प्रसून जोशी – नमस्कार मोदी जी
प्रधानमंत्री – नमस्ते आपको भी और सभी देशवासियों को नमस्कार
प्रसून जोशी – मोदीजी, हम सबको मालूम है आप कितने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर यहां आए हैं और हमने थोड़ा सा समय आपका चुराया है। तो, पहले तो बहुत-बहुत धन्यवाद। मैंने कुछ समय पहले लिखा था भारत के बारे में कि
‘धरती के अंतस: में जो गहरा उतरेगा, उसी के नयनों में जीवन का राग दिखेगा
धरती के अंतस: में जो गहरा उतरेगा, उसी के नयनों में जीवन का राग दिखेगा
जिन पैरों में मिट्टी होगी, धूल सजेगी, उन्हीं के संग-संग इक दिन सारा विश्व चलेगा।‘
‘रेलवे स्टेशन’ से आपका सफर शुरू होता है और आज ‘रॉयल पैलेस’ में आप खास मेहमान बने।
इस सफर को मोदीजी कैसे देखते हैं आप?
प्रधानमंत्री – प्रसून जी मैं सबसे पहले तो आप सबका आभारी हूं कि इतनी बड़ी तादाद में आपके दर्शन करने का मुझे सौभाग्य मिला है और आपने धरती की धूल से अपनी बात को शुरू किया है। आप तो कवि राज हैं तो ‘रेलवे’ से ‘रॉयल पैलेस’, ये तुकबंदी आपके लिए बड़ी सरल है; लेकिन जिंदगी का रास्ता बड़ा कठिन होता है। जहां तक रेलवे स्टेशन की बात है, वो मेरी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी की कहानी है। मेरी जिंदगी के संघर्ष का वो एक स्वर्णिम पृष्ठ है, जिसने मुझे जीना सिखाया, जूझना सिखाया और जिंदगी अपने लिए नहीं, औरों के लिए भी हो सकती है। ये रेल की पटरियों पर दौड़ती हुई और उससे निकलती हुई आवाज से मैंने बचपन से सीखा, समझा; तो वो मेरी अपनी बात है। लेकिन ‘रॉयल पैलेस’, ये नरेन्द्र मोदी का नहीं है। ये मेरी कहानी नहीं है…
प्रसून जी – और जो भावना आपके अंदर….
प्रधानमंत्री – वो ‘रॉयल पैलेस’ सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों के संकल्प का परिणाम है। रेल की पटरी वाला मोदी, ये नरेन्द्र मोदी है। ‘रॉयल पैलेस’ सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों का एक सेवक है, वो नरेन्द्र मोदी नहीं है। और ये भारत के लोकतंत्र की ताकत है, भारत के संविधान का सामर्थ्य है, कि जहां एक ऐसा एहसास होता है, कि वरना जो जगह कुछ परिवारों के लिए रिजर्व रहती है, और लोकतंत्र में अगर जनता-जनार्दन, जो ईश्वर का रूप है; वो फैसला कर ले तो फिर एक चाय बेचने वाला भी उनका प्रतिनिधि बन करके ‘रॉयल पैलेस’ में हाथ मिला सकता है।
प्रसून जी – ये जो व्यक्ति और नरेन्द्र मोदी, जो प्रधानमंत्री, देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, ये दोनों एकमय हो जाते हैं, जब ऐसी जगह में आप होते हैं, या देखते हैं कि मैं एक सफर कर चुका हूं या वो एकरस हो जाता है, सब मिल जाता है, और एक ही व्यक्ति रह जाता है?
प्रधानमंत्री – ऐसा है मैं वहां होता ही नहीं हूं। और मैं तो आदिशंकर के अद्ववैत के उस सिद्धांत को, किसी जमाने से उनसे जुड़ा हुआ था तो मैं जानता हूं कि जहां मैं नहीं, तू ही तू है; जहां द्ववैत नहीं है वहां द्वंद्व नहीं है, और इसलिए जहां द्ववैत नहीं है, और इसलिए मैं मेरे भीतर के उस नरेन्द्र मोदी को ले करके जाता हूं तो शायद मैं देश के साथ अन्याय कर दूंगा। देश के साथ न्याय तब होता है कि मुझे अपने-आपको भुला देना होता है, अपने-आपको मिटा देना होता है। स्वयं को खप जाना होता है और तब जा करके वो पौध खिलता है। बीज भी तो आखिर खप ही जाता है, जो वटवृक्ष को पनपाता है। और इसलिए आपने जो कहा वो मैं अलग तरीके से देखता हूं।
प्रसून जी – लेकिन जब देश की बात आती है तो आप उसको बहुत फोकस होकर देखते हैं और सब लोग आज बदलाव की बात करते हैं। बदलाव पहले सोच में आता है फिर एक्शन में आता है, फिर एक प्रक्रिया से गुजरता है। आपसे बेहतर कौन जान सकता है इस बात को। पर बदलाव अपने साथ एक चीज और लेकर आता है, मोदीजी- अधीरता, आतुरता, बेसब्री, इम्पेशेंस. आइए देखते हैं हमारा क्या मतलब है इस वीडियो में।
मोदीजी, अभी हम सबने देखा था और ट्विटर पर प्रशांत दीक्षित जी हैं, जिन्होंने एक प्रश्न पूछा भी है कि बहुत काम हो रहा है, roads बन रही हैं, रेलवे लाइन्स बिछ रही हैं, घर रफ्तार से बन रहे हैं। वो कहते हैं कि पहले अगर हमें दो कदम चलने की आदत थी, तो मोदीजी अब हम कई गुना ज्यादा चल रहे हैं, पर फिर भी बेसब्री- अभी, अभी, अभी क्यों नहीं … इसे कैसे देखते हैं आप?
