स्विट्जरलैंड का नाम सामने आते ही आम भारतीय के दिल में दो ही बातें आती हैं, पहला, वहां की खूबसूरत वादियों में यश चोपड़ा की रुमानियत से भरी फिल्में और दूसरा, स्विस बैंकों में भारतीयों की ओर से जमा अघोषित अरबों रुपए का कालाधन।
देश में राजनीतिक दल भ्रष्टाचार को खत्म करने और बाहर के देशों में जमा काला धान भारत लाने की बात लगभग हर आम चुनाव में करते रहे हैं। खुद नरेंद्र मोदी ने भी 2014 के आम चुनाव में कालाधन और भ्रष्टाचार को अहम मुद्दा बनाया था। जिसमें उन्हें कामयाबी मिली और केंद्र में सरकार बनाने में सफल रहे थे।
मोदी स्विट्जरलैंड की यात्रा पर हैं और उन्होंने वहां के राष्ट्रपति एलन बर्सेट से मुलाकात भी की है।पीएम नरेंद्र मोदी 2 दिवसीय यात्रा पर स्विट्जरलैंड के शहर दावोस में हैं। जहां वह विश्व आर्थिक मंच में भाग ले रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां गए हैं। तो स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कालेधन की बात याद आना हर किसी को लाजिमी है। बताते चले कि स्विस बैंकों में भारतीयों को ओर से जमा कालेधन के बारे में दोनों देशों के बीच बातचीत कहां तक पहुंची, और अब क्या भारतीय वहां अपना पैसा जमा कर रहे हैं।
In Davos, PM @narendramodi interacted with top CEOs. He spoke about India’s economic development and the investment opportunities in the nation. #IndiaMeansBusiness pic.twitter.com/LmRR28k9xL
— PMO India (@PMOIndia) January 23, 2018
कर संबंधी जानकारी देने का करार
पिछले साल दिसंबर में विदेश में जमा भारतीयों की ओर से काले धन का पता लगाने के लिए भारत ने स्विट्जरलैंड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अनुसार, इस समझौते के तहत इस साल एक जनवरी से दोनों देशों के बीच कर संबंधी सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सकेगा।
सीबीडीटी ने कहा, “स्विट्जरलैंड में संसदीय प्रक्रिया पूरी होने के साथ और आपसी सहमति के करार पर दस्तखत के बाद भारत और स्विट्जरलैंड 2018 में 1 जनवरी से कर चोरी संबंधी सूचनाओं का स्वत: आदान-प्रदान कर सकेंगे.” देश में आयकर के नीति बनाने वाली इस शीर्ष संस्था ने तब कहा था। कि इस करार पर सीबीडीटी के चेयरमैन सुशील चंद्रा तथा भारत में स्विट्जरलैंड के राजदूत एंड्रेयास बाउम ने यहां नार्थ ब्लाक में हस्ताक्षर किए। दोनों देश 2018 से वैश्विक मानदंडों के अनुरूप आंकड़ों का संग्रहण शुरू करेंगे और 2019 से वित्तीय सूचनाओं का स्वचालित तरीके से आदान-प्रदान शुरू हो जाएगा।
गोपनीयता भंग हुई तो करार रद
इससे पहले पिछले साल जून में स्विट्जरलैंड की संघीय परिषद ने भारत और 40 अन्य देशों के साथ बैंकिंग सूचनाओं के स्वचालित आदान-प्रदान की व्यवस्था को मंजूरी दे दी थी। तब परिषद ने कहा था कि ऐसी गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान का क्रियान्वयन 2018 से किया जा सकेगा। हालांकि पिछले साल मार्च में स्विट्जरलैंड ने यह भी चेतावनी दी थी। कि अगर कालेधन की सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान की प्रस्तावित व्यवस्था के तहत गोपनीयता की शर्त को भंग किया गया तो वह सूचना देने के काम को निलंबित कर भी सकता है।
समझौते के आदान-प्रदान के तहत अगर किसी भारतीय का स्विट्जरलैंड के किसी भी बैंक में खाता है। तो बैंक संबंधित व्यक्ति से जुड़ी सारी जानकारी वहां की अथॉरिटी को देगा जो भारत को स्वचालित तरीके से सूचना दे देगा, जिसके आधार पर भारत में उस व्यक्ति के बारे में जानकारी हासिल की जा सकेगी।
स्विस बैंकों में भारतीयों का मोहभंग
हालांकि एक दूसरा पक्ष यह भी है कि स्विट्जरलैंड में जमा कालेधन पर सख्ती की वजह से लोग अब स्विस बैंक में पैसा जमा करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे हैं। पिछले साल आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 2016 में भारतीयों की ओर से महज 4,482 करोड़ रुपए ही जमा कराए गए थे। जो अब तक की मिली जानकारी के मुताबिक किसी एक साल में भारतीयों की ओर से सबसे कम जमा राशि है। जबकि 2015 में भारतीयों ने 8,135 करोड़ रुपए जमा कराए थे।
जबकि 2016 में दुनियाभर से 96 लाख करोड़ रुपए स्विस बैंकों में जमा कराए गए, लेकिन भारतीयों की ओर से यह राशि बेहद कम हो गई। औसत के हिसाब से देखा जाए तो स्विस बैंकों में कुल जमा पैसों में भारतीयों की ओर से महज 0.04 फीसदी राशि ही जमा कराई गई है। साल 2006 में भारतीयों की ओर से 23,000 करोड़ रुपए जमा कराए गए थे।
कालेधन का नया ठीकाना
कालेधन को लेकर सरकार की सख्ती का असर है कि स्विस बैंकों में भारतीयों की ओर से जमा राशि में लगातार कमी आ रही है। पिछले 3 साल में लगातार गिरावट देखने को मिला है।
कालेधन पर मोदी सरकार के सख्त तेवर और स्विट्जरलैंड के साथ पिछले साल हुए करार के बाद अब इस देश में भारतीय कालाधन जमा कराने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। कहा यह भी जा रहा है कि भारतीयों ने कालेधन को ठीकाने लगाने के कई नए रास्ते तलाश लिए हैं।
भारत सरकार को स्विस बैंकों में जमा कालेधन पर नजर तो रखनी ही चाहिए, साथ ही उन विकल्पों को भी तलाशना चाहिए कि भारतीय अपने कालेधन को कहां ठीकाने लगा रहे हैं। भारतीयों के कालेधन को स्वदेश लाना इतना आसान नहीं है, लेकिन सरकार स्विट्जरलैंड की तरह दुनिया के अन्य देशों के साथ करार कर इस पर अंकुश लगाने की संभावना तलाशती रहे तो शायद इसमें कुछ सालों में कामयाबी मिल सकती है।
मोदी और राष्ट्रपति एलन बर्सेट के बीच मुलाकात में कालेधन को लेकर बातचीत की स्थिति साफ नहीं हो सकी है, लेकिन मोदी सरकार अथक प्रयासों के दम पर कालेधन को स्वदेश लाने की योजना में कामयाब हो सकती है।