वर्ष 2014 के आम चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने कभी कभार पाकिस्तान का जिक्र जरूर किया लेकिन देश की विदेश नीति को लेकर उन्होंने कोई खास टीका-टिप्पणी नहीं की। सत्ता संभालने के साथ ही मोदी के तेवर दूसरे थे। अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशिया के सभी देशों के प्रमुखों को आमंत्रित कर उन्होंने इस बात के ठोस संकेत दे दिए कि विदेश नीति पर उनकी सरकार की स्पष्ट व मजबूत छाप होगी। विगत चार वर्षों में कई ऐसे मौके आये जब केंद्र की राजग सरकार ने वैश्विक मंचों पर भारत की बात पुरजोर तरीके से रखी है। तेजी से बदलते वैश्विक हालात और पूर्व की संप्रग सरकार की नीतिगत जड़ता की वजह से भारत की छवि को लेकर जो सवाल उठने शुरू हुए थे उनका जवाब आसान नहीं था।
वैश्विक चुनौतियां
परंपरागत समस्याओं का समाधान निकालने के साथ ही भारत की नई सरकार को नई वैश्विक चुनौतियों की भी काट खोजनी थी। चाहे चीन के राष्ट्रपति के साथ पीएम मोदी के स्तर पर अनौपचारिक वार्ता का दौर शुरू करने की पहल हो या आसियान के सभी दस देशों के प्रमुखों को एक साथ बुलाकर विशेष बैठक करने की रणनीति हो, भारत अब जटिल वैश्विक मुद्दों को भविष्य के भरोसे नहीं छोड़ता। यह दावा तो नहीं किया जा सकता कि बीते चार साल में विदेशी मामलों को लेकर अपने कामकाज के बूते रणनीतिक व कूटनीतिक तौर पर देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों से भारत पार पा चुका है, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने साफ दिखा दिया है कि वह परंपरा तोड़ने का साहस रखती है। यही वजह है कि विश्व पटल पर भारत की साख बहुत हद तक बहाल हुई है।
मोदी-चिनफिंग (अप्रैल, 2018)
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मोदी पिछले चार वर्षों में तकरीबन 20 बार मिल चुके हैं, लेकिन इस वर्ष वुहान में इनकी अनौपचारिक मुलाकात की अपनी अहमियत है। इस मुलाकात ने दोनों देशों के रिश्तों में सुधार के प्रति नया भरोसा पैदा किया है। इस मुलाकात के बाद चीन की तरफ से भारत के साथ व्यापार घाटे को थामने के लिए तीन कदमों की घोषणा की गई है। साथ ही दोनों देशों ने अपनी अपनी सेनाओं को सीमा पर शांति बहाली के निर्देश दिए हैं।
मोदी-ट्रंप (जून, 2017)
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद भारत के साथ रिश्तों को लेकर एक अनिश्चितता थी। ट्रंप की कई नीतियां भारत के खिलाफ जाती दिख रही थीं। लेकिन वाशिंगटन में मोदी व ट्रंप के बीच हुई इस मुलाकात ने इस अनिश्चितता को खत्म किया। इसके कुछ ही समय बाद अमेरिका ने भारत को सबसे अहम रणनीतिक साझेदार घोषित किया। नाटो देशों की तरह भारत को हथियारों की बिक्री का रास्ता भी साफ किया।
मोदी-शरीफ (दिसंबर, 2015)
पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ के जन्मदिन (25 दिसंबर) पर अचानक मोदी लाहौर पहुंचे। भारत व पाक के रिश्तों को देखते हुए यह एक बेहद साहसिक कदम था। दोनों नेताओं की गर्मजोशी देखते ही बनती थी। लेकिन इसके एक हफ्ते बाद ही पठानकोट के सेना बेस पर पाकिस्तानी आतंकियों ने हमला कर दिया और दोनों देशों के बीच दोस्ती की उम्मीद धाराशायी हो गई।
मोदी-यूएई क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद (जनवरी, 2017)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाड़ी के देशों के साथ भारत के रिश्तों को नई राह दिखाई है। इस क्रम में वर्ष 2017 के गणतंत्र दिवस में भारत के राजकीय मेहमान के तौर पर आये यूएई के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद के साथ मोदी की मुलाकात को द्विपक्षीय रिश्तों के लिए बेहद अहम माना जाता है। यूएई की तरफ से भारत में 100 अरब डॉलर के निवेश की योजना है, जिसके रोडमैप पर इस मुलाकात में बात हुई।
मोदी-एबे (नवंबर, 2016)
जापान के पीएम शिंजो एबे के साथ वैसे तो मोदी की अभी तक कई बार मुलाकात हो चुकी है, लेकिन नवंबर, 2016 की मुलाकात ने दोनों देशों के बीच लंबे समय तक रणनीतिक साझेदारी की नींव रखी। इसमें भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना की शुरुआत करने से लेकर समुद्री सैन्य क्षेत्र में बड़े सहयोग की जमीन तैयार की।