प्रधानमंत्री – मैं इसको जरा अलग तरीके से देखता हूं। जिस पल संतोष का भाव पैदा हो जाता है- बहुत हो गया, चलो यार इसी से गुजारा कर लेंगे, तो जिंदगी कभी आगे बढ़ती नहीं है। हर आयु में, हर युग में, हर अवस्था में कुछ न कुछ नया करने का, नया पाने का मकसद गति देता है, वरना तो मैं समझता हूं जिंदगी रुक जाती है। और अगर कोई कहता है कि बेसब्री बुरी चीज है तो मैं समझता हूं कि अब वो बूढ़े हो चुके हैं। मेरी दृष्टि से बेसब्री एक तरुणाई की पहचान भी है और आपने देखा होगा, जिसके घर में साइकिल है उसका मन करता है स्कूटर आ जाए तो अच्छा है; स्कूटर है तो मन करता है यार four wheeler आ जाए तो अच्छा है; ये अगर जज्बा ही नहीं है तो कल साइकिल भी चली जाएगी, तो कहेगा छोड़ो यार बस पर चले जाएंगे; तो वो जिंदगी नहीं है।
और मुझे खुशी है कि आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिल में एक उमंग, उत्साह, आशा, अपेक्षा, ये उभर करके बाहर आ रही है। वरना एक कालखंड था निराशा की एक गर्त में हम डूब गए थे। और ऐसा था, चलो छोड़ो यार, अब कुछ होने वाला नहीं है, होती है, चलती है । और मुझे खुशी है कि हमने एक ऐसा माहौल बनाया है कि लोग हमसे ज्यादा अपेक्षा कर रहे हैं।
आपमें से जो लोग बहुत पहले भारत से निकले होंगे, शायद उनको पता नहीं होगा, लेकिन आज से 15-20 साल पहले जब अकाल की परिस्थिति पैदा होती थी तो गांव के लोग सरकारी दफ्तर में जा करके memorandum देते थे, और क्या मांग करते थे- कि इस बार अकाल हो जाए तो हमारे यहां मिट्टी खोदने का काम जरूर दीजिए, और हम रोड पर मिट्टी डालने का काम करना चाहते हैं ताकि हमारे यहां कच्ची सड़क बन जाए। उस समय उतनी ही बेसब्री थी कि जरा- एक तो अकाल आ जाए, अपेक्षा करते थे, अकाल आ जाए, और मिट्टी के गड्ढे खोदने का काम मिल जाए; और फिर एक रोड पर मिट्टी डालने का अवसर मिल जाए।
आज मेरा अनुभव है, मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री था, जिसके पास single lane road है, तो वो कहता है, अरे क्या मुख्यमंत्री जी, अब डबल रोड बनाइए ना। डबल बना था, अरे साहब, अब तो, ये क्या है, पैबर रोड होना चाहिए, पैबर रोड होना चाहिए।
मुझे बराबर याद है, मैं उच्छल निझर, गुजरात के एक दम आखिरी छोर के तहसील थे, वहां से कुछ ड्राइवर लोग एक बार मुझे मिलने आए। वो कहते हैं हमें पैबर रोड चाहिए। मैंने कहा, यार मैं तुम्हारे इलाके में कभी स्कूटर पर घूम रहा था, मैं बस में आता था। मैं सालों तक जंगलों में काम किया हूं। तुम्हारे यहां तो रोड तो है।
बोले साहब, रोड तो है, लेकिन अब हम केले की खेती करते हैं और केले हमारे एक्सपोर्ट होते हैं। तो इस रोड पर हम जाते हैं तो ट्रक में केले दब जाते हैं। हमारा 20% नुकसान हो जाता है, हमें पैबर रोड चाहिए ताकि हमारे केले को कोई नुकसान न हो। मेरे देश के ट्रैवल के दिल में ये पैदा होना, ये बेसब्री पैदा होना, ये मेरे लिए प्रगति के बीज बोता है। और इसलिए मैं बेसब्री को बुरा नहीं मानता।
दूसरा, आपने परिवार में भी देखा होगा- तीन अगर बेटे हैं- मां-बाप तीनों को प्यार करते हैं। लेकिन काम होता है तो एक को कहते हैं, अरे यार जरा देख लो। जो करेगा, उसी को तो कहेंगे ना। अगर आज, आज देश मुझसे ज्यादा अपेक्षा रखता है, इसलिए रखता है कि उनको भरोसा है, यार, आज नहीं तो कल, उसके दिमाग में भर दो, कभी तो करके रहेगा ही।
तो मैं समझता हूं कि- और ये बात सही है कि देश ने कभी सोचा नहीं था कि ये देश इतनी तेज गति से काम कर सकता है। वरना मान लिया था, पहले incremental change हो जाए तो भी संतोष हो जाता था, यार, चलो यार हो गया। अब उसको नहीं होता है, उसको होता है, अरे साहब, और पहले एक दिन में जितने रास्ते बनते थे, अब करीब-करीब तीन गुना हम बना रहे हैं, पहले जितना काम एक दिन में होता था, वो आज तीन गुना होने लगा है। रेल की पटरी डालनी हो, रेल की डबल लाइन करनी हो, solar energy लगानी हो, टॉयलेट बनाने का काम हो, हर चीज में। और इसलिए स्वाभाविक है कि देशवासियों को अपेक्षा है क्योंकि भरोसा है।
प्रसून जी – जी, तो ऐसा लगता है कि जब पहले रोड उन तक पहुंचती है और जब उन तक रोड पहुंच जाती है तो वो दुनिया तक पहुंचना चाहते हैं। तो ये आशाएं एक तरफ आप जगाने की बात करते हैं और इस बेसब्री को आपने बखूबी समझा और उसकी जो positive side है कि किस तरह से वो बेसब्री जो है, वो द्योतक है आगे बढ़ने की भावना का, वो आपने हमें समझाया।
मोदीजी, लोगों की बेसब्री तो एक तरफ है, लेकिन क्या कभी आप बेसब्र हो जाते हैं, सरकारी व्यवस्था जिसके साथ आप का काम करते हैं। सरकारी कामकाज के तरीकों से, या कभी निराशा होती है कि चीजें मोदीजी के हिसाब से, उस स्पीड से नहीं चल रही हैं? वो बुलेट ट्रेन की स्पीड से, जिस तरह से आपके मन में घटित होती?
प्रधानमंत्री – मुझे पता नहीं था कि कवि के भीतर भी कोई पत्रकार बैठा होता है। मैं मानता हूं जिस दिन मेरी बेसब्री खत्म हो जाएगी, उस दिन मैं इस देश के काम नहीं आऊंगा। मैं चाहता हूं मेरे भीतर वो बेसब्री बनी रहनी चाहिए, क्योंकि वो मेरी ऊर्जा है, वो मुझे ताकत देती है, मुझ दौड़ाती है। हर शाम सोता हूं तो दूसरे दिन का सपना ले करके सोता हूं और सुबह उठता हूं तो लग पड़ता हूं।
जहां तक निराशा का सवाल है, मैं समझता हूं कि जब खुद के लिए कुछ लेना, पाना, बनना होता है, तब वो आशा और निराशा से जुड जाता है। लेकिन जब आप ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ इस संकल्प को ले करके चलते हैं; मैं समझता हूं कि निराश कभी होने का कारण नहीं बनता है।
कुछ लोगों को कभी लगता है, छोड़ो यार कुछ होने वाला नहीं है, सरकार बेकार है, नियम बेकार हैं, कानून बेकार है, ब्यूरोक्रेसी बेकार है, तौर-तरीके बेकार हैं; आपको ऐसे एक set of person मिलेंगे जो यही बातें बताते हैं। मैं दूसरे प्रकार का इंसान हूं। मैं कभी-कभी कहता था, अगर एक गिलास में आधा भरा हुआ है- तो एक व्यक्ति मिलेगा जो कहेगा गिलास आधा है, दूसरा कहेगा गिलास आधा भरा हुआ है, एक कहेगा- आधा खाली है। मुझे कोई पूछता है तो मैं कहता हूं- आधा पानी से भरा है, आधा हवा से भरा है।
और इसलिए, अब आप देखिए, वही सरकार, वही कानून, वही ब्यूरोक्रेट, वही तौर-तरीके; उसके बावजूद भी अगर चार साल का लेखा-जोखा लेंगे और आखिरकार आपको; मैं किसी दूसरी सरकार की आलोचना करने के लिए मंच का उपयोग नहीं करूंगा, और मुझे करना भी नहीं चाहिए। लेकिन समझने के लिए comparative study के लिए आवश्यक होता है कि भई गत दस साल में काम किस प्रकार से होता था उसको देखेंगे तब पता चलेगा कि चार साल में कैसे हुआ। तो आपको ध्यान में आएगा कि तब की निर्णय प्रक्रियाएं, आज की निर्णय प्रक्रियाएं; तब के एक्शन, आज के एक्शन; आपको आसमान-जमीन का अंतर दिखेगा। मतलब ये हुआ कि इन्हीं व्यवस्थाओं से, अगर आपके पास नीति स्पष्ट हो, नीयत साफ हो, इरादे नेक हों और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ करने का इरादा हो तो इसी व्यवस्था के तहत आप इच्छित परिणाम ले सकते हैं।
ये मूलभूत मेरी सोच होने के कारण, ये तो है ही नहीं कि मैं जो चाहूं वो सब होता है, लेकिन नहीं भी होता है तो मैं निराश नहीं होता हूं क्योंकि मैं सोचता हूं क्यों नहीं हुआ, आगे इसको करने का रास्ता- मैं इस तरफ गया था, जरा नए तरीके से करूंगा, मैं करके रहता हूं।
प्रसून जी – मोदीजी, यहां पर हम एक सवाल लेना चाहते हैं जो वीडियो के माध्यम से हम देखेंगे। प्रियंका वर्मा जी हैं दिल्ली से, वो, उन्होंने एक सवाल आपके लिए भेजा है। देखते हैं-
प्रियंका – मोदीजी, I am प्रियंका from Delhi, और मेरा भी आपसे एक सवाल है कि हम Government क्यों choose करते हैं ताकि सरकार हमारे लिए काम कर सके। लेकिन जब से आप आए हैं तब से तो सिस्टम बिल्कुल बदल ही गया है। आपने तो सरकार के साथ-साथ हम जैसे लोगों को भी काम पर लगा दिया है, जो कि बहुत अच्छी बात है। पर मेरा आपसे एक सवाल है कि ऐसा पहले क्यों नहीं होता था? Thank You.
