मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार के मुकाबले दो गुना तेज गति से सड़कों का निर्माण किया है। मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में औसतन रोजाना 12 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गो और 69 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण हुआ था। जबकि मोदी सरकार ने अपने अभिनव तौर तरीकों की बदौलत चार वर्षो में ही रोजाना 27 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग और 134 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनाकर दिखा दी हैं। इन आंकड़ों में अभी और सुधार की उम्मीद है।
केंद्र की सत्ता संभालने के बाद से ही मोदी सरकार का एजेंडा पर देश में सड़क निर्माण प्राथमिकता पर रहा है। यही वजह है कि अपने शुरुआती चार साल में ही सरकार 28531 किलोमीटर सड़क बनाने में सफल रही है। जबकि इससे पहले की संप्रग सरकार अपने आखिरी चार साल में केवल 16505 किलोमीटर सड़कों का ही निर्माण कर पाई थी। इस तरह जहां मनमोहन सरकार ने अपने आखिरी वित्त वर्ष रोजाना 11.6 किलोमीटर की दर से राष्ट्रीय राजमार्ग बनाए थे। वहीं मोदी सरकार ने एक वर्ष पहले ही 26.9 किलोमीटर रोजाना का आंकड़ा हासिल कर लिया है।
मोदी सरकार की ये उपलब्धि यूं ही हासिल नहीं हुई है। इसके लिए कई मोर्चो पर काम हुआ है। इनमें सड़क क्षेत्र में सरकारी खर्च बढ़ाने, रुकी परियोजनाओं की बाधाएं दूर करने, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को आश्वस्त करने तथा सड़क निर्माता कंपनियों को वित्तीय संकट से उबारने के उपाय शामिल हैं। मौजूदा सरकार के आने से पूर्व सड़क परियोजनाओं का हाल बेहाल था।
सड़क परियोजनाओं की मंजूरी की प्रक्रिया बेहद लंबी और उबाऊ थी। जिसमें योजना आयोग से लेकर वित्त मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, पीएमओ और कैबिनेट समेत कई प्रकार के अड़ंगे होते थे। राज्य स्तर पर भूमि अधिग्रहण के पचड़ों के कारण अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएं अटकी हुई थीं। परिणामस्वरूप कोई बैंक इस क्षेत्र में पैसा लगाने को तैयार नहीं था। बजटीय समर्थन भी खास नहीं था। ऐसे में न तो सड़क मंत्रालय कोई खास उत्साह दिखा पा रहा था और न ही एनएचएआइ की बाजार से ज्यादा धन जुटाने की हिम्मत हो रही थी। लेकिन वर्तमान सरकार के आते ही स्थितियां तेजी से बदलने लगीं।
नितिन गडकरी ने इस मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलते ही सबसे पहले बैंकों को रुकी परियोजनाओं को कर्ज जारी के लिए राजी किया। फिर अपने मंत्रालय के मंजूरी के अधिकार बढ़वाकर एक हजार करोड़ तक तक सड़क परियोजनाओं की मंजूरी सीधे अपने हाथ में ले ली।
इसके अलावा नई परियोजनाओं को रफ्तार देने के लिए उन्होंने निजी के बजाय सरकारी निवेश को बढ़ावा देने का फार्मूला अपनाया। बीओटी के बजाय ईपीसी और एन्यूटी के बजाय हाइब्रिड-एन्यूटी मॉडल की शुरुआत की गई। इससे सड़क क्षेत्र में कुल निवेश तीन गुना बढ़कर 1.58 लाख करोड़ रुपये हो गया। न केवल सड़क मंत्रालय ने सड़कों पर खर्च बढ़ा दिया बल्कि एनएचएआइ को भी ज्यादा कर्ज जुटाने के लिए बाध्य किया। इसके बावजूद मोदी सरकार संतुष्ट नहीं है और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के काम पैनी निगाह रखे हुए हैं।
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘प्रगति’ बैठकों के जरिए हर महीने इन परियोजनाओं की समीक्षा करते हैं। सरकार ने अगले वित्त वर्ष के लिए 67 फीसद ज्यादा अर्थात 16,418 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का लक्ष्य अफसरों को दे दिया है। इसमें से 9698 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग सड़क मंत्रालय, 6000 किलोमीटर एनएचएआइ तथा 720 किलोमीटर एनएचआइडीसीएल द्वारा निर्मित किए जाएंगे।
सरकार ने अब व्यावसायिक स्थलों को जोड़ने के लिए ‘भारतमाला’ और आर्थिक परिवहन को सुगम बनाने के लिए लॉजिस्टिक्स पार्क की श्रृंखला स्थापित करने जैसी महाकाय परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का बीड़ा उठाया है। सड़क निर्माण के काम का अंतर इसी से पता लगता है कि जिस दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर विचार में ही यूपीए सरकार ने दस वर्ष गुजार दिये, मौजूदा सरकार चार वर्षों में उसे आधे मुकाम पर पहुंचा दिया है।
सड़क निर्माण की तेज रफ्तार
रोजाना सड़क निर्माण
2010-14 12 किलोमीटर
2014-18 27 किलोमीटर
सड़क निर्माण पर सरकार का खर्च
2013-14 40425 करोड़ रुपये
2017-18 166709 करोड़ रुपये
कुल सड़क निर्माण
2010-14 16505 किलोमीटर
2014-18 28531 किलोमीटर
ग्रामीण सड़क निर्माण
2010-14 69 किलोमीटर रोजाना
2014-18 134 किलोमीटर रोजाना
राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के ठेके
2013-14 3169 किलोमीटर
2017-18 17055 किलोमीटर