27 सितंबर 2013 की तारीख भारत की चुनावी प्रक्रिया के इतिहास में एक नई क्रांति लेकर आया था जब सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को मतदान प्रक्रिया में नोटा अर्थात किसी भी उम्मीदवार को वोट ना करने का एक विकल्प देने को कहा था। धीरे धीरे इस नए विकल्प ने अपनी प्रासंगिकता दिखानी शुरू की। साल 2014 के आम चुनाव में, नोटा को कुल 1.1% वोट मिले, जो 6,000,000 से भी अधिक थे। अगर बात हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की करें तो इसमें कुछ राज्यों में तो नोटा ने जीत और हार तय करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के लिये हुई मतगणना में नोटा के विकल्प को भी मतदाताओं ने तमाम क्षेत्रीय दलों से भी ज्यादा तवज्जो दी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी चुनाव परिणाम के अनुसार इन पांचों राज्यों में नोटा को सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में वोट दिए गए। छत्तीसगढ़ में नोटा पर पड़े वोटों का प्रतिशत 2 फीसदी रहा, यहाँ 282744 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया।
अगर बात मध्य प्रदेश और राजस्थान की करें तो यहाँ भी नोटा पर पड़े वोटों की संख्या बहुत बड़ी रही। मध्यप्रदेश में जहाँ 1.5 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को अपनाया तो राजस्थान में ये आंकड़ा 1.3 प्रतिशत रहा। मध्यप्रदेश में कुल 542295 लोगों ने नोटा पर बटन दवाया तो राजस्थान में 467781 लोगों ने नोटा को चुना। ये संख्या बहुत बड़ी है और कई सीटों पर इस संख्या के कारण अंतिम परिणामों का मार्जिन बहुत कम रहा।
अगर अंतिम चुनाव परिणामों की बात करें तो छत्तीसगढ़ में जहाँ कांग्रेस ने भाजपा को बुरी तरह से हराया वहीं राजस्थान में विशेषज्ञों के अनुमानों के विपरीत भाजपा ने सरकार के खिलाफ बहुत ज्यादा एंटी इन्कमवेंसी होने के बावज़ूद अच्छी टक्कर दी। मध्यप्रदेश में तो कांटे की लड़ाई में बीजेपी को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली और दोनों के मध्य सीटों का फर्क महज 5 रहा। हालांकि भाजपा ने मध्य प्रदेश में हार स्वीकार कर ली है, लेकिन लगातार 3 बार सत्ता में रहने के बाद सिर्फ 5 सीटों से पीछे रह जाने का अर्थ है कि भाजपा को जनता ने एकदम से नहीं नकारा है।
चुनाव नतीजों में कांग्रेस और भाजपा के मध्य महज 5 सीटों के अंतर का व्यापक अध्ययन करने पर पता चलता है की यहाँ नोटा ने कई सीटों पर अंतिम नतीजे तय करने में अहम भूमिका निभाई है। बता दें की प्रदेश में कम से कम 11 विधानसभा सीटें ऐसी रही जहां नोटा ने भाजपा के प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ दिया। अगर पूरे प्रदेश के कुल मतों का प्रतिशत देखें तो जहाँ 114 सीटों पर जीतने वाली कांग्रेस को 40.90% मत मिले तो वहीं 109 सीटें लाने वाली भाजपा को 41.00% वोट मिले जो कांग्रेस से 0.1% ज्यादा हैं। आप खुद समझ सकते हैं की 1.5% मत जो नोटा को गए वो अगर भाजपा के पास होते तो परिणाम क्या होता!
इन आंकड़ों से साफ पता चल रहा है कि नोटा का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को सहना पड़ा है और इसका फायदा विपक्षी पार्टियों ने उठाया है। ये वही विपक्षी पार्टियां हैं जो 4 साल पहले तक हर कुछ महीने पर बड़े बड़े घोटालों में संलिप्त पाई जाती थी। 2जी, सीडब्लूजी, कोलगेट, आदर्श जैसे दर्जनों बड़े बड़े घोटालों ने देश को आर्थिक तौर पर खोखला कर दिया था। उन्हीं भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं को अगर नोटा का फायदा मिल रहा है तो ये एक विचारणीय बात है। लोगों को समझना चाहिए कि वो भाजपा से अपना गुस्सा जताने के लिए कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि आज नोटा पर वोट देना मतलब कांग्रेस को फायदा पहुंचाना हो गया है।
यह माना जा सकता है कि कुछ मुद्दों पर लोग केंद्र की मोदी सरकार से नाराज हों, पर इसका यह मतलब तो नहीं की इसके लिए भाजपा की सरकार को हटाकर उस पार्टी को सत्ता दे दी जाए जो घोटालों में लिप्त थी, जिसके सत्ता-काल में हर महीने दो महीने पर देशभर में कहीं ना कहीं आतंकी धमाके होते रहते थे, या जिसके शासन काल में देश को पड़ोसी देशों से डर कर रहना पड़ता था। इन सभी मुद्दों को जब आम आदमी समझ जाएगा तो भूलकर भी वो भाजपा के अलावा किसी को नहीं चुनेगा। नोटा को चुनना मतलब कांग्रेस को चुनना है ये हम जितनी जल्दी समझ लेंगे हमारे देश के लिए उतना ही अच्छा होगा।