प्रसून जी – ये जो सवाल पूछ रहीं हैं कि आप लोगों से लोगों को जोड़ते हैं, सरकार के काम के साथ। और चाहे वो गैस सब्सिडी की बात हो; कई चीजों में आप एक अपेक्षा रखते हैं जनता से, तो ये किस तरह का एक आपका?
प्रधानमंत्री – प्रियंका ने बहुत अच्छा सवाल पूछा है और देखिए आप eighteen fifty seven से ले लीजिए 1947 तक। उसके पहले भी जा सकते हैं लेकिन मैं eighteen fifty seven पर जाता हूं। जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ 1857 का। आप कोई भी साल उठा लीजिए, सौ साल में कोई भी साल उठा लीजिए, हिन्दुस्तान का कोई भी कोना उठा लीजिए। कोई न कोई देश की आजादी के लिए शहीद हुआ है, देश की आजादी के लिए मर-मिटने के लिए कुछ न कुछ किया है, किसी न किसी नौजवान ने अपनी जिंदगी जेल में बिता दी है। मतलब आजादी का संघर्ष किसी भी समय, किसी भी कोने में रुका नहीं था। लोग आते थे, भिड़ते थे, शहादत मोल लेते थे, आजादी की बात चलती रहती थी।
लेकिन महात्मा गांधी ने क्या किया? महात्मा गांधी ने इस पूरी भावना को एक नया रूप दे दिया। उन्होंने जन-सामान्य को जोड़ा। सामान्य से सामान्य व्यक्ति को कहते थे अच्छा भाई तुम्हें देश की आजादी चाहिए ना? ऐसा करो- तुम झाडू़ ले करके सफाई करो, देश को आजादी मिलेगी। तुम्हें आजादी चाहिए ना? तुम टीचर हो, अच्छी तरह बच्चों को पढ़ाओ, देश को आजादी मिलेगी। तुम प्रौढ़ शिक्षा कर सकते हो, करो। तुम खादी का काम कर सकते हो, करो। तुम नौजवानों को मिला करके प्रभात फेरी निकाल सकते हो, निकालो।
महात्मा गांधी ने आजादी को जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। जन-सामान्य को उसकी क्षमता के अनुसार काम दे दिया। तुम रेटियां ले करके बैठ जाओ, सूत कातो, देश को आजादी मिल जाएगी। और लोगों को भरोसा हो गया, हां यार, आजादी इससे भी आ सकती है।
मैं समझता हूं कि मरने वालों की कमी नहीं थी, देश के लिए मर-मिटने वालों की नहीं थी, लेकिन वो आते थे शहीद हो जाते थे, फिर कोई नया खड़ा होता था, शहीद हो जाता था।
गांधीजी ने एक साथ हिन्दुस्तान के हर कोने में कोटि-कोटि जनों को खड़ा कर दिया जिसके कारण आजादी प्राप्त करना सरल हो गया। विकास भी, मैं मानता हूं जन-आंदोलन बन जाना चाहिए। अगर ये कोई सोचता है कि सरकार देश बदल देगी, सरकार विकास कर देगी; आजादी के बाद एक ऐसा माहौल बन गया, आजाद हो गए, सब सरकार करेगी। गांव में एक गड्ढा भी हो, गड्ढा हुआ हो तो गांव के लोग मिलेंगे, memorandum तैयार करेंगे, एक जीप किराये पर लेंगे, तहसील के अंदर जाएंगे, memorandum देंगे। जीप किराये पर करने के खर्चे में चाहते तो वो गड्ढा भर जाता, लेकिन अब वो सरकार करेगी।
आजादी के बाद एक माहौल बन गया, से सब कौन करेगा, सरकार करेगी। इसके कारण धीरे-धीरे क्या हुआ, जनता और सरकार के बीच दूरी बढ़ती गई। आपने देखा- बस में भी कोई जाता है, आप लोगों ने अनुभव किया होगा- बस में अकेला बैठा है, अगल-बगल में कोई पैसेंजर नहीं है, रास्ता काटना है तो वो क्या करता है- वो सीट के अंदर अंगुली डालता है। उसके अंदर एक छेद कर देता है, और धीरे-धीरे-धीरे उसको काटता रहता है बैठा-बैठा, ऐसे कुछ नहीं। लेकिन जिस पल उसको पता चले कि ये बस सरकार की है मतलब मेरी है, ये सरकार मेरी है, देश मेरा है, ये भाव लुप्त हो चुका है।
मैं चाहता हूं कि देश में ये भाव बहुत प्रबल होना चाहिए। दूसरा, लोकतंत्र, ये कोई contract agreement नहीं है कि मैंने आज ठप्पा मारा, वोट दे दिया, अब पांच साल बेटे काम करो, पांच साल के बाद पूछूंगा क्या किया है और न तो दूसरे को ले आऊंगा। ये labour contract नहीं है। ये भागीदारी का काम है और इसलिए मैं मानता हूं कि participative democracy, इस पर बल देना चाहिए। और आपने अनुभव किया होगा जब natural calamity होती है, सरकार से ज्यादा समाज की शक्ति लग जाती है और हम कुछ ही पलों में कि वो समस्या के समाधान निकालने में ताकत आ जाती है, क्यों? जनता-जनार्दन की ताकत बहुत होती है। लोकतंत्र में जनता पर जितना भरोसा करेंगे, जनता को जितना ज्यादा जोड़ेंगे, परिणाम मिलेगा।
सरकार बनने के बाद मैंने टॉयलेट बनाने का अभियान चलाया। आप कल्पना करें सरकार बना पाती? सरकार तो पहले पांच हजार बनाती होगी अब दस हजार बना लेती। कहेगी अरे पुरानी सरकार पांच हजार बनाती थी मोदी की दस हजार। दस हजार से काम कब पूरा होगा भाई? जनता ने उठा लिया, काम पूरा हो गया।
और जनता की ताकत देखिए, भारत में सीनियर सिटिजन के लिए रेलवे के अंदर concession है टिकटों में। मैंने आ करके सरकार में कहा कि भाई अंदर लिखो तो सही, आप जो रिजर्वेशन के लिए फॉर्म भरते हो, लिखो तो सही कि भई मैं सीनियर सिटिजन हूं, मुझे बेनिफिट मिलता है, लेकिन मैं मेरा बेनिफिट जाने देना चाहता हूं। सिम्पल सा था, प्रधानमंत्री के लेवल पर मैंने कभी अपील भी नहीं की थी। आप सबको आश्चर्य होगा, जो हिन्दुस्तान की विशेषता देखी है, हिन्दुस्तान के सामान्य मानवी की देशभक्ति देखी है, अभी-अभी हमने ये निर्णय किया था, अब तक 40 लाख senior citizens, जो एसी में ट्रैवल करने वाले लोग हैं, उन्होंने voluntarily subsidy नहीं लेंगे, ऐसा लिख करके दिया और वो पूरी टिकट ले करके जाते थे।
