आर्थिक महकमे से बाहर ज्यादा लोग जानते भी नहीं हैं!
हंसमुख अधिया और उनके पांच साथी जो इस योजना का हिस्सा थे, उनसे इस मामले को गोपनीय रखने का वादा लिया गया था. इस मामले को गहराई से जानने वाले कुछ सूत्रों ने जानकारी दी है कि इस छह सदस्यीय टीम के साथ एक युवा रिसर्च टीम भी शामिल थी जो इस फैसले की घोषणा से पहले पीएम मोदी के निवास स्थान के दो कमरों में दिन-रात काम कर रही थी. यह गोपनीयता जाहिर है इसीलिए रखी गई थी ताकि कालेधन के मालिकों को सोना, प्रॉपर्टी या कुछ और संपत्ति खरीदने का मौका न मिल सके.
इससे पहले भी कुछ ऐसी खबरें आ रही थीं जिसमें कहा जा रहा था कि पीएम मोदी ने विमुद्रीकरण के इस फैसले को अंजाम में लाने के लिए काफी खतरे मोल लिए. वह जानते थे कि उनका नाम और लोकप्रियता दोनों ही दांव पर लगी है, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने यह फैसला लिया. 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा से कुछ देर पहले हुई कैबिनेट बैठक में उन्होंने कहा था, ‘मैंने हर तरह की रिसर्च कर ली है और अगर कुछ गलत होता है तो उसका जिम्मेदार मैं हूं.’ यह जानकारी उन तीन मंत्रियों ने दी है जो उस बैठक में शामिल थे.
इस पूरे अभियान का संचालन पीएम मोदी के निवास स्थान से एक बैकरूम टीम कर रही थी, जिसकी अगुवाई वित्त मंत्रालय के उच्च अधिकारी हंसमुख अधिया कर रहे थे. 58 साल के अधिया, 2003-06 में नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान प्रधान सचिव थे और उन्होंने ही योग से मोदी का परिचय करवाया था. अधिया के जिन सहकर्मियों के साथ रॉयटर्स ने बातचीत की, वह इस सरकारी अफसर की ईमानदारी का गुणगान कर रहे थे.