पिछले दो तीन दिनों से यह खबर खूब चर्चा में है की राहुल गांधी अपने पारंपरिक सीट अमेठी के साथ साथ केरल के सुरक्षित सीट माने जा रहे वायनाड से भी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इसके पीछे कांग्रेस पार्टी हालाँकि दक्षिण भारतीय राज्यों के वोट साधने की युक्ति बता रही है पर जब हम वायनाड सीट के वोटरों के बारे में समझते हैं तो हमें पता चलता है की आखिर यह सीट कांग्रेस पार्टी द्वारा सुरक्षित क्यों माना जा रहा है!
दरअसल वायनाड सीट पर हिन्दू वोटरों की संख्या महज 49% है वहीं अल्पसंख्यक वोटरों की बात करें तो वे 51% हैं। इस क्षेत्र में मुस्लिम और ईसाई वोटर अच्छी संख्या में हैं और राहुल गांधी शायद इन्हीं वोटरों के विश्वास पर अमेठी से यहाँ चले आये हैं। हिन्दू वोटरों के सामने कांग्रेस की सिमटती साख इसी बात से पता चलती है की जो कांग्रेस पार्टी 5 साल पहले तक हिन्दू आतंकवाद और हिन्दू देवी देवताओं के अस्तित्व पर सवाल उठाते थे वो खुद पिछले कुछ सालों से हर मंदिर पर माथा टेक आते हैं ताकि हिन्दुओं का विश्वास कांग्रेस पार्टी पर पुनः बन पाए।
बहरहाल राहुल गांधी का अमेठी के साथ साथ सुरक्षित वायनाड सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय सिर्फ इसलिए भी नहीं है की वायनाड सीट पर अल्पसंख्यक वोट ज्यादा हैं बल्कि इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है राहुल गांधी का अमेठी सीट पर खुद को असुरक्षित महसूस करना। राहुल कई बार अमेठी के सांसद रह चुके है, इससे पहले सोनिया और राजीव गांधी भी यहाँ से चुनाव लड़े और जीते हैं. पर इसके बावज़ूद भी अमेठी का बेहतर विकास नहीं हो पाया है। जिससे अमेठीवासी गांधी परिवार से इस बार नाराज नजर आ रहे हैं।
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट से भाजपा की कद्दावर नेत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को अच्छी टक्कर दी थी। चुनाव हारने के बाद भी स्मृति ने अमेठी से मुंह नहीं मोड़ा और पिछले पांच सालों में दर्जनों बार क्षेत्र का भ्रमण किया और लोगों की समस्याओं का समाधान भी किया। स्मृति जी के इस सेवा भाव से अमेठी वासियों का झुकाव उनकी तरफ हुआ है और आने वाले चुनावों में वे यहाँ से राहुल गांधी को अच्छी टक्कर देती हुई नजर आ रही हैं। ऐसे में राहुल गांधी के अंदर असुरक्षा का भाव आया और वे केरल की तरफ अपने लिए सुरक्षित सीट ढूंढने लगे। अब देखना दिलचस्प होगा की स्मृति ईरानी और राहुल गांधी के बीच मुकाबला कैसा रहता है।