अगर मैं कानूनन करता कि आप सीनियर सिटिजन को किसी कोच में ये बेनिफिट बंद तो जुलूस निकलता, पुतले जलते और फिर? फिर popularity rating आता, मोदी गिर गया। ये दुकान चल जाती। लेकिन आपने देखा होगा 40 लाख लोग।
मैंने एक दिन लालकिले पर से कहा- कि जो afford करते हैं, उनको गैस सब्सिडी क्यों लेनी चाहिए? हमारे देश में गैस सिलेंडर की संख्या के आधार पर चुनाव लड़े जाते थे। कोई कहते थे कि मुझे प्रधानमंत्री बनाइए, अभी 9 सिलेंडर मिलते हैं, मैं 12 सिलेंडर दूंगा; ये घोषणा की गई थी 2014 में। मैंने लोगों को उलटा कहा, मैंने कहा भाई जरूरत नहीं है तो छोड़ दीजिए ना सब्सिडी, क्या जरूरत है। और आप हैरान हो जाएंगे, हिन्दुस्तान के करीब-करीब सवा करोड़ से ज्यादा परिवारों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी। देश में ईमानदार लोगों की कमी नहीं है। देश के लिए जीने-मरने वाले, कुछ न कुछ करने वालों की कमी नहीं है।
हम लोगों का काम है देश के सामर्थ्य को समझना, उनको जोड़ना और मेरी ये कोशिश है कि हमने, सरकार ने ही देश चलाना है, ये सरकार को जो अहंकार है, उस अहंकार को सरकारों ने छोड़ देना चाहिए। जनता-जनार्दन ही शक्ति हैं, उनको ले करके चलें। हम चाहें, वैसा परिणाम जनता ला करके दे देगी और इसलिए मैं जनता के साथ मिल करके काम करने के विचार को ले करके आगे बढ़ रहा हूं।
प्रसून जी –वाह, मोदीजी, दो लाइने वो पुरानी याद आ रही हैं, जो ये सरकार और जनता के बीच की दूरी जो हो गई थी-
कि हम नीची नजर करके देखत हैं चरण तुमरे, तुम जाइके बैठे हो इक ऊंची अटरिया मां।
प्रधानमंत्री – मैं तो जनता-जनार्दन से यही प्रार्थना करूंगा कि आप हमें आशीर्वाद दीजिए, कम से कम मुझे वो आदत न आ जाए।
प्रसून जी – मोदीजी बिल्कुल ये। ये एक सवाल हम लेते हैं इसके बाद आते हैं। आप अभी, जी-जी जरूर आप कहिए-
दर्शकों में से एक सवाल की हमें रिक्वेसट थी- श्री मयूरेश ओझानी जी एक प्रश्न पूछना चाहते हैं। मयूरेश ओझानी जी अपना सवाल पूछें। कृपया इस तरफ आएं।
प्रश्नकर्ता – नमस्ते जी, मोदी जी। जब आपने सर्जिकल स्ट्राइक करने का अति महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक और हिम्मतभरा कदम लिया था तब आपके मन में कैसी भावना उछल रही थी?
प्रसून जी –सर्जिकल स्ट्राइक पर आपका सवाल है।
प्रधानमंत्री – मैं आपका आभारी हूं कि आप वाणी से अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पा रहे हैं लेकिन आपने एक्शन से अपनी भावनाओं को प्रकट किया और शब्दों से आपके साथी ने मुझे बात को पहुंचाया। एक तो ये दृश्य अपने-आप में हृदय को छूने वाला है, it touched me. भगवान रामचंद्र जी और लक्ष्मण का जो संवाद है, लंका छोडते समय, तब भी उन सिद्धांतों को हमने देखा है। लेकिन जब कोई टेरेरिज्म एक्सपोर्ट करने का उद्योग बना करके बैठा हो, मेरे देश के निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया जाता हो, युद्ध लड़ने की ताकत नहीं है, पीठ पर प्रयास करने के वार होते हों; तो ये मोदी है, उसी भाषा में जवाब देना जानता है।
हमारे जवानों को, टैंट में सोए हुए थे रात में, कुछ बुजदिल आकर उनको मौत के घाट उतार दें? आप में से कोई चाहेगा मैं चुप रहूं? क्या उनको ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए कि नहीं देना चाहिए? और इसलिए सर्जिकल स्ट्राइक किया और मुझे मेरी सेना पर गर्व है, मेरे जवानों पर गर्व है। जो योजना बनी थी, उसको शत-प्रतिशत ..कोई भर गलती किए बिना उन्होंने implement किया और सूर्योदय होने से पहले सब वापिस लौट कर आ गए। और हमारी नेकदिली देखिए- मैंने हमारे अफसर जो इसको ऑपरेट कर रहे थे, उन्हें कहा, कि आप हिन्दुस्तान को पता चले उससे पहले, मीडिया वहां पहुंचे उससे पहले, पाकिस्तान की फौज को फोन करके बता दो कि आज रात हमने ये किया है, ये लाशें वहां पड़ी होंगी, तुम्हें समय हो तो जा करके ले आओ।
हम सुबह 11 बजे से उनको फोन लगाने की कोशिश कर रहे थे, फोन पर आने से डरते थे, आ नहीं रहे थे। मैं इधर पत्रकारों को बुला करके रखा हुआ था, हमारे आर्मी अफसर खड़े थे, पत्रकारों को आश्चर्य हो रहा था कि क्या बात है हमको बुलाया है, कोई बता नहीं रहे हैं।
मैंने कहा, पत्रकार बैठे हैं उनको बिठाइए, थोड़े वो नाराज हो जाएंगे, लेकिन सबसे पहले पाकिस्तान से बात करो, हमने किया है; छुपाया नहीं हमने। 12 बजे वो टेलीफोन पर आए, उनसे बात हुई, उनको बताया गया- ऐसा-ऐसा हुआ है और हमने किया है, और तब जा करके हमने हिन्दुस्तान के मीडिया को और दुनिया को बताया कि भारत की भारत की सेना का ये अधिकार था न्याय को प्राप्त करने का और हमने किया। तो सर्जिकल स्ट्राइक, ये भारत के वीरों का तो पराक्रम था ही था, लेकिन टेरेरिज्म एक्सपोर्ट करने वालों को पता होना चाहिए कि अब हिन्दुस्तान बदल चुका है।
प्रसून जी – मोदीजी, जब आपने वीरता की बात की, सेना की बात की। सेना के इतने त्याग के बाद भी वहां पर हम राजनीति का प्रवेश होता देखते हैं। सेना की वीरता पर लोग प्रश्नचिन्ह लगाने को तैयार हो जाते हैं। ये, इसको कैसे देखते हैं आप?
प्रधानमंत्री – देखिए, फिर एक बार मैं इस मंच का उपयोग राजनीतिक प्रतिद्वद्वियों के लिए आलोचना करने के लिए उपयोग करना नहीं चाहता हूं। मैं इतना ही कहूंगा- ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे।
प्रसून जी – मोदीजी, ये तो बात हुई, हमने बदलाव की की, बेसब्री की की। कहते है जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। कवि होने के नाते नहीं कह रहा हूं। सच्ची प्रगति वही है जो सब तक पहुंचे। कोई भी सभ्यता- आपने अभी कहा। जिस तरह से आपने बुजुर्गों की बात की, व्यंग्य की बात की। कोई भी सभ्यता स्वयं पर गर्व नहीं कर सकती अगर वो समाज के vulnerable ends का ध्यान नहीं रख पाती है।
कार्यक्रम के इस हिस्से में हम बात करना चाहते हैं उन वर्गों की जो शायद होकर भी हमें नहीं दिखाई देते थे। बड़ी-बड़ी योजनाओं के शोर में जिनके हित कहीं खो जाते थे। जैसे ढोल के स्वर में बांसुरी का स्वर कहीं मंथर लगता है। आइए, कुछ images देखते हैं।
मोदीजी, आपने लालकिले से पहली बार टॉयलेट जैसे मुद्दे पर बात की। किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार ऐसे अहम मुद्दे को, पर जो छोटा लगने वाला, छोटा दिखने वाला मुद्दा हो, पर बहुत अहम हो, उसे प्राथमिकता दी, ये हमने देखा। ये जो प्राथमिकताएं बदली हैं, ये प्राथमिकताएं जो आप decide करते हैं, ये किस तरह decide करते हैं, और ये issues कैसे ऊपर आए?
प्रधानमंत्री – देखिए, मैं ये तो नहीं कहूंगा कि आजादी के 70 साल में किसी सरकार का इन विषयों पर ध्यान ही नहीं था, ये कहना तो उनके साथ अन्याय होगा। तो मैं उस प्रकार से बात करता नहीं हूं और मैंने तो लालकिले से ये भी कहा था कि आज हिन्दुस्तान जहां है वहां देश आजाद होने से लेकर सभी सरकारों का, सभी प्रधानमंत्रियों का, सभी राज्य सरकारों का, सभी मुख्यमंत्रियों का, हर जन-प्रतिनिधि का कोई न कोई योगदान है- ये मैंने लालकिले पर से कहा था और मैं इसको मानता हूं। लेकिन क्या कारण है कि इतनी योजनाएं हैं, इतना धन खर्च हो रहा है, सामान्य मानवी की जिंदगी में बदलाव क्यों नहीं आता है?
महात्मा गांधी ने हम लोगों को एक सिद्धांत दिया था और मैं समझता हूं किसी भी developing country के लिए इससे बढ़िया कोई सिद्धांत नहीं हो सकता है। महात्मा गांधी ने कहा था, कोई भी नीति बनाएं तो उस तराजू से तोलिए कि उसका जो आखिरी छोर पर बैठा हुआ इंसान है, उसकी जिंदगी में उस नीति का क्या प्रभाव होगा। मुझे महात्मा गांधी की ये बात मेरे गले उतर गई है कि हम नीतियां कितनी ही बढ़ाएं, बड़ी-बड़ी बात करें, लेकिन भाई जिसके लिए बना रहे हैं, वो समाज का आखिरी छोर का व्यक्ति, उस पर पहुंचने में हम कहां जा रहे हैं।
मैं जानता हूं मैंने ऐसे कठिन काम सिर पर लिए हैं, हो सकता है उन्हीं मेरे कामों को कोई negative point भी कर सकता है, लेकिन क्या इसलिए इन कामों को छोड़ देना चाहिए क्या? गरीब जहां पड़ा है पड़े रहने देना चाहिए क्या? और तब जा करके आप मुझे कल्पना कर सकते हैं जब किसी छोटी बालिका पर बलात्कार होता है कितनी दर्दनाक घटना है जी। लेकिन क्या हम ये कहेंगे कि तुम्हारी सरकार में इतने होते थे, मेरी सरकार में इतने होते हैं? मैं समझता हूं इससे बड़ा गलत रास्ता नहीं हो सकता है। बलात्कार, बलात्कार होता है, एक बेटी के साथ ये अत्याचार कैसे सहन कर सकते हैं? और इसलिए मैंने लालकिले पर से नए तरीके से इस विषय को पेश किया था। मैंने कहा अगर बेटी शाम को देर से आती है तो हर मां-बाप पूछते हैं, कहां गई थी? क्यों गई थी? किसको मिली थी? फोन पर बात करते हुए मां देखती है, हे-बात बंद करो, किससे बात कर रही हो? क्यों बात कर रही हो?
अरे भाई, बेटियों को तो सब पूछ रहे हो, कभी बेटों को भी तो पूछो, कहां गए थे? ये बात मैंने लालकिले से कही थी। और मैं मानता हूं ये बुराई समाज की है, व्यक्ति की है, विकृति है, सब होने के बावजूद भी देश के लिए चिंता का विषय है। और ये पाप करने वाला किसी का तो बेटा है। उसके घर में भी तो मां है।
उसी प्रकार से आप कल्पना कर सकते हैं कि आजादी के इतने सालों के बाद भारत में sanitation का कवर 35-40 percent के आसपास था। क्या आज भी हमारी माताओं-बहनों को, क्योंकि मैं, देखिए ये चीजें, का एक और कारण भी है- मुझे किताब पढ़के गरीबी सीखनी नहीं पड़ रही है। मुझे टीवी के पर्दे पर गरीबी का अहसास करना नहीं है, मैं वो जिंदगी को जी करके आया हूं। गरीबी क्या होती है, पिछड़ापन क्या होता है, गरीबी की जिंदगी से कैसी जद्दोजहद होती है, वो मैं देखकर आया हूं।
और इसलिए, इसलिए मैं मन से मानता हूं- राजनीति अपनी जगह पर है, मेरी समाज नीति कहो, मेरी राष्ट्रनीति कहो, मुझे कहती हैं कि इनकी जिंदगी में कुछ तो बदलाव लाऊं मैं। और तब जाकर मैंने लालकिले से कहा कि हम 18 हजार गांव, जहां अभी तक बिजली नहीं पहुंची है, इसका मतलब बाकी गांवों में पहुंची है। जिन्होंने पहुंचाई है उनको सौ-सौ सलाम। लेकिन 70 साल के बाद 18 हजार में न पहुंचना, ये भी तो जिम्मेवारी हम लोगों को लेनी चाहिए।
और मैंने सरकारी दफ्तर से कहा, मैंने कहा- कब करोगे भाई? तो किसी ने कहा सात साल लगेंगे। मैंने कहा- मैं सात साल इंतजार नहीं कर सकता। और मैंने लालकिले से घोषणा कर दी- मैं 1000 दिन में काम पूरा करना चाहता हूं। कठिन काम था, दुर्गम इलाके थे, कहीं तो एक्सट्रीमिस्ट लोग, माओवादियों का इलाका था। 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाने का काम करीब-करीब पूरा हुआ। अब शायद डेढ़ सौ, पौने दो सो गांव बाकी हैं।, काम चल रहा है।
आप कल्पना कर सकते हैं कि गरीब मां शौचालय जाने के लिए सूर्योदय से पहले जंगल जाने के लिए सोचती हैं और दिन में कभी जाना पड़े, शारीरिक पीड़ा सहती हैं लेकिन सूरज ढलने तक का इंतजार करती हैं। वो शौचालय के लिए नहीं जाती हैं। उस मां को कितनी पीड़ा होती होगी? कितना दर्द होता होगा? उसके शरीर पर कैसा जुल्म होता होगा? क्या हम टॉयलेट नहीं बना सकते? ये सवाल मुझे सोने नहीं देते थे। और तब जा करके मुझे लगा कि मैं लालकिले पर से जा करके अपनी भावनाओं को बिना लाग-लपेट बता दूंगा, जिम्मेदारी बहुत बड़ी होगी। लेकिन मैंने देखा कि देश ने बहुत response दे दिया। जो मेरा करीब, आज तीन लाख गांव open defecation free हो गए और काम तेजी से चल रहा है। और इसलिए last mile delivery, ये लोकतंत्र में सरकारों की प्राथमिक जिम्मेवारी है।
और इसी प्रकार अभी जैसे मैंने एक बीड़ा उठाया है- पहले उठाया बीड़ा, गांव में बिजली पहुंचाऊंगा। अब बीड़ा उठाया है घर में बिजली पहुंचाऊंगा। चार करोड़ परिवार ऐसे हैं। भारत में टोटल 25 करोड़ परिवार हैं, सवा सौ करोड़ जनसंख्या है लेकिन करीब-करीब 25 करोड़ परिवार हैं। आजादी के 70 साल बाद चार करोड़ परिवारों में आज भी 18वीं शताब्दी की जिंदगी है। वो दीया जला करके गुजारा करते हैं।
मैंने बीड़ा उठाया है। सौभाग्य योजना के तहत मुफ्त में उन चार करोड़ परिवारों में बिजली का कनेक्शन दूंगा। उनके बच्चे बिजली में पढ़ेंगे, उनके घर में अगर कम्प्यूटर चलाना है, मोबाइल चार्ज करना है तो दुनिया से जुड़ेंगे। टीवी लाने का खर्चा मिल जाएगा तो टीवी देखेंगे, बदलती हुई दुनिया देखेंगे। वो दुनिया के साथ जुड़ने के लिए उनके अंदर भी बेसब्री मुझे पैदा करनी है। उनके अंदर वो बेसब्री पैदा करनी है ताकि वो भी कुछ करने के लिए मेरे साथ जुड़ जाएं और वही तो empowerment है। मैं गरीबों का empowerment करके गरीबी से लड़ाई लड़ने के लिए मेरे साथियों की एक नई फौज तैयार करना चाहता हूं, जो फौज गरीबों से निकली होगी और गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ेगी और तब जा करके गरीबी मिटेगी। गरीबी हटाओ के नारे से नहीं होता है।
प्रसून जी – मोदीजी, आप पूरी मेहनत कर रहे हैं, ये सब मानते हैं पर क्या अकेले आप देश बदल पाएंगे?
प्रधानमंत्री – देखिए, मैं मेहनत करता हूं, ये बात आपने कही, मैं समझता हूं देश में इस विषय में कोई विवाद नहीं है। मैं मेहनत करता हूं ये मुद्दा ही नहीं है; अगर न करता तो मुद्दा है। मेरे पास पूंजी है प्रमाणिकता। मेरे पास पूंजी है मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का प्यार और इसलिए मुझे ज्यादा से ज्यादा मेहनत करनी चाहिए। और मैं देशवासियों को कहना चाहूंगा कि मैं भी आपके जैसा ही एक सामान्य नागरिक हूं। मुझमें वो सारी कमियां हैं जो एक सामान्य मानवी में होती हैं।
कोई मुझे अलग न समझो। आप मुझे अपने जैसा ही मान लो, और हकीकत है। मैं किस जगह पर बैठा हूं, वो तो एक व्यवस्था का हिस्सा है, लेकिन मैं वही हूं जो आप हैं। आपसे मैं अलग नहीं हूं। मेरे भीतर एक विद्यार्थी है। और मैं, मेरे शिक्षकों का बहुत आभारी हूं कि बचपन में मुझे उन्होंने ये रास्ता सिखाया कि मेरे भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं दिया। और मुझे जो दायित्व मिलता है उसे मैं सीखने की कोशिश करता हूं, समझने की कोशिश करता हूं। गलतियां नहीं होंगी, मैं जब चुनाव लड़ रहा था तो मैंने देशवासियों को कहा था, कि मेरे पास अनुभव नहीं है। मुझसे गलतियां हो सकती हैं। लेकिन मैंने देशवासियों को विश्वास दिया था कि मैं गलतियां कर सकता हूं लेकिन बदइरादे से गलत कभी नहीं करूंगा।
लंबे समय तक longest service chief minister के रूप में गुजरात में काम करने का मौका मिला, अब चार साल होने आए हैं, प्रधानमंत्री का, प्रधान सेवक का काम मुझे मिल गया है। लेकिन गलत इरादे से कोई काम नहीं करूंगा, मैंने देश को वादा किया है।
अब सवाल ये है, मैंने कभी नहीं सोचा है कि देश मैं बदल दूंगा, ये कभी नहीं सोचा है। लेकिन मेरे भीतर एक भरपूर विश्वास पड़ा है कि मेरे देश में अगर लाखों समस्याएं हैं तो सवा सौ करोड़ समाधान भी हैं। अगर मिलियन problems हैं तो बिलियन solutions भी हैं। सवा सौ करोड़ देशवासियों की शक्ति पर मेरा भरोसा है और मैंने अनुभव किया है कि कोई कल्पना कर सकता है- नोटबंदी। आप अगर टीवी खोल करके देखोगे तो नोटबंदी मतलब मुझे अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति मिले थे तो वो कह रहे थे मोदीजी- मेरे अच्छे दोस्त हैं। बोले मैं और मेरी पत्नी बात कर रहे थे कि मेरा दोस्त गया। मैंने कहा, क्यों, क्या हुआ? अरे, बोले यार तुमने जब नोटबंदी की, तो क्योंकि वेनेजुएला में उसी समय चल रहा था, उनके पड़ोसी हैं लोग तो उनको पता था।
तो बोले, मेरी पत्नी और हम दोनों चर्चा करते थे कि मेरा दोस्त गया। Eighty six percent currency कारोबारी व्यवस्था से बाहर हो जाए, टीवी के पर्दे पर लगातार सरकार के खिलाफ धुंआधार आक्रमण हो, लेकिन ये देशवासियों के प्रति मेरा भरोसा था, क्योंकि देश, मेरा देश ईमानदारी के लिए जूझ रहा है। मेरा सामान्य देश का नागरिक र्इमानदारी के लिए कष्ट झेलने को तैयार है, करने को तैयार है। अगर ये मेरे देश की ताकत है तो मुझे उस ताकत के अनुरूप अपनी जिंदगी को ढालना चाहिए। और उसी का नतीजा है कि आज जितने भी परिणाम आप देखते हैं, मोदी तो निमित्त है और actually मोदी की जरूरत है यहां। जरूरत क्या है, किसी को भी पत्थर मारना है तो मारेंगे किसको भाई? किसी को कूड़ा-कचरा फैंकना है तो फेंकेंगे कहां जी? किसी को गालियां देनी हैं तो देंगे किसको?
तो मैं अपने-आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों पर कोई पत्थर नहीं पड़ रहे हैं, कोई कीचड़ नहीं उछाल रहा, कोई गालियां नहीं दे रहा है। मैं अकेला हूं, लेता रहता हूं, झेलता रहता हूं। और मैं आपकी तरह कवि तो नहीं हूं लेकिन हर युग में कोई न कोई कुछ तो लिखते ही रहते हैं। आपमें से सबने लिखा होगा। लेकिन हम सब कवि नहीं बन सकते। वो तो प्रसून ही बन सकते हैं। लेकिन मैंने कभी लिखा था।
प्रसून जी – जी
प्रधानमंत्री – क्योंक मैं ऐसी जिंदगी गुजार करके आया हूं तो मेरी जिंदगी में ये सब झेलना बड़ा स्वाभाविक था। हम ठोकरे खाते-खाते आए हैं जी। बहुत प्रकार की परेशानियों से निकल करके आए हैं तो मैंने लिखा था कि जो लोग मुझे – मुझे पूरी कविता के शब्द आज याद नहीं लेकिन किसी को रुचि होगी तो मेरी एक किताब है जरूर आप देख लेना। मैंने उसमें लिखा था-
‘’जो लोग मुझे पत्थर फेंकते हैं मैं उन पत्थरों से ही पक्थी बना देता हूं और उसी पक्थी पर चढ़ करके आगे चलता हूं।‘’
और इसलिए मेरा concept रहा है Team India, सिर्फ सरकार में बैठे हुए लोग नहीं। ब्यूरोक्र्रेसी है, राज्य सरकार है, federal structure के लिए मेरी बहुत बड़ी प्राथमिकता है। Co-operative federalism को मैंने competitive co-operative federalism की दिशा में ले जाने का प्रयास किया है
मैंने अभी देश के 115 districts, aspirational districts को identify किया है। मैं उनको प्रेरणा जगा रहा हूं कि आप अपने स्टेट की जो एवरेज है, वहां तक आ जाओ, मैं आपके साथ खड़ा हूं। मैं उनको उत्साह बढ़ा रहा हूं और वो कर रहे हैं। और उसी का परिणाम है कि टॉयलेट का लक्ष्य करता हूं, पूरा हो जाता है। 18 हजार गांवों में बिजली, कोई मोदी खंभा डालने गया था क्या? खंभा डालने के लिए मेरे देशवासी गए थे। बिजली पहुंचाने वाले मेरे देशवासी गए थे। और इसलिए महात्मा गांधी की वो बात जिसे मैंने एक मंत्र के रूप में लिया है कि आजादी के लिए दीवाने बहुत थे, आजादी के लिए मरने वाले लोग भी बहुत थे, और उनकी त्याग-तपस्या को कोई कम नहीं आंक सकता है, उनकी शहादत को कोई कम नहीं आंक सकता है। लेकिन गांधी ने आजादी को जन–आंदोलन बना दिया, मैं विकास को जन–आंदोलन बना रहा हूं।
मोदी अकेला कुछ नहीं करेगा और मोदी ने कुछ नहीं करना चाहिए, लेकिन देश सब कुछ करे और मोदी भी …कभी तो मैं कहता था, जब मैं गुजरात में था तो बात करता था, मैंने कहा- हमारा देश ऐसा है कि सरकार रुकावट बनना बंद कर दे ना तो भी देश बहुत आगे बढ़ जाता है। उन मूलभूत विचारों से मैं चलने वाला इंसान हूं।
प्रसून जी – कविता की आपने बात की तो आपको सामने देखकर एक कविता मैं सुना देता हूं। जो कविता, मतलब मैं कहूंगा कि भारत पर तो बहुत ही खरी उतरती है। आप पर भी बहुत खरी उतरती है। कहीं आप समझें कि मैं क्या कह रहा हूं-
‘कि सर्प क्यों इतने चकित हो? सर्प क्यों इतने चकित हो? दंश का अभ्यस्त हूं।
सर्प क्यों इतने चकित हो? दंश का अभ्यस्त हूं, पी रहा हूं विष युगों से, सत्य हूं, आश्वस्त हूं।
सर्प क्यों इतने चकित हो? दंश का अभ्यस्त हूं, पी रहा हूं विष युगों से, सत्य हूं, आश्वस्त हूं।
ये मेरी माटी लिए है गंध मेरे रक्त की, जो कह रही है मौन की, अभिव्यक्त की।
मैं अभय लेकर चलूंगा, मैं विचलित न त्रस्त हूं।
सर्प क्यों इतने चकित हो? दंश का अभयस्त हूं।
है मेरा उद्गम कहां पर और कहां गंतव्य है?
दिख रहा है सत्य मुझको, रूप जिसका भव्य है।
मैं स्वयं की खोज में कितने युगों से व्यस्त हूं।
सर्प क्यों इतने चकित हो? दंश का अभयस्त हूं।
है मुझे संज्ञान इसका बुलबुला हूं सृष्टि में,
है मुझे संज्ञान इसका बुलबुला हूं सृष्टि में।
एक लघु सी बूंद हूं मैं, एक लघु सी बूंद हूं मैं, एक शाश्वत वृष्टि मैं।
है नहीं सागर को पाना, मैं नदी सन्यस्त हूं।
सर्प क्यों इतने चकित हो? दंश का अभयस्त हूं।
प्रधानमंत्री – प्रसून जी हम लोग, आपकी भावना का मैं आदर करता हूं, लेकिन हमारी रगों में वही भाव रहा है- अमृतस्य पुत्रा वयं
इसी भाव को लेकर हम पले-बढ़े लोग हैं और इसलिए हमारे देश में हर किसी ने दंश भी सहे हैं, जहर भी पिया है, परेशानियां भी झेली हैं, अपमान भी झेले हैं लेकिन सपनों को कभी मरने नहीं दिया है।
और ये जज्बा ही है जो देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की ताकत रखता है और मैं इसको अनुभव करता हूं जी।
प्रसून जी – यहां पर कुछ सवाल लेते हैं। श्री सेमुअल डाउजर्ट से लेते हैं एक सवाल , जो आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं। जी आप अपना सवाल जरूर आपके साथ कोई खड़ा होगा उसे दे दें लिखकर। वो आप तक पहुंचेगे, आप जरा लिखकर दे दें बस। आप दे दें, मैं पूछ लूंगा। मैं आपका नाम एनाउंस कर दूंगा
सेमुअल डाउजर्ट – Good Evening Mr. Prime Minister. What is your opinion about Modicare? Everyone is talking about it.Thank You.
प्रसून जी – I think मोदी केयर, ऐसे ही ओबामा केयर, मोदी केयर के बीच में parallel draw किया है उन्होंने। तो उस विषय में कि हेल्थ सेक्टर के बारे में शायद बात करना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री – देखिए, मैं अनुभव करता हूं कि तीन बातों पर मेरा एक आग्रह है, मैं कोई बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों में से नहीं हूं। मेरी जिंदगी का ब्रेकग्राउंड ही ऐसा है कि मैं, हमारे मेघनाथ भाई बैठे हैं यहां पर, मैं कोई उस प्रकार की बातें करने वाली मेरी परम्परा नहीं है। लेकिन तीन चीजें- बच्चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुजुर्गों को दवाई- ये चीजें हैं जो हमें एक स्वस्थ समाज के लिए चिंता करनी चाहिए। मैंने अनभव किया है कि कितना ही अच्छा परिवार क्यों न हो, कोई व्यसन न हो, कोई बुराइयां न हो, कुछ न हो, बहुत अच्छे ढंग से चलता हो परिवार, किसी का बुरा भी न किया हो; लेकिन उस परिवार में अगर एक बीमारी आ जाए। कल्पना की होगी कि चलो भाई बच्ची बड़ी हो गई है, बेटी के हाथ पीले करने हैं, शादी करवानी है, और घर में एक व्यक्ति की बीमारी हो जाए, पूरा प्लान खत्म हो जाता है। बच्ची कुंवारी रह जाती है, बीमारी पूरे परिवार को तबाह करके चली जाती है।
एक गरीब आदमी ऑटो रिक्शा चला रहा है, बीमार हो गया। ये व्यक्ति बीमार नहीं होता है पूरा परिवार बीमार हो जाता है। सारी व्यवस्था बीमार हो जाती है। और तब जाकर हमने कुछ सोचा, तो हमने health sector में एक बड़ा holistic approach लिया है। कुछ लोग इसको मोदी केयर के रूप में आज प्रचलित कर रहे हैं। मूलत: योजना है आयुष्मान भारत। और उसमें हमने preventive health की बात हो, affordable health की बात हो, sustainable chain की बात हो, इन सारे पहलुओं को ले करके हम आगे बढ़ रहे हैं।
इसके दो component हैं। एक- हम देश में करीब-करीब डेढ़ लाख से ज्यादा wellness centre create करना चाहते हैं ताकि अगल-बगल के 12-15 गांव के लोगों के लिए हेल्थ की सारी सुविधाएं उपलब्ध हों, और वो सारे technology driven हों। ताकि बड़े अस्पताल से जुड़ करे वहां पेशेंट आया है तो उसको तुरंत गाइड करें क्या दवाईयां चाहिए, व्यवस्था करें।
दूसरा- preventive health को बल दें। चाहे योगा हो, चाहे लाइफ स्टाइल हो, इन सारी चीजों को preventive health के लिए, चाहे nutrition हो। हमने एक पोषण मिशन शुरू किया है। Women and child health care के लिए, उसके द्वारा हमने काम किया है।
दुनिया के समृद्ध देशों में भी maternity leave के लिए आज भी उतनी उदारता नहीं है जितनी हमारी सरकार ने आ करके की है। मैं मानता हूं यूके के लोग भी जान करके खुश हो जाएंगे, हमने उन बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए, उस मां के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए maternity leave, twenty six week कर दिया है।
एक और पहलू है कि परिवार को एक ऐसी व्यवस्था दी जाए। भारत के करीब दस करोड़ परिवार, यानी 50 करोड़, पापुलेशन एक प्रकार से आधी जनसंख्या, उनको सालभर में पांच लाख रुपया तक की बीमारी का खर्चा सरकार भुगतान करेगी। एक साल में परिवार के एक व्यक्ति, सब व्यक्ति अगर जितनी बीमारी होती हैं, पांच लाख रुपये तक का पेमेंट सरकार देगी। इसके कारण गरीब की जिंदगी में ये जो संकट आता है उससे मुक्ति मिलेगी।
मैं जानता हूं बड़ा भगीरथ काम है लेकिन किसी को तो करना चाहिए।
दूसरा- इसके कारण जो प्राइवेट हॉस्पिटल आने की संभावना है टायर-2, टायर-3 सिटी में, अच्छे हॉस्पिटल का नेटवर्क खड़ा होगा। क्योंकि उनको पता है कि पेशेंट आएगा, क्योंकि पेशेंट को पता है कि मेरे पैसे कोई देने वाला है, तो वो जरूर जाएगा।
थोड़ी सी बीमारी आएगी तो आज नहीं जाता है, वो कहता है छोड़ो यार दो दिन में ठीक हो जाऊंगा, वो झेल लेता है। लेकिन जब पता है तो जाएगा। अस्पताल को भी पता है कि भाई पेशेंट जरूरत आए क्योंकि पैसे देने वाला कोई और है। और इसके कारण नए हॉस्पिटल का चेन बनेगा।
और मैं मानता हूं निकट भविष्य में और आपमें से जो हेल्थ के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, एक हजार से ज्यादा नए अच्छे हॉसिपटल बनने की संभावना पैदा हुई है। ये permanent solution system से पैदा हुई है।
उसी प्रकार से दवाइयां- पैकिंग अच्छा होता है, दवाई लिखने वाले को भी कुछ मिलता रहता है। आप जानते होंगे डॉक्टरों की कॉन्फ्रेंस कभी सिंगापुर होती है कभी दुबई होती है, हैं। वहां कोई बीमार है इसलिए नहीं जाते हैं, फार्मास्यूटिकल कम्पनियों के लिए जरूरी है, करते हैं।
तो हमने क्या किया- जेनेरिक मेडिसिन्स, और वो उतनी ही उत्तम क्वालिटी की होती है। जो दवाई 100 रुपये में मिलती थी, वो आज जेनेरिक मेडिकल स्टोर में 15 रुपये में मिलती है। करीब 3 हजार ऐसे हमने जन-औषधालय का काम किया है और, और भी हम बढ़ा रहे हैं ताकि सामान्य व्यक्ति, और उसको हम प्रचारित भी कर रहे हैं।